बिहार : पासवान परिवार के घटनाक्रम से प्राप्त अनुभव के आधार पर स्पष्ट दिख रहा है कि तेजप्रताप के बगावत की ऊर्जा का श्रोत कहीं और है। राजद और लालू परिवार की विरासत को लेकर मचे घमासान के दर्पण में तेजप्रताप की महत्वाकांक्षा साफ दिख रही है। घमासान की परिणति तेजप्रताप को तात्कालिक लाभ पहुंचा सकता है। इस झंझावात में राजद के अधिकांश विधायक तटस्थ दर्शक व अबोध बालक की भूमिका में नज़र आ रहे हैं। उनकी नज़र में तो लालू के दोनों लाल बराबर हैं। कोई विधायक चाहे किधर भी चला जाए लेकिन इतना तय है कि वे लालू परिवार से बगावत के जुर्म से पाक रहेंगे। विधायकों की इस स्थिति का तेजप्रताप को फायदा मिल सकता है। दस पंद्रह विधायक यदि उनके पाले में बैठ गए तो उन्हें उपमुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने का मौका मिल सकता है। ऐसा महागठबंधन में रहकर असंभव है। लिहाजा सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि तेजप्रताप को उपमुख्यमंत्री की कुर्सी तक कौन बुला रहा है!
यह सारा चक्रव्यूह इसलिए रचा जा रहा है ताकि सत्ता की ओर तेजी से बढ़ रहे राजद की कमर आधे रास्ते पर ही तोड़ दिया जाए। आपरेशन सफल होता दिख भी रहा है। हालांकि तेजप्रताप को यह भी याद रखना होगा कि परिवार से बगावत का परिणाम शिखर से शून्य तक भी ले जा सकता है। लालू – राबड़ी के शासनकाल में उनके मामा साधु – सुभाष की हैसियत सीएम के बराबर हुआ करती थी लेकिन लालू परिवार से बगावत की वजह से आजतक वे हासिए पर हैं। बावजूद इसके वे मामाओं की राह पर चल पड़े हैं।
इस सच्चाई से इंकार नहीं किया जा सकता कि राजद का बड़ा वोट बैंक है जिस पर लालू की पकड़ काफी मजबूत है। उनका हाथ जिसके सर पर होता है राजद का वोट बैंक भी उधर ही सरक जाता है। इसी वजह से गत विधानसभा चुनाव में तेजस्वी के नेतृत्व में राजद सबसे बड़ा दल बनकर उभरा है।
बहरहाल लालू की विरासत के लिए जारी अंतरकलह से तेजप्रताप को तात्कालिक लाभ तो मिल सकता है बशर्ते एक आध दर्जन विधायक को वे तोड़ ले जाएं। फिर भी इतना तय है कि उनका राजनैतिक भविष्य उनके मामाओं की तरह अंधकारमय हो जाएगा। ऐसी परिस्थिति तेजस्वी के भविष्य के लिए माकूल साबित होगी। राजद पर उनका एकछत्र राज होगा। उस परिस्थिति में वे खुलकर दाव खेलेंगे। पता नहीं क्यों तेजप्रताप को ऊर्जा देने वाले इस तथ्य समझ नहीं पा रहे हैं ?