एक आम इंसान जिसने बदल दी समाज की सोच

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अनूप ना. सिंह
स्थानीय संपादक

एक कहावत है कि अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता पर अब यह कहावत धूमिल हो गई है और इसे धूमिल किया है एक आम इंसान, जिसने समाज की सोच बदल कर रख दी है नाम है विकास चंद्र गुड्डू बाबा ने।  तंत्र साधना से गंगा मुक्ति आंदोलन की लंबी लड़ाई लड़ने वाला यह इंसान समाज की गंदगी को साफ करते करते अब राजनीति की गंदगी को साफ करने के मुहिम पर निकल पड़ा है।  बेहद साधारण कद काठी वाला बाबा की वेशभूषा वाला यह इंसान खुद में एक आंदोलन है, जिसके अंदर जिद है जुनून है जोश है औरभ्रष्ट व्यवस्था से लड़ने की ताकत भी।

मूल रूप से बिहार के सिवान जिले के गोरिया कोठी निवासी विकासचन्द्र उर्फ़ गुड्डू बाबा के पिता जी इलाहबाद (प्रयागराज) में बिरला ग्रुप की एक अख़बार थी लीडर, उसी के कर्मचारी थे और अपने परिवार के साथ इलाहबाद (प्रयागराज) में हीं रहते थे । विकासचन्द्र का जन्म और बचपन भी इलाहबाद (प्रयागराज) में हीं बिता। जब लीडर अख़बार बंद हो गई तब वर्ष 1971 में विकासचन्द्र के पिताजी सपरिवार पटना आ गये। गुड्डू बाबा को तंत्र साधना को करीब से जानने कि प्रबल जिज्ञासा थी, इसी क्रम में उनका पटना के बांस घाट पर आना जाना लगा रहता था। 22  दिसंबर1998 की रात उनके साथ एक ऐसी घटना घटी जिसने गुड्डू बाबा को अंदर तक झकझोर दिया। रात्रि तंत्र साधना के बाद वे उठे तो उनकी नजर वहां बैठे एक व्यक्ति पर पड़ी, वह व्यक्ति अपनी पत्नी का अंतिम संस्कार करने वहां आया था, और वहां नाले में तब्दील गंगा में स्नान कर रहा था।

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जब गुड्डू बाबा ने उस बृद्ध से पूछा कि आप यहाँ क्यों स्नान कर रहे हैं, बाहर हैण्ड पंप लगा हुआ है वहां स्नान कर लीजिये। इस बात पर वह बृद्ध बोला, बाबा जी यह मेरी धर्म पत्नी है और इनकी प्रबल इच्छा थी कि मेरा अंतिम संस्कार पटना के बांस घाट पर हो पर मेरे पास इतने पैसे नही है की मैं यहाँ से तीन तीन किलोमीटर आगे मुख्य धारा में जा कर इनका अंतिम संस्कार करूं। इस बात से गुड्डू बाबा सोंचने लगे कि न जाने कितने लोग यहाँ शव का अंतिम संस्कार करने आते होंगे और उन्हें भी इन परेशानी का सामना करना पड़ता होगा, अगर हम गंगा को प्रदूषित न करते तो शायद आज भी माँ गंगा पहले कि तरह पटना के किनारे से हीं बहती।

 फिर गुड्डू बाबा ने पटना के जे पी गोलंबर  गांघी मैदान में गंगा बचाओ अभियान के लिए 48 घंटे का उपवास किया, और उनका ये उपवास तात्कालिक डी एम गौतम गोस्वामी ने तुड़वाया था। इसी कड़ी में गुड्डू बाबा ने बच्चों को लेकर जिलाधिकारी आवास के सामने ह्यूमन चेन बनाया। जब गुड्डू बाबा अपने सहयोगियों के साथ गंगा नदी में नाव से विचरण कर रहे थे तो उस दौरान वे पी. एम.सी.एच  के ठीक पीछे पहुंचे, तब वहां मौजूद एक कुत्ता जिसे गुड्डू बाबा अपनी भाषा में भैरव कहते हैं ने उन सब को देख कर जोर-जोर से भैंकने लगा मानो वह कुछ कहना चाह रहा हो। इस दृश्य को देख गुड्डू बाबा ने उस भैरव के समीप जाने का निर्णय लिया और वहां मौजूद लोगों के मना करने के बावजूद जब नाव से उतर कर उसके पास जाने लगे तो वो भैरव भी सीढ़ियों से होते हुए पी. एम.सी.एच के परिसर में भाग गया जब गुड्डू बाबा भी सीढ़ियों से होते हुए पी. एम.सी.एच के परिसर में गए तो वहां का दृश्य देख कर द्रवित हो उठे। वहां सैकड़ो लावारिस लाशें फेंकी हुई थी। गुड्डू बाबा ने उन लावारिस लाशों की तस्वीर ली जो इंडियन नेशन अख़बार के पहले पन्ने पर छपी,  और अगले दिन दैनिक जागरण अख़बार में छपी थी।

उन तस्वीरों को ले कर गुड्डू बाबा बिहार के तात्कालिक राज्यपाल, मुख्य मंत्री सभी के पास गयें पर जब कहीं से कुछ सकारात्मक पहल न होते देख अपना पहला पी आई एल पटना हाई कोर्ट में 21 जुलाई 2000 को लावारिस लाशों के सम्मान के लिए और गंगा को प्रदुषण मुक्त करने के लिए दायर किये। 16 मार्च 2001 को जिसका परिणाम एक ऐतिहासिक फैसले के रूप में आया जिसने कहा गया कि लावारिस लाशों के समुचित निष्पादन कि जवाबदेही राज्य सरकार की है और देश में पहली बार लावारिस लाशों के सम्मान देने की शुरुवात हुई तो वो पटना से शुरू  हुई और इसका श्रेय जाता है गुड्डू बाबा को । जब देश में आर.टी.आई. आया तब गुड्डू बाबा  देश के हर राज्य के डी.जी.पी. से सुचना माँगा कि आप के राज्य में कैलेंडर वर्ष में कितनी लावारिस लाशें पाई गई है, और उन लाशों के निष्पादन के लिए सरकार के तरफ से कितने रूपए का एलॉटमेंट है। जब गुड्डू बाबा के पास इसकी सुचना पत्र के माध्यम से आने लगा तो उसकी गिनती छोड़िये उन सब पत्रों का वजन तक़रीबन एक सौ किलो से अधिक होगा, सबसे चौकाने वाला सच यह सामने आया कि,  उन लाशों के निष्पादन के लिए किसी राज्य सरकार द्वारा दो सौ का एलॉटमेंट है तो कहीं साथ सौ सिर्फ पंजाब एक मात्र ऐसा राज्य मिला जो पांच हजार का एलॉटमेंट देती है ।  इन सब के बाद गुड्डू बाबा ने एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट में पी आई एल दायर किया पर लावारिस लाशों के समुचित निष्पादन का कोई समाधान नहीं निकल पाया। इस बात का गुड्डू बाबा को तकलीफ भी है कि कहने को तो हमारा देश बहुत तरक्की कर रहा है समाज की सुविधा के लिए नए नए कानून भी पारित हो रहे हैं पर मानविये लावारिस लाशों का सम्मान जनक समुचित निष्पादन हो सके, ऐसा कानून आज तक क्यों नहीं बन पाया।


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