“पंछी यह समझते हैं चमन बदला है , हंसते हैं सितारे कि गगन बदला है !! श्मशान की खामोशी मगर कहती है, है लाश वही,सिर्फ कफन बदला है !!”
मधेपुरा/बिहार : उक्त पंक्तियां मधेपुरा लोकसभा क्षेत्र के लिए प्रासंगिक है । मधेपुरा वही है, उम्मीदवार वहीं ,लेकिन पार्टी और समर्थक बदल गए हैं।मधेपुरा के मतदाता को ढाई दशक से लालू -शरद की राजनैतिक दुश्मनी की आदत सी पड़ गई थी । मगर बदलाव की ऐसी बयार बही कि इस चुनाव में लालू को सलाखों तक पहुंचाने वाले जदयू के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव खुद लालू के चुनाव चिह्न लालटेन लेकर घूम रहे हैं । कल तक जो लोग विरोधी थे वे आज शरद यादव की जयजयकार कर रहे हैं। विगत दिनों तक जो कुंबा शरद के लिए कैंपेन चलाता था, वह आज विरोध में मुखर है । बीते चुनाव के दौरान शरद यादव के पक्ष में मधेपुरा में महीना भर डेरा डालने वाले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार उनकी आज शिकस्त चाहते हैं और शरद यादव के सबसे विश्वासपात्र दिनेशचंद्र यादव जदयू के टिकट पर विरोध में चुनाव लड़ रहे हैं । इस बार के आम चुनाव का यह सबसे बड़ा बदलाव है । जिसकी सर्वत्र चर्चा है।
गौरतलब है कि बिहार की मधेपुरा लोकसभा सीट हाईप्रोफाइल सीट मानी जाती है। आरजेडी चीफ लालू प्रसाद का ये गढ़ रहा है तो जाप सुप्रीमों पप्पू यादव और शरद यादव के बीच की सियासी जंग भी यहां के वोटरों के लिए हमेशा रुचि का विषय रहता है। 2008 के परिसीमन के बाद मधेपुरा लोकसभा क्षेत्र में विधानसभा की 6 सीटें यथा – महिषी, सहरसा, सोनवर्षा (सु) ,मधेपुरा, बिहारीगंज और आलमनगर सीटें आई ।2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में इन 6 सीटों में से 3 पर जेडीयू और 3 पर आरजेडी की जीत हुई थी। बिहार की मधेपुरा लोकसभा सीट हाईप्रोफाइल सीट इसलिए भी मानी जाती है, क्योंकि यह मंडल आयोग के अध्यक्ष रहे बी. पी. मंडल का पैतृक जिला है। आरजेडी चीफ लालू प्रसाद दो बार मधेपुरा सीट से लोकसभा चुनाव जीते,जबकि चार बार शरद यादव यहां से जीतने में कामयाब रहे । मधेपुरा से 2014 में पप्पू यादव ने आरजेडी के टिकट पर चुनाव लड़ा था और जीते। 2014 में लालू यादव के बदले स्थानीय बाहुबली नेता पप्पू यादव ने राजद के टिकट पर शरद यादव को हराया।बीजेपी के विजय कुमार सिंह तीसरे नंबर पर रहे थे।
मधेपुरा लोकसभा क्षेत्र का चुनावी इतिहास
⇒ ब्रिटिश हुकूमत के दौरान 1924 में हुए प्रथम बिहार-उड़ीसा विधान परिषद् चुनाव में (तत्कालीन मधेपुरा-सहरसा अर्थात भागलपुर नॉर्थ ) से महान स्वंत्रता सेनानी और मुरहो के जमींदार स्व.रासबिहारी लाल मंडल के बड़े सुपुत्र भुवनेश्वरी प्रसाद मंडल विजयी हुए थे।
⇒ 1937 के बिहार विधान परिषद् के चुनाव में स्व.रासबिहारी लाल मंडल के द्वितीय सुपुत्र कमलेश्वरी प्रसाद मंडल निर्वाचित हुए थे।
⇒स्वतंत्र भारत में 1952 में हुए प्रथम चुनाव में भागलपुर नॉर्थ या भागलपुर -पूर्णियां से तीन उम्मीदवार निर्वाचित हुए.. प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के आचार्य जे बी कृपलानी, कांग्रेस के अनूप लाल मेहता और रिजर्व सीट से मुरहो निवासी सोशलिस्ट पार्टी से किराय मुशहर।
