नालंदा/बिहार : जिला मुख्यालय स्थित खानकाह मोहल्ले में मुहम्मद बससु नामक व्यक्ति का स्वर्गवास हो गया। बेटा और परिवार ना रहने के कारण कोई आगे नही आया और 3 दिनों तक लाश घर में पड़ा रहा, लाश से बदबू आने लगी तब पड़ोसियों की नींद खुली और सामाजिक संगठन SDPI को फोन किया। हाथ, पैर ऐंठ चुका था यह मामला बड़ी दरगाह के पीर साहब के मकान के ठीक बगल का मामला है पर हैरानी की बात यह है कि इसकी किसी को फिक्र न किसी को खबर थी।
सोमवार को करीब 2:00 बजे किसी व्यक्ति ने SDPI नालंदा जिला महासचिव मुहम्मद फतह अली को फोन कर इस घटना की जानकारी दी। इस घटना की सूचना पाते ही इस संगठन के लोग तत्पर कार्रवाई करते हुए कब्र खुदवाने का काम शुरू किया गया और शाम के 7:00 बजे गगन्दीवान क़ब्रिस्तान में मुहम्मद बससु को सुपुर्द-ए-खाक किया गया।
सबसे आश्चर्य चकित करने वाली बात यह रही के दफन के बाद वहां के स्थानीय लोगों ने जनाजे को लेकर जाने वाला खाट को लेकर हंगामा कर दिया जो इंसानियत को शर्मसार करने वाली बात है। आज समाज की हालत यह हो गई है लाशों को कोई देखने वाला नहीं है और जो देखने के लिए सामाजिक संगठन आगे बढ़ता है उसके सहयोग करने के बजाए उसका विरोध करना शुरू कर देते हैं। क्या यह घटना इंसानियत को शर्मसार नहीं करती है। ऐसे संगठन का तो समाज के द्वारा पूरी तरह सम्मान करनी चाहिए जो इस कोरोना संक्रमण के दौर में अपनी जान को जोखिम में डालकर समाज के लिए और समाज के हित के लिए कार्य कर रहे हैं। आज कई जगहों पर हमारे समाज के लोग श्मशान घाट और कब्रिस्तान पर लाशों को अंतिम संस्कार करने से रोका जाता है, क्या हमारी मानवता पूरी तरह मर चुकी है, क्या हमारे अंदर की इंसानियत खत्म हो गई है? अगर समाज में यही होता रहा तो भविष्य में इसके बुरा असर पड़ेगा और सामाजिक कार्यकर्ता समाज के हित में कार्य करने के लिए सैकड़ों बार सोचेंगे।
एसडीपीआई के कार्यकर्ताओं ने इंसानियत की एक मिसाल पैदा कर दी और जिस लाश को घर और परिवार के लोग छोड़ कर भाग रहे थे अपने۔अपनों की लाश से दूर हो रहे थे वैसे स्थिति में यह सामाजिक कार्यकर्ताओं ने दो दर्जनों से भी अधिक लोगों के लाशों को श्मशान घाट से लेकर कब्रिस्तान तक पहुंचा कर सुपुर्द ए खाक और अंतिम संस्कार करने तक का कार्य किया है जो एक सराहनीय कदम है। कुछ लोगों में मानवता आज भी जिंदा है।