मधेपुरा : मखाने की खेती से बदल रही है उदाकिशुनगंज के किसानों की क़िस्मत

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कौनैन बशीर
वरीय उप संपादक

मधेपुरा/बिहार : मखाने की खेती किसानों के लिए वरदान साबित हो रही है। जिन किसानों की ज़मीन बंजर होने और जलभराव की वजह से बेकार पड़ी थी, और किसान दाने-दाने को मोहताज हो गए थे। अब वही किसान अपनी बेकार पड़ी ज़मीन में मखाने की खेती कर ख़ुशहाल ज़िन्दगी बसर कर रहे हैं। इस काम में परिवार की महिलाएं भी कंधे से कंधा मिलाकर तरक्क़ी की राह पर आगे बढ़ रही हैं। बहुत-सी महिलाओं ने ख़ुद ही तालाब पट्टे पर लेकर मखाने की खेती शुरू कर दी है। उन्हें मखाने की बिक्री के लिए बाज़ार भी जाना नहीं पड़ता। कारोबारी ख़ुद उनके पास से उपज ले जाते हैं। ये सब किसानों की लगन और कड़ी मेहनत से ही मुमकिन हो पा रहा है।

ज्ञात हो कि बिहार के मिथिलांचल में पैदा होने वाला मखाना अब उदाकिशुनगंज प्रखंड क्षेत्र के सहजादपुर एवं खाड़ा पंचायत के खेतों में भी दस्तक दे दिया है। बढ़ती आबादी और घटती तालाबों और तालों की संख्या के बाद मखाना अनुसंधान संस्थान दरभंगा के कृषि वैज्ञानिकों ने ऐसी तकनीक विकसित की है, जिसमें अब खेतों में भी मखाना की खेती हो सकेगी। मालूम हो की सहजादपुर पंचायत के चौरी भित्ता के कई ऐसे क्षेत्र हैं,जहां पर खेतों में साल भर जल जमाव रहता है। ऐसे में इन खेतों में मखाना की खेती करके दर्जनों किसान आर्थिक रूप से समृद्ध हो हो रहे हैं। राजेंद्र सिंह, विनोद मंडल आदि किसानों ने बताया कि मखाना के खेती के लिए खेत में 6 से लेकर 9 इंच तक पानी जमा होना चाहिए। सरकार की तरफ से भी मखाना की खेती को भी बढ़ावा देने के लिए काम किए जा रहे हैं।

मखाना की देश के साथ ही अंतरराष्टीय बाजार में बहुत ज्यादा मांग है। भारत के अलावा चीन, जापान, कोरिया और रूस में मखाना की खेती की जाती है। देश में बिहार के दरभंगा और मधुबनी में सबसे ज्यादा मखाना की खेती की जाती है। बताया जाता है कि उदाकिशुनगंज अनुमंडल में बड़ी संख्या में जो तालाब हैं और जिसमें मछली पालन होता है वहां भी मखाना की खेती की बहुत संभावना है। मखाना की खेती की एक विशेषता यह भी है कि इसमें लागत बहुत कम आती है। इसकी खेती के लिए तालाब या ताल चाहिए जहाँ जल जमाव वाले खेत हो।

मखाने उगाने और बनाने की विधि : मखाने के फूल कमल की तरह होते हैं जो उथले पानी वाले तालाबों में पाए जाते हैं। इसीलिए जलभराव वाले क्षेत्रों यहां धान के खेतों में भी इसे उगाया जा सकता है। इसकी खेती की खेती के लिए तापमान 20 से 25 डिग्री सेल्सियस तथा सापेक्षिक आर्द्रता 50 से 90 प्रतिशत होनी चाहिए। मखाने की खेती के लिए तालाब चाहिए होता है जिसमें ढाई से तीन फीट पानी होना चाहिए। इसकी खेती में किसी भी प्रकार की खाद का इस्तेमाल नहीं किया जाता। खेती के लिए, बीजों को पानी की निचली सतह पर 1 से डेढ़ मीटर की दूरी पर डाला जाता है। बुवाई के महीने दिसंबर से जनवरी के बीच के होते है। बुवाई के बाद पौधों का पानी में ही लगाया जाता है। इसकी पत्ती के डंठल एवं फलों तक पर छोटे-छोटे कांटे होते हैं। इसके पत्ते बड़े और प्लेटों की तरह गोल-गोल पानी पर तैरते रहते हैं। अप्रैल के महीने में पौधों में फूल लगना शुरू हो जाता है। फूल बाहर नीला और अन्दर से जामुनी या लाल और कमल जैसा दिखता है। फूल पौधों पर कुछ दिन तक रहते हैं। और फूल के बाद कांटेदार-स्पंजी फल लगते हैं, जिनमें बीज होते हैं। यह फल और बीज दोनों ही खाने योग्य होते हैं। फल गोल-अण्डाकार, नारंगी के तरह होते हैं और इनमें 8 से 20 तक की संख्या में कमलगट्टे से मिलते जुलते काले रंग के बीज लगते हैं। फलों का आकार मटर के दाने के बराबर तथा इनका बाहरी आवरण कठोर होता है। जून-जुलाई के महीने में फल 1-2 दिन तक पानी की सतह पर तैरते हैं। फिर ये पानी की सतह के नीचे डूब जाते हैं। नीचे डूबे हुए इसके कांटे गल जाते हैं और सितंबर-अक्टूबर के महीने में ये वहां से इकट्ठा कर लिए जाते है।

पोषक तत्वों की बदौलत बढ़ा दायरा : मखाना में अधिक मात्रा में पोषक तत्व पाए जाने के कारण मांग बढऩे लगी तो खेती भी बड़े पैमाने पर होने लगी। इसमें प्रति 100 ग्राम मखाने में 9.7 फीसद प्रोटीन, 75 फीसद कार्बोहाइड्रेट, आयरन और वसा के अलावा 382 किलो कैलोरी मिलती है। इसमें दूध और अंडे के मुकाबले ज्यादा प्रोटीन पाया जाता है।


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