मधेपुरा/बिहार : परिकल्पना दो या दो से अधिक चरों के बीच संभावित संबंधों के बारे में बनाये गये जांच योग कथन का वर्णन है। शोध समस्या के चयन के बाद परिकल्पना का प्रतिपादन करता है। परिकल्पना का कार्य सिद्धांतों की जांच करना, नये सिद्धांतों का निष्पादन करना एवं किसी घटना का वर्णन करना है।
यह बात बीएनएमयू के मनोविज्ञान विभाग में वरिष्ठ प्रोफेसर एवं अकादमिक निदेशक डा एमआई रहमान ने कही। वे स्नातकोत्तर मनोविज्ञान विभाग पटना विश्वविद्यालय पटना द्वारा आयोजित ऑनलाइन इंटरएक्टिव क्लास में बोल रहे थे। इसका टॉपिक परिकल्पना के मानदंड या कसौटी था। उन्होंने कहा कि परिकल्पना एक कथन है, जिसके आधार पर शोध समस्या से संबंधित विस्तृत वास्तविकता को प्राप्त की जाती है। जब हम किसी समस्या पर शोध करने के लिये तैयार होते हैं, तो सबसे पहले हमें उसकी संपूर्ण जानकारी आवश्यक है। उस शोध से संबंधित उपलब्ध शोध पत्रों का अध्ययन भी अत्यंत आवश्यक है। शोध पत्र ज्ञान के स्रोत होते हैं। उपलब्ध ज्ञान के आधार पर हमें प्रस्तुत शोध की समस्या बनाना चाहिये। जब शोध की समस्या बन जाती है, तो उसके आधार पर शोध परिकल्पना की रचना की जाती है। परिकल्पना शोध समस्या के आलोक में ही बनाई जानी चाहिये। परिकल्पना या एक अच्छी परिकल्पना बनाने के लिए कुछ मानदंड या कसौटी होती है। परिकल्पना को संक्षिप्त, सटीक, सरल एवं स्पष्ट होना चाहिये। परिकल्पना में एकरूपता होनी चाहिये। परिकल्पना में भविष्यवाणी करने की क्षमता होनी चाहिये। परिकल्पना में परीक्षण करने की क्षमता होने के साथ ही साथ वह परिकल्पना समस्या के लिये प्रसांगिक होनी चाहिये परिकल्पना में भविष्यवाणी करने की क्षमता होनी चाहिये
उन्होंने बताया कि कुछ परिकल्पना विशिष्ट उद्देश्य के आधार पर बनाई जाती है, परिकल्पनायें कई प्रकार की होती हैं, इनमें साधारण कल्पना, जटिल परिकल्पना, सार्वत्रिक परिकल्पना, अस्तित्वपरक परिकल्पना, विशिष्ट परिकल्पना, वर्णनात्मक परिकल्पना, कार्यरूप परिकल्पना, नल परिकल्पना सांख्यिकी परिकल्पना आदि मुख्य हैं।