भारत की आपसी भाईचारे की मजबूती को चमक देता है होली

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प्रसन्ना सिंह “राठौर”
अतिथि संपादक

होली एक चर्चित सामाजिक एवम् धार्मिक पर्व के साथ साथ रंगों का त्योहार है। बूढ़े, नर – नारी सभी इसे बड़े उत्साह से मनाते हैं जिसमें जातिवाद – वर्ण भेद का कोई स्थान नहीं होता है। इस पर्व को नवात्रैष्टि यज्ञ पर्व भी कहा जाता है, जिसके अन्तर्गत खेतों से आए नवीन अनाज को यज्ञ में हवन करके प्रसाद लेने की परम्परा रही है । उस अन्ना को होला कहते हैं इसी से इसका नाम होलिकोत्सव भी पड़ा।

एक प्रचलित कथानुसार हिरण्यकशिपु की बहन होलिका के मारे जाने की स्मृति से मनाने से भी जुड़ा है।होली का समय अपने आप में अनूठा होता है। फ़रवरी – मार्च के माह में मनाए जाने वाले इस पर्व के दौरान मौसम बहुत प्यारा होता है अर्थात न बहुत गर्मी होती है न बहुत ठंडी । फाल्गुन माह के पूर्ण चंद्रमा के दिन यह पर्व मनाने की परम्परा रही है। जनसामान्य के इस सबसे बड़े पर्व को लोग आपसी भेदभाव को भुलाकर मनाते हुए पारस्परिक सौमनस्या, एकता और समानता को मजबूत करती है।

भारत में होलिका की अग्नि में पुराने वर्ष की खामियों को जलाते हुए नई आशाएं, आकांक्षाएं की किरण को जन्म देती है।होलिका दहन के कई मायने होते हैं इसमें फसल की बालियों को भूनकर खाने और उसके स्वाद सहित उठते धुएं से अगली फसल की कल्पना करते हैं।साथ ही होलिका दहन के राख को कई रूपों में उपयोग किया जाता है। होलिका दहन के दिन धुड़खेल का भी रिवाज रहा है। मुल्क के अलग अलग राज्यों में इसे अलग अलग नामों से जाना जाता है।कर्नाटक में इस त्योहार को कामना हब्बा, तमिलनाडु में कामन पंडीगयी के रूप में मनाया जाता है।राधा और अन्य गोपियों के साथ श्री कृष्ण के प्रेममय शरारत को भी होली का कारण माना जाता है।होली के दिन अलग – अलग तरह के स्वादिष्ट भोजन के आनंद लेने का अपना ही मज़ा है।

खासकर कुछ नशीले पेय की भी परम्परा रही है। होली के दिन एक दूसरे पर रंग – गुलाल लगाने का अपना मज़ा होता है। पिचकारियों से गीले रंग लगाए जाते हैं । लंबे समय तक पारम्परिक प्राकृतिक रंगों का प्रयोग होता रहा । परंतु आजकल जिन रंगों का प्रयोग किया जाता है वो कुछ स्तरों पर घातक भी होते हैं।

कुल मिलाकर रंग बिरंगी रंगों से सजा यह पर्व आपसी भाईचारे को मजबूत करते हुए बीच की दूरी को दूर करने में बहुत कारगर होती है। बदलते समय के साथ अब होली की परिभाषा भी बदलने लगी है।अब यह पर्व पूर्ण रूपेण सामाजिक न होकर परिवार तक सीमित होने लगा है। इस पर्व के आड़ में कुछ असमाजिक तत्व कुछ हुड़दंग भी करते हैं जिससे समाज की शांति व्यवस्था पर दरार पड़ने लगती है। लेकिन इन सबों के बाद भी आज भारत का सर्वाधिक चर्चित पर्व होली बड़ी चपलता से अपनी भूमिका निभा रहा है।


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