मधेपुरा/बिहार : शुक्रवार को जिला मुख्यालय स्थित शिवनंदन प्रसाद मंडल उच्य माध्यमिक विद्यालय में भारत की प्रथम शिक्षिका एवं नारी अधिकारों के लिये संघर्ष करने वाली माता सावित्रीबाई फुले एवं फ़ातिमा शेख़ का जयंती समारोह मनाया गया। समारोह की अध्यक्षता विद्यालय के प्राचार्य संतोष कुमार मंडल एवं कार्यक्रम का संचालन माध्यमिक शिक्षक संघ के प्रमंडलीय उपाध्यक्ष प्रभात रंजन ने किया। कार्यक्रम की शुरुआत प्रखर समाजवादी शिवनंदन प्रसाद मंडल के प्रतिमा पर माल्यार्पण एवं सावित्रीबाई फुले तथा फ़ातिमा शेख़ के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित कर किया गया ।
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए वक्ताओं ने कहा की माता सावित्रीबाई का जन्म 3 जनवरी 1831 में ओबीसी माली परिवार में हुआ था। उस समय देश में दो प्रतिशत ही लोग साक्षर थे, जिसमें एक भी महिला पढी-लिखी नहीं थी। 1840 में नौ साल की उम्र में सावित्रीबाई की शादी 13 साल के जोतिबा फुले से हुई। उनको जोतिबा ने घर पर शिक्षा दी थी, तब देश में एक भी छात्राओं के लिए विद्यालय नहीं था। सावित्रीबाई फुले ने अपने पति क्रांतिकारी नेता जोतिबा फुले के साथ मिलकर छात्राओं के लिए अट्ठारह विद्यालय खोलें। उन्होंने पहला एवं 18 विद्यालय भी पुणे में ही खोला। सावित्रीबाई फुले देश की पहली हिंदू महिला अध्यापक एवं भारतीय नारी मुक्ति आंदोलन की पहली नेता थीं।
वक्ताओंं ने कहा कि सावित्रीबाई फुले 28 जनवरी 1853 को गर्भवती, बलात्कार पीडि़त महिलाओ के लिए बाल हत्या प्रतिबंधक गृह की स्थापना की। सावित्रीबाई ने उन्नीसवीं सदी में छुआ-छूत, सतीप्रथा, बाल-विवाह एवं विधवा विवाह निषेध जैसी कुरीतियां के विरुद्ध अपने पति के साथ मिलकर काम किया। उनका पूरा जीवन समाज में वंचित तबके खासकर महिलाओं और ओबीसी, एससी-एसटी समुदायों के अधिकारों के लिए संघर्ष में बीता। उनकी एक बहुत ही प्रसिद्ध कविता है, जिसमें वह सबको पढ़ने लिखने की प्रेरणा देकर जाति तोड़ने, आडंबर एवं पोगापंथ ग्रंथों को फेंकने की बात करती हैं।
कार्यक्रम में मुख्य रूप से अमलेश कुमार, प्रभात रंजन, चंद्रशेखर कुमार, निशांत यादव, डा जवाहर पासवान, मेहरू साहब, मुर्तुजा, अली, सुभाष पासवान, प्रो वीना, कौशल यादव, प्रो ललन सहनी समेत दर्जनों अतिथियों ने संबोधन दिया. मौके पर आलोक यादव, अंकेश, शशि यादव, निरंजन, सुमन सौरव, सौरव यादव, नरेंद्र पासवान, किसन, नीरज समेत सैकड़ो छात्र-छात्राएं एवं युवा मौजूद थे।
भारत का पहला कन्या स्कूल खोलने में फ़ातिमा शेख़ ने सावित्रीबाई फुले की थी मदद
फ़ातिमा शेख़ एक भारतीय शिक्षिका थी, जो सामाजिक सुधारकों, ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले की सहयोगी थी। फ़ातिमा शेख़ मियां उस्मान शेख की बहन थी, जिनके घर में ज्योतिबा और सावित्रीबाई फुले ने निवास किया था। जब फुले के पिता ने दलितों और महिलाओं के उत्थान के लिए किए जा रहे उनके कामों की वजह से उनके परिवार को घर से निकाल दिया था। वह आधुनिक भारत में सबसे से पहली मुस्लिम महिला शिक्षकों में से एक थी और उसने फुले स्कूल में दलित बच्चों को शिक्षित करना शुरू किया। ज्योतिबा और सावित्रीबाई फुले, फातिमा शेख के साथ, दलित समुदायों में शिक्षा फैलाने का आरोप लगाया।
फ़ातिमा शेख़ और सावित्रीबाई फुले ने महिलाओं और उत्पीड़ित जातियों के लोगों को शिक्षा देना शुरू किया, स्थानीय लोगों द्वारा उन्हें धमकी दी गई। उनके परिवारों को भी निशाना बनाया गया था और उन्हें अपनी सभी गतिविधियों को रोकना या अपने घर छोड़ने का विकल्प दिया गया था उन्होंने स्पष्ट रूप से बाद का चयन किया।
जब फूले दम्पत्ती को उनकी जाति और न ही उनके परिवार और सामुदायिक सदस्यों ने उन्हें उनके इस काम में साथ नहीं दिया। आस-पास के सभी लोगों द्वारा त्याग दिया गया, जोड़ी ने आश्रय की तलाश में रहने और समाज के उत्पीड़न के लिए अपने शैक्षिक सपने को पूरा करने के लिए, अपनी खोज के दौरान, वे एक मुस्लिम आदमी उस्मान शेख के पास आए, जो पुणे के गंज पेठ में रह रहे थे । उस्मान शेख ने फुले के जोड़ी को अपने घर की पेशकश की और परिसर में एक स्कूल चलाने पर सहमति व्यक्त की। 1848 में, उस्मान शेख और उसकी बहन फातिमा शेख के घर में एक स्कूल खोला गया था।
फातिमा शेख ने सावित्रीबाई फुले के साथ उसी स्कूल में पढ़ना शुरू किया। सावित्रीबाई और फातिमा सागुनाबाई के साथ थे, जो बाद में शिक्षा आंदोलन में एक और नेता बन गए थे। फातिमा शेख के भाई उस्मान शेख भी ज्योतिबा और सावित्रीबाई फुले के आंदोलन से प्रेरित थे। उस अवधि के अभिलेखागारों के अनुसार, यह उस्मान शेख था जिन्होंने अपनी बहन फातिमा को समाज में शिक्षा का प्रसार करने के लिए प्रोत्साहित किया।
जब फातिमा और सावित्रीबाई ने ज्योतिबा द्वारा स्थापित स्कूलों में जाना शुरू कर दिया, तो पुणे से लोग स्वयं को परेशान करते थे और उन्हें दुरुपयोग करते थे। वे पत्थर फेकते थे और कभी-कभी गाय का गोबर उन पर फेंका गया था क्योंकि यह अकल्पनीय था।
सावित्रीबाई का निधन 10 मार्च 1897 को प्लेग बीमारी की वजह से हुआ था। लेकिन फ़ातिमा शेख़ आज गुमनाम हैं और उनके नाम का उल्लेख कम ही मिलता है। एक ऐसे समय में जब देश में सांप्रदायिक ताक़तें हिंदुओं-मुसलमानों को बांटने में सक्रिय हों, फ़ातिमा शेख़ के काम का उल्लेख ज़रूरी हो जाता है।