मधेपुरा/बिहार : तत्वमीमांसा दर्शनशास्त्र की सर्वप्रमुख शाखा है। इसके अंतर्गत विश्व के मूलतत्व का अध्ययन किया जाता है। मूलतत्व का स्वरूप, उसकी संख्या आदि इसके मूल प्रश्न है महात्मा गांधी ने भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से इन प्रश्नों पर विचार किया है।
यह बात बीएनएमयू दर्शनशास्त्र के असिस्टेंट प्रोफेसर एवं जनसंपर्क पदाधिकारी डा सुधांशु शेखर ने कही, वे अखिल भारतीय दर्शन परिषद् के 64 वें वार्षिक अधिवेशन के अंतर्गत तत्वमीमांसा विभाग में अपना शोध-पत्र प्रस्तुत कर रहे थे। इनके शोध-पत्र का विषय गांधी की तत्वमीमांसा’ था।
डा शेखर ने कहा कि गांधी प्रचलित अर्थ में तत्वमीमांसक नहीं थे। लेकिन उन्होंने तत्वमीमांसा के विभिन्न प्रश्नों पर गहराई से विचार किया है। उन्होंने अपनी तात्विक मान्यताओं को अपने जीवन में उतारने की कोशिश की। डा शेखर ने कहा कि गांधी की तत्वमीमांसा एकत्ववादी है। वे यह मानते थे कि मूल तत्व एक है। संपूर्ण चराचर जगत उसी मूल तत्व की अभिव्यक्ति है। डा शेखर ने कहा कि गांधी सत्य अर्थात् ईश्वर को ही जगत का मूल तत्व मानते थे। उनकी दृष्टि में संपूर्ण जगत इसी सत्य अर्थात् ईश्वर की अभिव्यक्ति है। सभी तत्वतः एक हैं और किसी का किसी से भी कोई विरोध नहीं है। कार्यक्रम के अध्यक्ष डा किस्मत कुमार सिंह (आरा) ने कहा कि एक समय में तत्वमीमांसा दर्शनशास्त्र का पर्यायवाची था। लेकिन अब दर्शन का फलक काफी विस्तृत हो गया है और इसमें कई आयाम जुड़ गए हैं। उन्होंने सभी शोधार्थियों से अपील की कि मूल ग्रंथों के आधार पर शोध करें और संदर्भों की शुद्धता का विशेष ध्यान रखें।
इस अवसर पर भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद् के अध्यक्ष डा रमेशचन्द्र सिन्हा, अधिवेशन के प्रधान सभापति डा अभिमन्यु सिंह, परिषद् के अध्यक्ष डा जटाशंकर, पूर्व महामंत्री डा अम्बिकादत्त शर्मा, महामंत्री डा जेएस दुबे, दार्शनिक त्रैमासिक के संपादक द्वय डा शैलेश कुमार सिंह एवं डा श्यामल किशोर, डा सविता गुप्ता, डा मुकेश कुमार चौरसिया, डा नीरज प्रकाश आदि उपस्थित थे।