क्या किसी गांव को एक पल में तबाह और बर्बाद होता देखा है
क्या देखे हो कि वतन के लिए फांसी के फंदों पर खुशी से लटक जाता है
हिन्दू था ना मुस्लिम था, बस दिलों में आजादी का सपना था
किसी की नहीं सुनता था जालिम, बस वो मनमौजी अपना था
कहने का तो मुल्क था अपना, लेकिन यह किसी और के हवाला था
कहने का तो धरती अपनी थी, पर भोजन का ना निवाला था
दीपावली मनाने घर-घर से दीपक निकले थे
पर लौट ना पाए अपने घरों को, जो देश बचाने निकले थे
जालिमों ने जलियांवाला हत्याकांड में बच्चे बूढ़े सब को मारा था
सुनहरी धरती को खून से लाल बनाया था
धीरे-धीरे आक्रोश बढ़ा सबके सर पे क्रोध चढ़ा
दुश्मनों को सबक झांसी की रानी ने भी सिखाई थी
बूढ़े भारत में भी आईं नई जवानी थी
जालिमों ने हम पर जुल्म किया तो हमने भी नरसंहार किया
उसने कालापानी, नजरबंद तो हमने भी असहयोग और चौड़ा चौरी कांड किया
हमें बेबस समझते थे इसलिए हम पर हुकूमत करते थे
पर हम भी कहां अंग्रेज़ो से डरते थे
बहुत हुआ जुल्मों-सितम, अब तो देश को आजाद कराना था
साम, दाम, दण्ड, भेद चाहे जो अपनाना था
इट का जवाब पत्थर होता है, यह सबक जालिमों को सिखाया था
तब जाकर अंग्रेजों को इस देश से भगाया था
मायें विधवा होकर, बहनों ने सिंदूर मिटाई है
और वीर पुरुषों ने खून बहाकर दी है बलिदान
तब जाकर कहलाया है आजाद हिंदुस्तान
साहिल राज उर्फ हसनैन