2 अक्टुबर पर विशेष : फीकी पड़ गई खादी की रौनक, टूट रहा गांधी के सपनों का भारत…

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वसीम अख्तर
उप संपादक

कभी बाजार की रौनक हुआ करता था अब अपनी बेबसी के आंसू बहा रहा है
मामला-खाधी ग्रामोधोग केंद्र पुरैनी का
80 के दशक में बना यह केंद्र अब मृतप्राय, लगभग 50 लाख का सालाना उत्पाद हुआ करता था इस केंद्र से
⇒ बुनकर की बदहाली या बुनकर खत्म होने के कारण धीरे – धीरे गर्त में चला गया यह केंद्र

मधेपुरा/बिहार : राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के विचारों और मूल्यों का आज भी उतना ही महत्व है जितना कि कल था.लेकिन गांधीवादी विचारधारा के साथ-साथ गांधी के सपनो का भारत भी बदल रहा है। दुनिया में विरले ही ऐसे लोग होते हैं जो समाज पर अपनी अमिट छाप छोड़कर जा पाते हैं। लेकिन बदलते सामाजिक परिवेश व आधुनिकता के इस दौड़ में गांधी के सपनों का भारत बदल चूका है। लोग पश्चिमी सभ्यता की ओर लगभग कूच कर चूके है और इसका जीता जागता उदाहरण हैं।
प्रखंड मुख्यालय स्थित 80 के ही दशक में स्थापित खाधी ग्रामोद्योग भंडार पुरैनी जो कभी बाजार की रौनक हुआ करता था अब अपनी बेबसी के आंसू बहा रहा है। कभी ग्राहकों की भीड़ से परेशान रहने वाले केंद्र के संचालक हरिवंश नारायण सिंह बड़ी अफसोस प्रकट करते हुए बताते है कि आधुनिकता के इस दौड़ में गांधी के सपनों का भारत बदल चूका है. लोग पश्चिमी सभ्यता की ओर कूच कर रहे है। इतना ही नहीं लोग पाश्चात्य भेश-भूषा को ही पहनना पसंद कर रहे है।

 खादी भंडार पुरैनी की स्थापना 1980 के आसपास की गई थी. 1989 ई में खादी भंडार के लिए जमीन खरीद कर भवन निर्माण कराया गया. उस समय उक्त भंडार में कार्यरत कर्मचारीयों की संख्या पांच थी। लेकिन विभागीय सक्षम पदाधिकारी की उदासीनता के कारण कर्मचारीयों की संख्या मात्र एक रह गई है। फलस्वरूप व्यवस्था में गिरावट आई है। आरंभ में बूनकरों की अधिक संख्या रहने के कारण उक्त खादी भंडार प्रतिवर्ष लगभग 50 लाख रूपये का कारोबार करता था। लेकिन सूत की अनूपलब्धता के कारण कारोबार पर प्रतिकूल असर पड़ा। ऐसी बात नहीं की सूत उपलब्ध है ही नहीं, सूत तो उपलब्ध है लेकिन वह तो पॉलिस्टर सूत है। जिसका उपयोग यहां के बुनकर नहीं किया करते है। यही वजह रहा है कि यहां के बूनकर पूस्तैनी पेशे से विमुख हो गये।

 आरंभ में खादी भंडार के द्वारा बूनकरों को धागा उपलब्ध कराया जाता था। जिसे बूनकरों द्वारा वस्त्र तैयार कर खादी भंडार को दिया जाता था। उसके बदले बूनकरों को मजदूरी के तौर पर मात्र 30 रूपये प्रति जोड़ी धोती पर दिया जाता था। जो मजदूरी उपयुक्त नहीं था. खादी भंडार पुरैनी के कर्मचारी हरीवंश नारायण सिंह ने बताया कि भंडार में अभी भी वस्त्र उपलब्ध हैं लेकिन ग्राहकों का अभाव है।


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