लोकतांत्रिक प्रणाली में मताधिकार काफी महत्वपूर्ण है। जनतंत्र की नींव मताधिकार पर ही रखी जाती है। देश के प्रत्येक व्यस्क नागरिकों को (जिनकी उम्र 18वर्ष या उससे अधिक है, तथा वह भारत का नागरिक हो ) को देश की सरकार बनाने अथवा अपनी प्रतिनिधि निर्वाचित करने के लिए वोट देने का संवैधानिक अधिकार प्राप्त है। लम्बे समय तक मतदान बैलेट पेपर के द्वारा ही करवाई जाती रही परंतु अब इसके लिए ईवीएम और वीवीपैट का इस्तेमाल किया जाने लगा है।
ईवीएम में विसंगतियों की खबरें भी सुनने को मिलती रही हैं। जहाँ कई राजनीतिक दलों ने समय समय पर इसे हटाने और पुनः बैलेट पेपर से वोटिंग कराने की मांग की है वहीं चुनाव आयोग ईवीएम की विश्वसनीयता पर अड़ी है। ऐसे में मतदाताओं के शंकाओं को दूर करना चुनाव आयोग की अहम जिम्मेदारी है।
सर्वोच्च न्यायालय ने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) पर सवाल उठाने पर छ: महीने की जेल के कानूनी प्रावधान को चुनौती देने वाली याचिका पर संज्ञान लेते हुए चुनाव आयोग को नोटिस जारी किया।
न्यायालय ने एक याचिका पर नोटिस जारी किया जिसमें ईवीएम और वीवीपीएटी के बीच विसंगतियों के बारे में शिकायत दर्ज करने को गैरअपराधी कृत्य बनाने की मांग की गई है।
चुनाव नियमों की धारा 49 एमए के अनुसार यदि कोई व्यक्ति ईवीएम में विसंगति के संबंध में शिकायत (किसी विशेष पार्टी लिए वोट किया लेकिन किसी अन्य को चला गया) करता है और जांच के बाद यह गलत पाया जाता है तो शिकायतकर्ता पर ‘गलत जानकारी देने के लिए’ आईपीसी की धारा 177 के तहत मुकदमा चलाया जा सकता है। इस धारा के तहत छह महीने की जेल या 1,000 रुपये जुमार्ना या दोनों सजा हो सकती है।
याचिकाकर्ता सुनील अहया ने अदालत से कहा कि यह धारा मतदाता को वोट डालने के दौरान कोई विसंगति नजर आने पर शिकायत करने से रोकती है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं और इनके आलेख विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहते हैं)