
उप संपादक
मधेपुरा/बिहार : अपने पूर्वजों के इतिहास से सबक लेने की जरूरत है, नहीं तो इतिहास को भुलाने वालों को इतिहास खुद भुला देता है।
उक्त बातें जिला मुख्यालय स्थित अंबेडकर छात्रावास के प्रांगण में भीमा कोरेगांव शौर्य दिवस के शुभ अवसर पर बीएन मंडल विश्वविद्यालय के सीनेट एवं सिंडिकेट सदस्य डा जवाहर पासवान ने कही। उन्होंने कहा कि आज से 202 वर्ष पहले यानी एक जनवरी 1818 को पुणे से 20 किलोमीटर दूर भीमा नदी के किनारे भीमा कोरेगांव बसा है, जहां बाजीराव पेशवा द्वितीय के अत्याचार एवं अमानवीय व्यवस्था के खिलाफ मुंबई नेटिव इन्फेंट्री महार रेजिमेंट के शूरवीर बहादुर सैनिकों ने युद्ध जीतकर अपने पूर्वजों के मान-सम्मान लौटाया था। आज उन्हीं का परिणाम है कि हम भारतीय सम्मान पूर्वक जिंदगी जी रहे हैं। आज के तारीख में हम लोगों को सामाजिक ईमानदार होने की जरूरत है। यही उन लोगों के लिए सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

बामसेफ के पूर्व जिलाध्यक्ष सुभाष पासवान ने कहा कि मनुवाद से त्रस्त हमारे महान पुरखों ने पेशवाई शासन के खिलाफ 31 दिसंबर 1817 को जंग छेड़ दी। सुबह 09:30 बजे जंग का एलान कर दिया, 12 बजे तक लगातार जारी युद्ध के दौरान पांच सौ महार सैनिकों ने 28 हजार पेशवाई सैनिकों को मूली गाजर की तरह कत्ल कर विजय हासिल किया। इन सारी बातों की जानकारी बाबा साहब डा भीमराव अंबेडकर को इंग्लैंड के लाइब्रेरी में पढ़ने के दौरान पता चला था और वे इंग्लैंड से जब वापस आए तो सीधे भीमा कोरेगांव विजय स्तंभ को नमन करने गए, जो 1851 के वीर सैनिकों के याद में अंग्रेज शासक ने बनवाया था। हर साल एक जनवरी को बाबा साहब अंबेडकर अपने पुरखों के मजार पर शीश नवाने जाया करते थे। आज हमें अपने पूर्वजों के कुर्बानी को अक्षुण्ण रखने की जरूरत है।
