शैक्षिक परिभ्रमण के मद्देनजर क्यों न हो कोशी व सीमांचल में भी पर्यटन स्थलों विकास ?

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मंजर आलम,
(स्वतंत्र टिप्पणीकार)

मुख्यमंत्री बिहार दर्शन योजना अंतर्गत बिहार के सरकारी विद्यालयों मेंअध्ययनरत बच्चों को ऐतिहासिक,दर्शनीय स्थलों का भ्रमण करवाया जाता है।निश्चय ही शैक्षिक परिभ्रमण तथा सह शैक्षिक गतिविधियों से विद्यार्थियों के ज्ञान में इजाफा होता है।मांसिक और बौद्धिक क्षमता विकसित होती है ।बच्चे जिन ऐतिहासिक धरोहर और दर्शनीय स्थलों के बारे में किताबों से जानकारी प्राप्त करते हैं, परिभ्रमण के दौरान उसे करीब से देखने का अवसर मिलता है जिससे उसका ज्ञान चिर स्थायी हो जाता है तथा संबंधित स्थलों के बारे में कक्षाओं में पढ़ाई गई बातें प्रमाणित हो जाती हैं।

       कहते हैं भ्रमण बच्चों के लिए शिक्षा का अंग है जबकि बड़े लोग इससे तरह तरह के अनुभव हासिल करते हैं। निश्चय ही सरकार के इस पहल की प्रशंसा करनी होगी।अधिकांशतः सरकारी विद्यालयों के बच्चों को मुख्यमंत्री बिहार दर्शन योजना का लाभ मिल रहा है ,यह एक सुखद पहलू है ।इसके लिए विद्यालय परिवार और शिक्षा विभाग बधाई के हकदार हैं।

विडम्बना है कि कोसी व सीमांचल में जहाँ वन्य अभ्यारण्य की कमी है वहीं ऐतिहासिक महत्व के स्थलों को भी विकसित नहीं किया जा रहा है। पर्यटन के क्षेत्र में यहाँ कोई खास काम नहीं हो पाया है। हालाँकि कोशी बराज, सिंहेश्वर मंदिर, मत्स्यगंधा झील, काझा कोठी पार्क आदि स्थलों पर बच्चे परिभ्रमण के दौरान जाते तो हैं परंतु वहाँ ऐसी कोई खास व्यवस्था नहीं है जो एक दर्शनीय स्थल पर होनी चाहिए।

ऐसा नहीं है कि कोशी और सीमांचल के इलाके ऐतिहासिक दृष्टि से पिछड़े हुए हैं यहाँ कई धार्मिक स्थल मौजूद हैं तो साहित्यिक जगत के कई महत्त्वपूर्ण हस्ताक्षर की जन्मस्थली रही है।मुगल काल की कई स्मृतियाँ जुड़ी हैं तो अंग्रेजी शासन की याद दिलाती कई स्मरणीय स्थल मौजूद हैं।पूर्णियाँ जिला अंतर्गत जलालगढ़ का किला,बरहरा काझा कोठी में नील की कोठी, अररिया जिले स्थित गाँव औराही हिंगना जिसेआँँचलिक कथा- सम्राट फनीश्वरनाथ रेणु की जन्मस्थली होने का गौरव प्राप्त है।मधेपुरा का सिंहेश्वर मंदिर, महर्षि मेँही की अवतरण भूमि, बाबा विशु राउत का पचरासी धाम, सहरसा स्थित मंडन मिश्र का बनगांव सुपौल के गणपतगंज का विष्णु मंदिर जैसे कई स्थान को पर्यटन के रूप में विकसित किया जा सकता है। अररिया के कुशियारगाँव में स्थित बायोडायवर्सिटी पार्क को अभी और भी उन्नत करने की आवश्यकता है।

        इस ईलाके में वन्य अभ्यारण्य बनाए जाने की जरूरत शिद्दत से महसूस की जा रही है ताकि बच्चों को वन्यजीव जन्तुओं, पक्षियों और जलीय जीवों को देखने का अवसर मिले तथा पर्यावरण संरक्षण को महत्व को नजदीक से समझ सके। जिले के ऐतिहासिक महत्व के स्थलों को पर्यटन के रूप में विकसित किया जाए तो काफी श्रेष्यकर होगा।

        परिभ्रमण दल में सम्मिलित शिक्षकों को चाहिए कि वे छात्रों को उन स्थलों के महत्व से अवगत कराएँ जहाँ वे बच्चों को परिभ्रमण पर ले जाते हैं।परिभ्रमण पर जाने से पहले संबंधित स्थल के बारे में पूरी जानकारी एकत्रित की जाए तथा बच्चों को बताया जाए। बिहार सरकार और पर्यटन विभाग को भी ऐतिहासिक धरोहरों के संरक्षण और संवर्द्धन पर विशेष ध्यान देना चाहिए।


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