डंपिंग ग्राउंड में तब्दील हो रहा है जननायक कर्पूरी ठाकुर मेडिकल कॉलेज, प्रशासान लापरवाह  

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मधेपुरा/बिहार : कोसी-सीमांचल का सबसे बड़ा अस्पताल जननायक कर्पूरी ठाकुर मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल में कोरोना नियमों की खुलेआम धज्जियां उड़ाई जा रही है. अस्पताल में कोरोना नियम को ताक पर रखने के साथ-साथ उसका मजाक भी बनाकर रख दिया गया है. लगभग तीन सप्ताह पूर्व मेडिकल कॉलेज को राज्य सरकार के द्वारा पांच सौ बेड का कोविड डेडीकेटेड अस्पताल घोषित किया गया है. मेडिकल कॉलेज में सिर्फ कोरोना संक्रमित लोगों का ही इलाज किया जा रहा है. जिसके कारण अभी वर्तमान में मेडिकल कॉलेज से निकलने वाला कचरा भी कोरोना संक्रमित लोगों से जुड़ा होता है. जिस पर मेडिकल कॉलेज प्रशासन लापरवाह बनी हुई है. साथ ही कोरोना संक्रमित लोगों को किसी तरह की परेशानी का सामना ना करना पड़े, इसके लिए जिला प्रशासन के द्वारा भी वहां अधिकारी एवं कर्मी तैनात हैं, जिनकी नजर भी इन कचरों पर पड़ती है और वह भी इसे अनदेखा कर देते हैं. अस्पताल का कचरा परिसर में ही फेंका जा रहा है. इससे अस्पताल में आने वाले मरीज के साथ-साथ परिजन भी संक्रमित हो रहे हैं.

कचरे के ढेर के पास कर्मचारियों का आवासीय भवन  : जिस स्थान पर कचरा डंप किया जा रहा है, उससे नजदीक ही मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल के कर्मचारियों का आवास है. कचरे के अंबार से आवास में रहने वाले लोगों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. कचरे में मेडिकल वेस्ट है, जिसे नियमत: नष्ट किया जाना होता है, लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है. मेडिकल कचरा स्वास्थ्य के लिए बहुत ही हानिकारक होता है. इसके बावजूद भी मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल प्रबंधन इस ओर ध्यान नहीं दे रहा है. अस्पताल का कचरा खुले में फेंका जा रहा है. इससे अस्पताल में संक्रमण का खतरा बना हुआ है. अस्पताल में आये मरीजों के साथ-साथ कर्मचारी भी संक्रमित हो सकते हैं.

आवास में रहने वाले लोग परेशान : मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल के आवासीय भवन के पीछे वाले भाग में मेडिकल कचरे का अंबार लगा हुआ है. अस्पताल के सफाई कर्मचारी प्रतिदिन इसी स्थान पर कचरे को डंप करते हैं. इससे यहां कचरे का अंबार लगा रहता है. मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल के कर्मचारियों के लिए परिसर में ही आवास का निर्माण कराया गया है. आवास में काफी संख्या में कर्मचारी अपने परिवार के साथ रहते हैं. वहीं आवास के नजदीक ही अस्पताल का कचरा डंप किया जा रहा है. कचरे से निकलने वाली दुर्गंध से लोग परेशान हैं. मेडिकल कचरे से आस-पास का क्षेत्र प्रदूषित हो रहा है. इससे संक्रमण का खतरा बना हुआ है.

मवेशी खा रहे हैं कचरे का खाद्य पदार्थ : सफाई कर्मचारियों द्वारा फेंके गए कचरे में मरीजों के द्वारा छोड़े गए खाद्य पदार्थ तथा अस्पताल में खाना बनाने के बाद बचे व्यर्थ खाद्य पदार्थों को भी इसी कचरे के ढेर में फेंक दिया जाता है, जहां चिकित्सकों एवं मरीजों के द्वारा उपयोग किए गए मेडिकल कचरे को भी फेंका जाता है. कचरे में खाद्य पदार्थ को देख मवेशी इस पर टूट पड़ते हैं और कचरे को पूरी तरह से बिखेर कर खाद्य पदार्थ खाते हैं. जिसके बाद यही पशु अस्पताल परिसर के बाहरी भागों में भी विचरण करते हैं. ऐसे में कोरोना संक्रमण के बढ़ने की संभावना बढ़ जाती है.

खतरनाक होता है मेडिकल कचरा : मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल से निकलने वाला यह मेडिकल कचरा किसी के लिये भी खतरनाक हो सकता है. इस कचरे में अभी कोरोनाकाल के दौरान कोविड संक्रमण से ग्रस्त मरीजों के उपयोग में लाए गए इंजेक्शन-सुइयां व बोतलें आदि होती हैं. साथ ही कोविड मरीजों का इलाज कर रहे चिकित्सकों के द्वारा उपयोग किए गए पीपीई किट भी इन कचरों में शामिल रहता है. इन मेडिकल कचरों में कई ऐसी सड़ी-गली चीजें भी होती हैं, जिनके सेवन के लिये मवेशी भी आ जाते हैं. जिससे संक्रमण बढ़ सकती है.

अमित कुमार अंशु
उप संपादक

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