प्रखर स्वतंत्रता सेनानी रासबिहारी मण्डल की पुण्यतिथि पर “द रिपब्लिकन टाइम्स” की अतिथि संपादक प्रसन्ना सिंह राठौर की ✍️ से एक खास प्रस्तुति….

Spread the news

 

प्रसन्ना सिंह राठौर
अतिथि संपादक

   किसी समाज की मिट्टी अपनी संस्कृति की संपूर्णता की अभिव्यक्ति के लिए अपने समाज में ही समय – समय पर ऐसे लोगों को उत्पन्न करती है, जिनके कर्मयोग की क्षमता देखकर मानव समाज आश्चर्यचकित हुए बिना नहीं रहता। भारत भूमि की गंगा – जमुनी संस्कृति शौर्य समन्वय और सहयोग के संग शांति की परिचायक रही है। इन्हीं गुणों के मूर्तमान स्वरूप मधेपुरा के लाल रासबिहारी लाल मण्डल थे।

 1866 में मुरहो निवासी रघुवर दयाल मण्डल के यहां जन्मे रासबिहारी लाल मण्डल आगे चलकर स्वतंत्रता  संग्राम के सेनानी के रूप में इतिहास में स्थापित हो गए। ग्यारहवीं तक शिक्षा प्राप्त रासबिहारी बाबू को हिंदी, उर्दू, मैथिली, फारसी, संस्कृत, अंग्रेजी और फ्रेंच भाषा पर मजबूत पकड़ थी। मुरहो एस्टेट के जमींदार रहे रासबिहारी बाबू उम्र के चौथे दशक में प्रवेश करते-करते राष्ट्रीय फलक के सितारे बन चुके थे। उनकी सक्रियता का ही प्रमाण था कि मधेपुरा राष्ट्रीय आंदोलन के मुख्य धारा से जुड़ चुका था। इनका तेवर का आलम कुछ यूं था कि तत्कालीन भागलपुर कलक्टर लॉयल और मधेपुरा एस डी ओ सीरीज के कोपभाजन का इन्हे शिकार भी होना पड़ा। शायद यही कारण था कि अंग्रेजों ने इनपर अनगिनत केस लाद दिए। ऐसे विषम दौर में राष्ट्रवादी मुख्तार बाबू और गोवर्धन प्रसाद ने उनके सारे मुकदमों की पैरवी की और जीत दिलाई। ये ब्रिटिश सरकार के लिए किसी तमाचे से कम नहीं था। कई तथ्यों की माने तो रास बिहारी बाबू भारत में अग्रिम जमानत पाने वाले पहले शख्स थे। तत्कालीन विभिन्न पत्र  – पत्रिकाओं में उनके बारे में प्रमुखता से प्रकाशित किया गया। दरभंगा महाराज ने “मिथिला के शेर” कह कर इनका मान बढ़ाया ।

1911 में इन्होंने “गोप जातीय महासभा” की स्थापना की, जिसका इन्हें व्यापक सहयोग मिला। इसका मूल उद्देश्य यादव समाज का उत्थान और उत्रोतर विकास था। “भारत माता ” नामक पुस्तक की रचना कर उन्होंने अपनी राष्ट्रीय भावना को प्रस्तुत करने का काम किया। पूर्ण स्वराज की मांग करने वाले अग्रणी नेताओं में शुमार रासबिहारी बाबू का सुरेन्द्र नाथ बनर्जी, बिपिन चन्द्र पाल जैसे शीर्ष नेताओं से नजदीकी संपर्क था। उस दौर की चर्चित पत्रिकाओं में उनके लेख छपा करते थे। वायसराय को दिए जाने वाले मांगपत्र के प्रारूप को तैयार करने हेतु सर सैयद हसन इमाम की अध्यक्षता में 19 अक्टूबर 1917 की बैठक में जिन उन्नीस लोगों का चयन हुआ उनमें से एक नाम रासबिहारी बाबू का भी था। सनद रहे इस टीम में सच्चिदानंद सिन्हा जैसे नेता थे। वक़्त की लालिमा का तांडव चलता रहा। 1918 में कांग्रेस अधिवेशन के दौरान उनकी तबियत बिगड़ी जो कई प्रयास के बाद भी नहीं सुधरी। ताउम्र भारत माता की आजादी के लिए संघर्षरत रासबिहारी लाल मण्डल ने बावन वर्ष की उम्र में अपने कनिष्ठ पुत्र बी पी मण्डल के जन्म के अगले दिन 26 अगस्त 1918 को दुनिया से विदा ली।

जीवन सफर में सिर्फ़ पांच वसंत का सफर तय करने वाले रासबिहारी बाबू ने स्वतंत्रता आंदोलन में अपनी नेतृत्वकारी छाप छोड़ी। कोसी की इस उर्वरा भूमि को सदैव अपने इस लाडले पर गर्व रहेगा। स्वतंत्रा संग्राम में जब भी कोसी का उल्लेख होगा तो रासबिहारी बाबू बरबस ही याद आएंगे।

“द रिपब्लिकन टाइम्स” परिवार की ओर से उनकी 102 वीं पुण्यतिथि पर नमन 


Spread the news