⇒ 1957 में इस क्षेत्र का नाम सहरसा हो गया और कांग्रेस के ललित नारायण मिश्र और रिजर्व से कांग्रेस के ही भोला सरदार विजयी रहे।
⇒ 1962 में कांग्रेस के ललित नारायण मिश्र को हरा कर सोशलिस्ट पार्टी के भूपेंद्र नारायण मंडल विजयी रहे। इसी चुनाव में काँग्रेस ने आरोप लगाया था कि भूपेंद्र बाबू जातिगत नारा – ‘रोम पोप का, सहरसा गोप का’ , देकर जीते। बाद में पटना उच्च न्यायालय ने इस आरोप को आधारहीन माना।
⇒ 1967 से सहरसा और मधेपुरा अलग- अलग क्षेत्र हो गया और रासबिहारी लाल मंडल के सबसे छोटे सुपुत्र, बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री बी पी मंडल मधेपुरा से संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर जीते।
* 1971में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के राजेंद्र प्रसाद यादव।
*1977में जनता पार्टी के बी पी मंडल ।
* 1980में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के राजेंद्र प्रसाद यादव।
*1984 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के महावीर प्रसाद यादव।
* 1989 में जनता दल के रमेंद्र कुमार यादव ‘रवि’ ।
* 1991 में जनता दल के शरद यादव।
*1996में जनता दल के शरद यादव।
*1998 में राष्ट्रीय जनता दल के लालू प्रसाद यादव।
* 1999में जदयू के शरद यादव।
* 2004में राष्ट्रीय जनता दल के लालू प्रसाद यादव।
* 2004 में राष्ट्रीय जनता दल के राजेश रंजन उर्फ़ पप्पू यादव। ( राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के इस्तीफ़ा देने के कारण उप चुनाव हुआ) * 2009 में जनता दल (यूनाइटेड) के शरद यादव।
* 2014 में राष्ट्रीय जनता दल के राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव ( हालांकि बाद में पप्पू यादव ने राजद से बगावत कर अपनी अलग जन अधिकार पार्टी बना लिया )
सनद रहे कि 2014 के लोकसभा चुनाव में कुल पड़े 1034799 वोटों में से पप्पू यादव को 368937 वोट मिले थे जबकि शरद यादव को कुल 312728 वोट । विजय कुशवाहा 252534 वोट लाकर तीसरे नंबर पर रहे थे। 2014 में मधेपुरा लोक सभा क्षेत्र में वोटरों की संख्या 1725693 थी। 2014 के चुनाव में कड़ा त्रिकोणात्मक संघर्ष हुआ था , जिसमें मंडल मसीहा के नाम से मशहूर शरद यादव को शिकस्त मिली थी , लेकिन 2019 के चुनाव का नज़ारा बिल्कुल बदल चुका है । हालांकि इस बार कुल 13 प्रत्याशी मैदान में हैं ।बावजूद इसके मुख्य मुकाबला शरद यादव, दिनेश चंद्र यादव और पप्पू यादव के बीच ही है। खास बात यह भी है कि पहलवानों ने पाला बदल लिया है। शरद यादव अपने घोर विरोधी राजद के टिकट पर चुनाव लड रहे हैं ।उन्हें कांग्रेस, रालोसपा , हम और वीआईपी का समर्थन प्राप्त है । उनका मुकाबला अपने ही प्रिय सहयोगी दिनेशचंद्र यादव और कट्टर विरोधी पप्पू यादव से है । दिनेश जदयू के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं ,जिन्हें भाजपा व लोजपा का समर्थन प्राप्त है।जबकि पप्पू यादव राजद से बगावत कर अपनी पार्टी जाप के टिकट पर भाग्य आजमा रहे हैं । लिहाजा गत चुनाव की भांति इस बार भी मधेपुरा का चुनावी समर त्रिकोणीय हो गया है ।
