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उप संपादक
मधेपुरा/बिहार : शराबबंदी के बाद शहर में युवा पीढ़ी में सस्ते नशे की ओर तेजी से बढ़ रहे हैं। शहर में अधिकतर युवा सनफिक्स व व्हाइटनर के नशे की आदि बन चुके हैं। वहीं बीएनमंडल स्टेडिम इन युवाओं को नशे के लिए काफी सुरक्षित स्थान भी साबित हो रहा है।
ये सारी सच्चाई तब सामने आई जब एक युवक को व्हाइटनर का सेवन करते देखा गया। जब युवक से बात की गई तो युवक का कहना था कि उसे व्हाइटनर की आदत हो चुकी है, उसे हर रोज़ इसकी जरूरत है। मेडिकल दुकानों में बिना डाक्टर के पर्ची के नशे की दवाइयां व इंजेक्शन नही मिलने के कारण नशेड़ी युवा व मासूमों ने व्हाइटनर, सनफिक्स को अपना प्रिय नशा बना लिया है।
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सनफिक्स एक तरीके का गोंद है। इससे प्लास्टिक का सामान, कागज व करंसी नोट, जूते-चप्पल व अन्य कई घरेलू सामानों के टूटने या फटने पर उन्हें मरम्मत कर उपयोग के लायक बनाया जाता है। व्हाइटनर एक तरह का इरेज़र है जिसका उपयोग हैंडराइटिंग को मिटाने के लिए किया जाता है। यह मुख्यत: पान की दुकान, जनरल स्टोर व किताब की दुकानों पर कम दामों में आसानी से मिल जाता है। इसका उपयोग युवा वर्ग व मासूम प्लास्टिक पर उड़ेलकर दोनो हाथों से उसे उठाकर नाक के सामने लाकर उसे सूंघकर करते हैं।
युवा व किशोर हो रहे हैं इस लत के शिकार
शराबबंदी के बाद नशे का तरीका बदल गया है। शराब नहीं मिलने के चलते अब विकल्प निकालने में लगे हुए हैं। इसके लिए अब व्हाइटनर, सनफिक्स का उपयोग कर रहे हैं। इसके सबसे अधिक शिकार युवा व किशोर हो रहे हैं। रूमाल या छोटे कपड़े में थीनर, व्हाइटनर को डाल कर उपयोग करने के चलते कई युवकों व खास कर किशोरों के परिजन परेशान हैं। जिले के चौक-चौराहों पर युवाओं के साथ ही छोटे-छोटे बच्चे नशा के दूसरे साधन सनफिक्स, सुलेशन, व्हाइटनर का जमकर इस्तेमाल कर रहे। शहर का हाल यह है कि युवाओं की अपेक्षा छोटे-छोटे बच्चे इसके सेवन कर रहे हैं। नशा के खतरनाक साधन का उपयोग बच्चे व युवा नशा के इतने गिरफ्त में चले जा रहे कि वे शराब गांजा, भांग के बदले अब पन्नी में सुलेशन व सनफिक्स गम लेकर पंपिंग करते हुए नशा का सेवन कर रहे हैं। रुमाल या छोटे कपड़े में व्हाइटनर को डाल कर उपयोग किया जा रहा।
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नशे की लत के कारण आपराधिक मामलों में नाबालिगों की संलिप्तता
शराब से कहीं ज्यादा घातक इस नशीले पदार्थ की लत के जद में आ चुके कई किशोर या युवा चलते-फिरते आपको सड़कों पर आराम से मिल जायेंगे। और तो और इसी वजह से आपराधिक मामलों में नाबालिगों की संलिप्तता बढ़ती जा रही है। ऐसा कोई जुर्म नहीं है, जिसमें नाबालिग शामिल न हो। मोबाइल चोरी व छिनतई से लेकर दुष्कर्म और हत्या जैसे संगीन मामलों में भी नाबालिगों की बढ़ती तादाद सभी के लिए चिंताजनक है। नाबालिगों का आपराधिक घटनाओं में संलिप्त होना बेहद गंभीर मसला है। पारिवारिक व सामाजिक बदलाव का असर बच्चे के नाजुक दिलों-दिमाग पर भी हो रहा है। परिवार में उचित देखभाल की कमी एवं नैतिक शिक्षा नहीं मिलने से बच्चे नशा व अपराध की ओर कदम बढ़ा रहे हैं, जिसके चलते नाबालिगों में आक्रामकता की प्रवृत्ति तेजी से बढ़ती जा रही है। यही कारण है कि अभिभावकों, मनोवैज्ञानिकों व समाजशास्त्रियों के लिए यह मुद्दा चिंता का विषय बन गया है।
बाल अपराधियों की संख्या में जबरदस्त वृद्धि के आंकड़े किसी भी सभ्य समाज के लिए शुभ संकेत नहीं हैं, जिनके कंधों पर देश की बागडोर टिकी है, उनका आपराधिक वारदात में संलिप्त होना एक गंभीर मामला है। ऐसे में अभिभावकों व परिजनों की जिम्मेवारी बढ़ जाती है। बच्चों के रहन-सहन एवं उनके मित्रों के संबंध में जानकारी रखना जरूरी है।
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