मधेपुरा/बिहार : वर्ष 1992 में स्थापित तत्कालीन सात जिला व वर्तमान में तीन जिलों में सिमटे बीएनएमयू की आल ओवर इंडिया रैंकिंग में बिहार के विश्वविद्यालयों में सबसे नीचे होने पर वाम छात्र संगठन एआईएसएफ ने गहरी चिंता व्यक्त करते हुए इसके कारण व निवारण पर मंथन की बात कही है।
संगठन के बीएनएमयू प्रभारी हर्ष वर्धन सिंह राठौर ने कहा कि दुखद है कि स्थापना के तीन दशक पूरा करने जा रहे बीएनएमयू संस्कृति विश्वविद्यालय दरभंगा के बाद बिहार के विश्वविद्यालयों से देश के 935 विश्वविद्यालयों में 6 सौ से और विश्व स्तर पर दस हजार से ऊपर स्थान पाने वाला विश्वविद्यालय है। उन्होंने कहा कि बीएनएमयू को कभी प्रशासनिक, राजनीतिक, सामाजिक स्तर पर इस क्षेत्र के गौरव के रूप में स्थापित करने की पहल नहीं की गई, जिसका फल है कि सूबे व देश के चर्चित विश्वविद्यालयों में इसकी गणना होने के बजाय यह लगातार सबसे निचले पायदान का विश्वविद्यालय बनता जा रहा है।
उन्होंने कहा कि अपने स्थापना काल से कई विवादों से जुड़े बीएनएमयू में समय पर नामांकन, परीक्षा व परिणाम सपना बन कर ही रह गया। राठौर ने कहा कि रैंकिंग के स्तर को सुधारने के लिए सबको मिलकर पहल करना चाहिए. रैकिंग, कई बातों को ध्यान में रखकर बनाई जाती है, मसलन, छात्र शिक्षक अनुपात, भवन, प्रयोगशाला, पुस्तकालय, छात्रावास और शिक्षक आवास, दाखिला रिजल्ट, प्लेसमेंट, शोध की स्थिति और स्तर, आर्थिक स्थिति, शैक्षणिक और एकेडमी वातावरण इत्यादि. इसमें सबसे ज्यादा दोष सरकार और स्थानीय जनप्रतिनिधि का भी है. बिहार के अधिकांश विश्वविद्यालयों की रैंकिंग भी संतोषजनक नहीं है। इसकी कमियों को प्रशासन, रजिस्ट्रार, वित्त अधिकारी, शिक्षकगण, छात्र छात्राओं को मिलकर ठीक करना होगा, साथ ही शोध स्तर ऊंचा करने के लिए, रिसर्च जरनल्स का प्रकाशन और बाहरी सम्मानित विश्वविद्यालयों से, देश विदेश से एमओयू और कोलाबोरेशन भी।
छात्र नेता राठौर ने वर्तमान कुलपति से मांग किया कि कभी आल ओवर इंडिया की रैंकिंग में पांच सौ के अंदर रहे बीएनएमयू के 641 पर आने के पीछे के कारणों पर मंथन और निवारण के लिए योजनाबद्ध पहल की जरूरत है, अन्यथा यह विश्वविद्यालय नैक से मान्यता का सपना पाले नाम मात्र का ही विश्वविद्यालय रह जाएगा। इस विषम हालात के लिए संगठन जिम्मेदार सभी वर्गों से सकारात्मक पहल की मांग करेगा।