मैथिली साहित्य अत्यंत समृद्ध, इसमें राष्ट्रीय चेतना का भाव प्रचुर मात्रा में है मौजूद : कुलपति

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मधेपुरा/बिहार : साहित्य राष्ट्र का प्राण है और साहित्य की समृद्घि में राष्ट्र की समृद्घि निहित है. हम सबों को मिलकर साहित्य की समृद्धि में योगदान देना चाहिये. यह बात भूपेंद्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो डा राम किशोर प्रसाद रमण ने कही. वे रविवार को साहित्य अकादेमी नई दिल्ली एवं मधेपुरा महाविद्यालय मधेपुरा के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित एक दिवसीय परिसंवाद का उद्घाटन कर रहे थे. परिसंवाद का विषय मैथिली साहित्य में राष्ट्रीय चेतना था.

कुलपति ने कहा कि मैथिली साहित्य अत्यंत समृद्ध है और इसमें राष्ट्रीय चेतना का भाव प्रचुर मात्रा में मौजूद है. हमें इस भाव को आगे बढ़ाना है. अंग्रेजी शासन काल में आम जनमानस में राष्ट्रीय चेतना के प्रसार में मैथिली साहित्य ने महती भूमिका निभाई. कुलपति ने कहा कि युवा हमारे समाज एवं राष्ट्र के भविष्य हैं. राष्ट्रीय चेतना के प्रसार का दायित्व भी युवाओं पर ही है. आज मैथिली रोजी-रोजगार की भाषा भी बन गई है. युवाओं को इस भाषा के प्रति आकर्षित करने की जरूरत है.

मैथिली साहित्य में व्यापक अर्थ में किया गया है राष्ट्र शब्द का प्रयोग : सुप्रसिद्ध साहित्यकार डा वीणा ठाकुर ने कहा कि मैथिली साहित्य में राष्ट्र शब्द का प्रयोग व्यापक अर्थ में किया गया है. राष्ट्र के लिए भूभाग, जनसंख्या, सरकार एवं संप्रभुता आवश्यक है. उन्होंने कहा कि विदेशी शासकों ने हमारे आत्मगौरव को नष्ट करने का प्रयास किया. मैथिली सहित संपूर्ण भारतीय साहित्य ने राष्ट्रीय चेतना को जागृत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उन्होंने कहा कि वही रचना बचेगी, जिसमें समाज चित्रित रहे. भाषा सभी आंदोलनों के केंद्र में रही है. मैथिली परामर्श मंडल के संयोजक डा अशोक कुमार झा अविचल ने कहा कि राष्ट्रीय चेतना एक सतत प्रक्रिया है और यह राष्ट्र की संपूर्णता से संबंधित है. इसमें राष्ट्र के सभी आयामों का विकास निहित है. इसका अर्थ केवल दूसरे देश से युद्ध नहीं है. उन्होंने कहा कि मिथिला साहित्य पलायनवादी नहीं है. इसने राष्ट्र के उपर पड़ने वाले संकट को हमेशा समझा है. जब भी राष्ट्र के समक्ष चुनौतियां आई हैं, मैथिली साहित्य ने उसका मुकाबला किया है. उन्होंने कहा कि स्वतंत्र भारत में राष्ट्रवाद को मजबूत करने में साहित्य ने महत्वपूर्ण योगदान दिया है. समाज एवं भाषा रहेगी, तभी साहित्य रहेगा.

स्वतंत्र भारत में राष्ट्रवाद को मजबूत करने में साहित्य ने दिया है महत्वपूर्ण योगदान : साहित्य अकादेमी के उप सचिव नारायण सुरेश बाबू ने कहा कि स्वतंत्र भारत में राष्ट्रवाद को मजबूत करने में साहित्य ने महत्वपूर्ण योगदान दिया है. उन्होंने कहा कि राष्ट्रीयता एक उदात्तभाव है. हमारे मनीषियों ने वसुधैव कुटुंबकम के आदर्श द्वारा राष्ट्रीयता को अंतरराष्ट्रीयतावाद से जोड़ा है. सुप्रसिद्ध साहित्यकार डा रामानंद झा रमण ने कहा कि मैथिली साहित्यकार हमेशा समाज एवं राष्ट्र के प्रति संवेदनशील रहे हैं. उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता मैथिली परामर्श मंडल के सदस्य एवं एचएस काॅलेज उदाकिसुनगंज के प्राचार्य डा रामनरेश सिंह ने किया. धन्यवाद ज्ञापन मधेपुरा काॅलेज मधेपुरा के प्राचार्य डा अशोक कुमार ने किया. प्रथम सत्र की अध्यक्षता ठाकुर प्रसाद महाविद्यालय मधेपुरा के प्राचार्य प्रो डा केपी यादव ने की. इस सत्र में डा अशोक मेहता ने मैथिली कथा-साहित्य में राष्ट्रीय चेतना एवं नारायण झा ने मैथिली निबंध, आत्मकथा एवं संस्मरण में राष्ट्रीय चेतना पर आलेख प्रस्तुत किया.

मैथिली में स्वागत गीत एवं देवी वंदना जै-जै भैरवी…, की हुई प्रस्तुति : द्वितीय सत्र की अध्यक्षता पटना विश्वविद्यालय पटना के प्रति कुलपति प्रो डा राजाराम प्रसाद ने की. इस सत्र में डा उपेंद्र प्रसाद यादव ने मैथिली कविता में राष्ट्रीय चेतना एवं किसलय कृष्ण ने मैथिली उपन्यास में राष्ट्रीय चेतना पर अपना शोध-पत्र प्रस्तुत किया. समापन वक्तव्य डा अशोक कुमार झा अविचल ने दिया. कार्यक्रम के पूर्व अतिथियों का अंगवस्त्रम, पुष्पगुच्छ एवं मिथिला पाग से स्वागत किया गया. साथ ही मैथिली में स्वागत गीत एवं देवी वंदना जै-जै भैरवी…, की प्रस्तुति हुई. इस अवसर पर कुलानुशासक डा विश्वनाथ विवेका, सिंडीकेट सदस्य कैप्टन गौतम कुमार, पीआरओ डा सुधांशु शेखर, केपी काॅलेज मुरलीगंज के प्राचार्य डा राजीव रंजन, एमएलटी काॅलेज सहरसा के प्राचार्य डा डीएन साह, यूभीके काॅलेज कड़ामा आलमनगर के प्राचार्य डा माधवेंद्र झा, पूर्व विभागाध्यक्ष डा अमोल राय, विकास पदाधिकारी डा ललन प्रसाद अद्री, डा रंजीत कुमार सिंह, प्रो जूली ज्योति, डा दीनानाथ मेहता, सीनेटर रंजन यादव, डा मनोज भटनागर, डा मनोज झा, उमेश कुमार, भीम कुमार, विवेकानंद, ब्रजेश मंडल, मुकेश, डा वीरेंद्र प्रसाद यादव, डा आरती झा, रूपा कुमारी, जोगी जनक, डा चंद्रेश्वरी यादव, डा रामानंद रमण, डा दमन कुमार झा, डा प्रशांत कुमार मनोज, माधव कुमार, सौरभ कुमार चौहान आदि उपस्थित थे.

अमित कुमार अंशु
उप संपादक

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