मधेपुरा : एतिहासिक है उदाकिशुनगंज का सार्वजनिक दुर्गा मंदिर

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⇒ ढ़ाई सौ साल पुराने इतिहास के पन्नों में समेटे हैं कई रहस्य
⇒ मनोकामना शक्ति पीठ के रुप में ख्याति दूर-दूर तक है फैली
⇒ चंदेल राजपूत सरदार के प्रयास से 18वीं शताब्दी में शुरू कराया गया था पूजा

आकाश दीप
संवाददाता
उदाकिशुनगंज, मधेपुरा

उदाकिशुनगंज/मधेपुरा/बिहार : मनोकामना शक्ति पीठ के रुप में ख्याति प्राप्त उदाकिशुनगंज सार्वजनिक दुर्गा मंदिर न केवल धार्मिक और आध्यात्मिक बल्कि ऐतिहासिक महत्व को भी दर्शाता है। यहाँ सदियों से पारंपरिक तरीके से दुर्गा पूजा धूमधाम से मनाया जाता है। पूजा के दौरान  कई देवी देवताओं की भव्य प्रतिमा स्थापित की जाती है। मंदिर कमिटी और प्रशासन के सहयोग से तीन दिवसीय भव्य मेले का भी आयोजन किया जाता है।

अध्यात्म की स्वर्णिम छटा  बिखेर रही सार्वजनिक दुर्गा मंदिर के बारे में कहा जाता है कि करीब ढ़ाई सौ साल से भी अधिक समय से यहाँ माॅ दुर्गा की पूजा की जा रही है। बुजुर्गों की मानें तो करीब 261 वर्ष पूर्व 18वीं शताब्दी में चंदेल राजपूत सरदार उदय सिंह और किशुन सिंह के प्रयास से उदाकिशुनगंज में माॅ दुर्गा की पूजा शुरू की गयी  थी। तब से यह परंपरा पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है। बुजुर्गों का यह भी कहना है कि कोशी की धारा बदलने के बाद  आनंदपुरा गाँव के हजारमनी मिश्र ने दुर्गा मंदिर की स्थापना के लिए जमीन दान दी थी। उन्हीं के प्रयास से श्रद्धालुओं के लिए एक कुएँ का निर्माण कराया गया था, जो आज भी मौजूद है।

उदाकिशुनगंज निवासी प्रसादी मिश्र मंदिर के पुजारी के रुप में 1768 ई में पहली बार कलश स्थापित किया था। उन्हीं के पाॅचवीं पीढ़ी के वंशज परमेश्वर मिश्र उर्फ पारो मिश्र वर्तमान में दुर्गा मंदिर के पुजारी के रुप में सेवा कर रहें हैं ।

बताया जाता है कि ढाई सौ साल पहले कोशी नदी की उप धारा इधर से ( बर्तमान में उदाकिशुनगंज बाजार ) होकर गुजरती थी। सबसे पहले उसी धारा के किनारे वालू के रेत पर उगे खरही के झाड़ को बाॅधकर उस पर पवित्र कलश रखी गयी थी। उदाकिशुनगंज के जमींदार चंदेल राजपूत सरदार उदय सिंह व किशुन सिंह और बर्धमान स्टेट के जमींदार के प्रयास से नदी के किनारे उस वक्त एक बिशाल फूस का मंदिर बनाकर माॅ दुर्गा की पूजा  धूमधाम से शुरू कराया था। कालांतर में हजारमनी मिश्र ने दुर्गा मंदिर के लिए जमीन उपलब्ध कराया। बर्धमान स्टेट के द्वारा यहाँ अष्टमी को बलि प्रथा शुरू की गयी । जमींदारी प्रथा समाप्त होने के बाद भी इस परंपरा को जीवित रखा गया है। उदाकिशुनगंज अंचल कार्यालय आज भी उस परंपरा का निर्वहन करते हुए बिहार सरकार की ओर से सार्वजनिक रुप से छागर की बलि चढाते हैं। पहला बलि अंचल कार्यालय से ही शुरू की जाती है। भक्तों का मानना है कि माता के हाथ में रखा गया फूल यदि भक्तों के फैलाये आॅचल में आ गया तो मन्नतें जरुर पूरी होतीं है। मंदिर कमिटी के अध्यक्ष रामइकबाल सिंह और सचिव सह मुखिया संजीव कुमार झा बताते हैं कि आज से दो सौ साल पूर्व यहाँ बर्धमान स्टेट की जमींदारी थी।उसी समय मंदिर में पहली बार बलि चढायी गयी थी।बिहार सरकार के अंचल विभाग द्वारा आज भी यहाँ पहली बलि चढायी जाती है। मंदिर कमिटी में कुल 21 सदस्य है। जिनके प्रयास और लोगों के सहयोग से यहाँ बिशाल मंदिर का निर्माण कराया गया है।
2017 से शुरू हुई भंडारे की व्यवस्था : यहाँ के युवा कमिटि के पहल और आम लोगों के सहयोग से गत वर्ष से भंडारे की व्यवस्था की गयी है। यह सराहनीय पहल दूर दराज से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए शुरू की गयी है। कमिटि के सचिव सह पंचायत के मुखिया संजीव कुमार झा बताते हैं कि दूर से आये श्रद्धालुओं के लिए पूजा अर्चना के बाद भंडारे की व्यवस्था की गयी है। भंडारे में प्रसाद के रूप में खीर – पूरी परोसा जाता है।


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