छात्र और राजनीति विषय पर छात्र नेता राठौर ने खास मुलाकात में साझा किए अपने विचार
कहा :छात्रों के राजनीति में भागीदारी से भविष्य को मिलेगा परिपक्व नेतृत्व ♦राजनीति से छात्र को दूर रखना घातक ♦ ऐसा होने से उत्पन होगी कई समस्याएं और लोकतंत्र होगा कमजोर
मधेपुरा/बिहार : राजनीति के संबध में प्रख्यात विचारक डिजरायली ने जहां इसे जुआ कहा वहीं आइंस्टीन ने एक जगह लिखा कि राजनीति पारे की तरह है अगर तुम इस पर उंगली रखने का प्रयास करो तो इसके नीचे कुछ नहीं मिलती।
लेकिन इन सब के परे राजनीति आधुनिक युग का सर्वाधिक चर्चित विषय बना हुआ है ।प्रत्येक मनुष्य राजनीति से प्रभावित एवम् प्रेरित है।वर्तमान काल में राजनीति में छात्रों का प्रवेश एक ज्वलंत सवाल और जटिल समस्या बन कर रह गई है। अभिभावक, शिक्षक सहित शिक्षाशास्त्री सभी इस प्रश्न से भ्रमित हैं कि छात्रों को राजनीति भाग लेना चाहिए कि नहीं? इस विषय पर तीन मत उभर कर सामने आते हैं। एक वर्ग छात्रों के प्रत्यक्ष राजनीति में भाग लेने का समर्थक है,दूसरा वर्ग इसको हानिकारक और घातक मानता है वहीं तीसरा अपनी मिश्रित राय रखता है। छात्रों के राजनीति में आने के समर्थित वर्ग का मानना है कि छात्र कल के भविष्य और कर्णधार हैं और उन्हें बड़े होकर राष्ट्र की बागडोर संभालनी है। इसलिए उन्हें राजनीति का सक्रिय ज्ञान एवम् प्रत्यक्ष अनुभव रहना चाहिए।
उनका यह भी मानना है कि छात्र एक सामाजिक प्राणी होने के साथ साथ समाज का एक महत्वपूर्ण अंग भी है। ऐसे में उसे राजनीति से वंचित रखना उसके व्यक्तित्व विकास में बाधक सिद्ध होगा। छात्र समुदाय अनेकानेक संभावनाओं का स्त्रोत है । इस समूह से बड़ी अपेक्षा रहती है। ऐसे में इस वर्ग का दृष्टिकोण एवम् कार्यक्षेत्र व्यापक होना चाहिए । यहां यह कहना गलत नहीं होगा कि छात्रों के राजनीति में प्रवेश का मूल आशय है जीवन की चुनौतियों को स्वीकार करके उनसे जूझने की कला के साथ – साथ साहस एवम् क्षमता को ग्रहण करना।
छात्रों के राजनीति में प्रवेश को समर्थन करने वाला वर्ग आजादी के आंदोलन में लाखों छात्रों की भागीदारी को अहम मानता है।गांधी,भगत,चन्द्रशेखर के अलावा कईयों के आंदोलन इसे दर्शाते भी हैं । भारत का पहला छात्र संगठन ए आई एस एफ आजादी से लेकर अभी तक इस तथ्य का जीवंत प्रमाण देता आ रहा है। वहीं छात्रों को राजनीति से दूर रखने वाले वर्ग का मत है कि छात्र जीवन ज्ञान अर्जन एवम् भावी जीवन की तैयारी का समय है। छात्र का मूल कार्य शिक्षा ग्रहण करना है और इसी दौर पर उसका भविष्य टिका हुआ है। राजनीति के भंवर में फंस कर वो अपने मूल लक्ष्य से भटक सकता है क्योंकि राजनीति में दांवपेंच, छल प्रपंच एवम् स्वार्थ सिद्धि का प्रभुत्व रहता है। यह वर्ग यह भी मानता है कि राजनीतिज्ञ प्राय छात्रों का इस्तेमाल कर अपना उल्लू सीधा करते हैं और कुर्सी पाते ही छात्रों से जुड़े सवाल को भूल जाते हैं। ऐसे में छात्रों का समय बर्बाद हो जाता है और वो विद्याध्यन भी नहीं कर पाते। दोनों वर्गों के तर्कों और वर्तमान में राष्ट्र के अंदर उत्पन भ्रटाचार, समान शिक्षा का अभाव व अनेकानेक लचर व्यवस्था स्पष्ट करती है छात्र युवा के उज्जवल भविष्य के लिए उचित स्वरूप देने में वर्तमान राजनीतिज्ञ पहली की कड़ी की तरह आज भी सफल नहीं हो पा रहे हैं । ऐसे में यह पूर्व की तरह जरूरी प्रतीत होता है कि बिगड़ते मुल्क के भावी कल होने के नाते राजनीति की शुरुआत छात्र जीवन से होना चाहिए ताकि भविष्य को परिपक्व राजनीतिज्ञों का संचालन प्राप्त हो सके। वरना भारतीय लोकतंत्र में दीमक की तरह बढ़ रहा परिवारवाद की परम्परा से लोकतंत्र की जननी रहे इस राष्ट्र को तानाशाही शासन के करीब ला देगा।
इस लिए समाज और राष्ट्र के सबसे अहम हिस्सा छात्र समुदाय का यह परम कर्तव्य है कि वो राजनीति में आए और इसके कीचड़ को दूर कर विकास की अपनी गाथा भी लिखे । भारत का पहला छात्र संगठन ए आई एस एफ सभी युवा छात्रों से अपील करता है कि लोकतंत्र के इस महापर्व में मजबूत भागीदारी देने के साथ साथ आमजन को भी इसके लिए प्रेरित करे।