दरभंगा/बिहार : आज दरभंगा के कामेश्वर सिंह संस्कृत विश्वविद्यालय में सातवें दीक्षांत समारोह की अध्यक्षता करते हुए राज्य के महामहिम कुलाधिपति फागू चौहान ने कहा कि भारत को फिर से जगतगुरु के रूप में प्रतिष्ठा दिलानी है तो संस्कृत का विकास जरूरी है। यह समय की मांग भी है और भारतीय सांस्कृतिक नव-जागरण के लिए एक गौरवशाली सार्थक अभियान चलाया जाय।
उन्होंने कहा कि आदिकाल से चरित्र-शिक्षा, शांति, सद्भाव एवं विश्वबन्धुत्व का पाठ संस्कृत साहित्य से ही हमने सीखा है। उन्होंने कहा कि वेदों, उपनिषदों, दर्शनों, पुराणों एवं धर्मशास्त्रों ने जीवन यापन का ऐसा आदर्श मार्ग स्थापित किया है जिसपर चलकर हम मानवता का व्यापक कल्याण कर सकते हैं। संस्कृत ज्ञान के अभाव में हम न तो भारत की सांस्कृतिक सम्पन्नता और विपुल ज्ञान सम्पदा से परिचित हो पाएंगे और न ही अपने राष्ट्र की भावनात्मक एकता को सुरक्षित रख पाएंगे। महामहिम ने कहा कि आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति की उपयोगिता और सफलता, आर्यभट्ट द्वारा शून्य की खोज, अणु-परमाणु की परिकल्पना, शल्य चिकित्सा के जनक के रूप में सुश्रुत की प्रसिद्धि संस्कृत की महान परंपरा एवं विरासत का परिचय देती है।
विश्व के ज्ञान विज्ञान के सम्पूर्ण विषय संस्कृत साहित्य में सुरक्षित है। उन्होंने संस्कृत को विश्व की सर्वश्रेष्ठ भाषा बताया। उन्होंने अपने संबोधन में विश्वविद्यालय के संस्थापक महाराजा डॉ. सर कामेश्वर सिंह को श्रद्धांजलि दी। वहीं दीक्षांत समारोह के अवसर पर संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो0 सर्व नारायण झा ने विकास प्रतिवेदन पेश करते हुए कई उपलब्धियां गिनायीं और कहा कि समुचित विकास के लिए यहां रोज नए प्रयोग व प्रयास जारी है। धन्यवाद ज्ञापन प्रति-कुलपति प्रो0 चन्द्रेश्वर प्रसाद सिंह ने किया। जबकि संचालन कुलसचिव कर्नल नवीन कुमार ने किया। साथ ही कुलाधिपति ने करीब दो दर्जन योजनाओं की आधारशिला रखी। इसमें निर्माण व जीर्णोद्धार के अलावा विस्तारीकरण के कार्य शामिल हैं।