मधेपुरा में चुनाव लड़ रहे प्रत्याशी
1. राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव – जाप (लोकतांत्रिक ) 2. दिनेशचंद्र यादव – जदयू 3. शरद यादव – राजद
4. अनिल भारती – राष्ट्रवादी जनता पार्टी 5. उमाशंकर -बहुजन मुक्ति पार्टी 6. मनोज मंडल – आम अधिकार मोर्चा 7. राजीव कुमार यादव – बलि राजा पार्टी 8. सुरेश कुमार भारती -असली देशी पार्टी 9. मो.अरशद हुसैन – निर्दलीय 10. सुमन कुमार झा-निर्दलीय 11. राजो साह-निर्दलीय 12. विनय कुमार मिश्र -निर्दलीय 13. जयकांत यादव- निर्दलीय
मधेपुरा लोकसभा क्षेत्र में कुल मतदाता 18,84,216 हैं।जिसमें पुरुष मतदाता 9,74,722 ,महिला मतदाता90,75,92 तथा थर्ड जेंडर 31 मतदाता शामिल हैं। यहां 23 अप्रैल को चुनाव तृतीय चरण में कुल 1940 मतदान केंद्रों पर वोट पड़ेंगे। यूं यहां 1997 से ही जदयू और राजद के बीच सीधी टक्कर होती रही है , लेकिन पिछला चुनाव जदयू और भाजपा के अलग हो जाने से त्रिकोणात्मक हो गया था । इस बार फिर से भाजपा और जदयू साथ आ गया है । पिछले चुनाव में विभिन्न प्रत्याशियों को मिले वोटों तथा जातीय समीकरण के विश्लेषण से तो यहां जदयू मजबूत दिख रहा है , आंकड़ों इतर भी आंकड़े हैं , जो इस दफा त्रिकोणीय संघर्ष की खबर दे रहे हैं ।
राजनीतिक विश्लेषक के अनुसार मधेपुरा लोकसभा क्षेत्र में लगभग 5 लाख यादव , 2 लाख मुसलमान, 3 लागख सवर्ण , 4 लाख पिछड़े , 2 लाख वैश्य तथा 3 लाख अन्य जातियों के मतदाता हैं । आंकडों को देखें तो पिछले चुनाव में जदयू को 312728 तथा भाजपा को 252534 मत प्राप्त हुए थे । अब जदयू -भाजपा साथ है तो दोनों का कुल मत 565,262 होता है । इस आंकड़े के सहारे जदयू प्रचंड जीत का दावा कर रही है । आज की परिस्थिति में जदयू के साथ उक्त आंकड़े बरकरार हैं इसमें संदेह है । इस बार भाजपा -जदयू तो साथ है , लेकिन उससे रालोसपा, और हम छिटकर महागठबंधन के साथ आ चुका है । ऐसे भी पिछले चुनाव में जदयू के भाजपा से अलग चुनाव लड़ने के कारण उसे यादव और मुसलमानों के वोट भी बड़ी संख्या में मिले थे । नीतीश कुमार के महागठबंधन से अलग होने से परिस्थिति बदल चुकी है । यादव और मुसलमान महागठबंधन के प्रति लामबंद नज़र आ रहे हैं ।
इसके अलावा जीतनराम मांझी, उपेंद्र कुशवाहा और मुकेश सहनी के महागठबंधन में शामिल होने से राजग के वोट बैंक से दलित, कुशवाहा और निषाद छिटकते दिख रहे हैं । निवर्तमान सांसद पप्पू यादव का जनता से जुडाव भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता । वे हार- जीत के बड़े फैक्टर माने जा रहे हैं। इसके अलावा दोनों गठबंधन में असंतोष और भीतरघात भी चुनाव परिणाम को प्रभावित कर सकता है । बहरहाल परिणाम वक्त के गर्त में है । सभी प्रत्याशी, दल और गठबंधन अपनी – अपनी जीत का दावा कर रहे हैं । लेकिन हकीकत यह है कि मधेपुरा में संघर्ष त्रिकोणीय हो चला है । जीत का सेहरा किसके सर बंधता है, ये तो वक्त ही बताएगा ।