जज्बे को सलाम : जिंदादिली से हारी-दिव्यांगता बेचारी, पढ़िए इस प्रेरणादायक खबर को

Spread the news

अमित कुमार
उप संपादक

मधेपुरा/बिहार : कोई भी काम करने के लिए सिर्फ उसके अनुरूप उपयुक्त क्षमता की जरूरत नहीं होती बल्कि इसके लिए हौसलों में भी जान होनी चाहिए। अगर साहस हो तो भी फिर क्षमता में कुछ कमी होने के बावजूद भी इंसान बहुत कुछ कर सकता है।

लोग कहते हैं कि यदि भगवान किसी का कुछ छीनता है तो उसे कोई शक्ति जरूर देता है। कुछ इसी प्रकार की शक्ति भगवान ने पूर्णिया जिला के बनमनखी स्थित मगुर्जन वार्ड नंबर 13 निपानिया की इस छात्रा को दी है। रूपम कुमारी नाम की इस छात्रा के दोनों हाथ नहीं हैं, लेकिन पढ़ाई के जुनून में इस छात्रा ने हाथ के स्थान पर पैरों से लिखना सीखकर अपनी दिव्यांगता को पीछे छोड़ दिया है। रूपम कुमारी शुक्रवार को भूपेंद्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित पीएचडी टेस्ट परीक्षा 2019 की परीक्षा दाएं पैर से लिखकर दे रही थी। शरीर ने रूपम के सामने चुनौती पेश की थी लेकिन उन्होंने इसके आगे हार नहीं मानी और अपने सपनों को नहीं मरने दिया। उसने अपनी शिक्षा जारी रखी। रूपम जन्म से ही अपने पैर के पंजे की मदद से लिखती आ रही हैं।

पीएचडी टेस्ट परीक्षा 2019 की परीक्षा देती छात्रा रूपम कुमारी

अपने पैरों पर खड़े होकर माता-पिता पर बोझ बनने के स्थान पर बनूंगी सहारा : रूपम ने स्थानीय दुर्गा उच्च विद्यालय से वर्ष 2009 में दसवीं की परीक्षा पास की। जिसके बाद उन्होंने इंटर में अपना नामांकन पूर्णिया महिला कॉलेज पूर्णिया में करवाई। वहीं से उन्होंने स्नातक भी पास किया। जिसके बाद उन्होंने पूर्णिया कॉलेज पूर्णिया से स्नातकोत्तर की पढ़ाई की। व्यवसायिक बहादुर साह एवं चांदनी देवी की बेटी ममता जन्म से दोनों हाथों से दिव्यांग है। उसने स्थानीय स्कूल से पढ़ाई शुरू की। शुक्रवार को यह छात्र बीएनएमयू में पीएचडी एडमिशन टेस्टट परीक्षा 2019 की परीक्षा देने के लिए आई थी। छात्रा रूपम ने बताया कि वह पूर्णिया जिला के बनमनखी स्थित मगुर्जन वार्ड नंबर 13 निपानिया सामान्य व्यवसायिक बहादुर साह एवं चांदनी देवी की बेटी। उसके माता-पिता एवंं घर के अन्य सदस्य भी उसका पूरा ध्यान रखते हुए पढ़ाई में पूरी सहायता करते हैं। छात्रा ने बताया कि जन्म से उसके दोनों हाथ न होने के कारण माता-पिता बहुत परेशान थे।  लेकिन छात्रा के कहने पर परिजनों ने उसे स्थानीय स्कूल में पढ़ने के भेजा और उसका नतीजा आज यह है कि वह बीएनएमयू में पीएचडी एडमिशन टेस्टट परीक्षा 2019 की परीक्षा दे रही है।

 छात्रा रूपम कुमारी ने बताया कि मैं अपने माता-पिता पर बोझ नहीं बनना चहिती, इसलिए वह पढ़ लिखकर वह अच्छी नौकरी करना चाहती है। ताकि भविष्य में वह किसी पर भी आश्रित न रहे, बल्कि आने वाले दिनों में वह अपने पैरों पर खड़े होकर माता-पिता पर बोझ बनने के स्थान पर सहारा बन सके।
पढ़ाई को चुनौती मानकर की शुरुआत : छात्रा ने बताया कि दिव्यांगता को ईश्वर की मर्जी मानते हुए चुनौती के रूप में स्वीकार किया। उसने छोटी कक्षा में पढ़ाई शुरू करते ही दाएं पैर से लिखने का अभ्यास किया। शुरुआत में पैर से लिखने में छात्रा को कठिनाई हुई, लेकिन धीरे-धीरे लिखना आने लगा। इतने वर्षों में इस छात्रा ने अपने लिखने की गति इतनी बढ़ाई कि अब वह पीएचडी टेस्ट परीक्षा 2019 की परीक्षा आसानी से दे पा रही है। यह छात्र पिछले वर्ष 12वीं की परीक्षा द्वितीय श्रेणी में पास कर महाराजा कॉलेज पहुंची है।
दौनिक कार्यों में होती है परेशानी: व्यवसायिक परिवार में 18 जनवरी 19942 को रूपम कुमारी जन्मी दोनों हाथों से दिव्यांग होने के कारण दैनिक कार्यों को करने में रोजाना परेशानी का सामना करना पड़ता है, लेकिन इन छात्रा ने प्रतिदिन होने वाली परेशानियों को पीछे छोड़ते हुए अपनी पढ़ाई जारी रखी और आज वह पीएचडी टेस्ट परीक्षा 2019 की परीक्षा दे रही है। छात्रा के इस हौसले को देखते हुए परिजनों के साथ ही विश्वविद्यालय के प्राध्यापक एवं कर्मचारी भी चकित हैं।


Spread the news