किशनगंज : अवैध खनन का क्षेत्र बनता जा रहा है बहादुरगंज प्रखंड का लोहागड़ा मरियाधार  

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शशिकांत झा
वरीय उप संपादक

किशनगंज/बिहार : इन दिनों जिले के बहादुरगंज प्रखंड का लोहागड़ा मरियाधार, अवैध खनन का क्षेत्र बनता जा रहा है। बहादुरगंज प्रखंड का लोहागड़ा मरियाधार, जहाँ से गांवों के कम एवं माफियाओं की अवैध ढुलाई का केंद्र बन चुकी है नदी । मुख्य सड़क 327ई से सटी इस इलाके से शायद भूतत्व विभाग का आना जाना शायद कम है, यही कारण है कि सुबह होते हीं इसी नदी से सटे लिंक रोड से दर्जनों ओवर लोडेड गाड़ियाँ बंगाल से चलकर नेपाल की सीमा तक पहुंच जाती है । शाम ढलते हीं इसी मरियाधार के किनारे ट्रैक्टरों की आवाजाही शुरु हो जाती है, फिर शुरु हो जाता है डम्प किये गये बालू की ढुलाई, जिस पर कोई पाबंदी नहीं है, या फिर कई लोग बाहूबली बनकर इन सबसे अवैध उगाही में लगे रहते हैं।

“फिर तो सैंया भये कोतवाल तो फिर डर काहे का …..

इसी नदी से सटे अलसियाबाड़ी घाट, जहाँ सूचनाओं के दबाव में विभाग, पुलिस की गाड़यों का जमाबड़ा लगा, कुछ पकड़े भी गये तो कुछ फरार, पर नहीं थमी इस गोरख धंधे की रफ्तार। जिले के अखबार की सुर्खियों ने खूब हाय तौबा मचाई पर ढाक के तीन पात। अब तो सहज और आसानी से चलने वाला उक्त धंधा इन दिनों परवान चढ़ता जा रहा है। जहाँ से सरकारी टेक्स वसूले जाते हैं, उसके आड़ में लोग जहाँ तहाँ से ढुलाई कर कमाई का साधन बना चुके हैं।

भूले भटके कोई अगर इस लोहागड़ा नदी को सेफजोन मानकर ट्रेक्टर यहाँ ले भी आये तो लाल और तरेरती आंखें देखकर ये खिसक लेते हैं। कई रसूखबालों की बदौलत कथित लाल ऑंखें यहाँ ठीकेदार की तरह हीं अपना किरदार निभाती नजर आती है। कुल मिलाकर लोग और इस धंधे में शामिलों की अगर सुध ली जाऐ तो सरकारी राजस्व के लाखों नहीं कड़ोड़ों का यहाँ वारान्यारा होते दिख जाता है। पर विभाग की कुंभकर्णी निन्द्रा और सरकार की लचीली नीतियां इन्हें रोकना तो दूर, नजरें उठाने से भी दूर है। ऐसे में देखा जाय तो इस नदी के किनारों से सटी बस्तियों के पास भी दर्जनों घाट बन चुके हैं। जहाँ पर “जिसकी लाठी, भैंस उसी की” के तर्ज पर अवैध खनन का खेल बदस्तूर जारी है। ऐसे में बहती गंगा में हाथ धोकर लोग भी मकान बनाने में इसका लाभ लेते हैं।

विभागीय कार्यवाही ऐसी कि मिट्टी काटकर लाने वाले कई ट्रेक्टर आज भी बहादुरगंंज थाने में सड़ते देखे जा सकते हैं। तुर्रा ये कि अब किसान अपने खेतों में पटे नदी के बालू और मिट्टी काटने में भी आगे पीछे सोचते हैं ।


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