मधेपुरा/बिहार : मानव संसाधन विकास विभाग द्वारा लाई गई बहुप्रतीक्षित नई शिक्षा नीति में कई स्तरों पर ऐसे निर्णय हैं जिससे प्रतीत होता है कि नई शिक्षा नीति में शिक्षा के बाजारीकरण करने की साज़िश की गई है। ऐसा होने से जहां शिक्षा का महत्व घटेगा वहीं एक तरफ यह पैसों वाली की कठपुतली होगी, वहीं गरीब व निम्न वर्ग के लोगों के पहुंच से दूर भी।
उक्त बातें वाम छात्र संगठन एआईएसएफ के राष्ट्रीय परिषद् सदस्य सह राज्य उपाध्यक्ष हर्ष वर्धन सिंह राठौर जारी नई शिक्षा नीति पर प्रेस विज्ञप्ति द्वारा अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कही। उन्होने कहा कि नई नीति के अनुसार शिक्षा पर मात्र जीडीपी का छ प्रतिशत खर्च करने की बात दर्शाती है कि सरकार शिक्षा को सुगम व सुलभ बनाने के लिए गंभीर नहीं है। छात्र नेता श्री राठौर कहा कि मानव संसाधन विकास मंत्रालय को शिक्षा मंत्रालय का नाम देना, कुछ क्षेत्रों को छोड़ अन्य क्षेत्रों से शिक्षकों को हटाकर मुख्यत शिक्षा से जोड़ना, स्थानीय भाषा को प्रमोट करने का फैसला स्वागत करने योग्य है। लेकिन इस कड़ी में सत्रों के बीच वर्षों का जो समीकरण डाला गया है उससे शिक्षा पूरी तरह से खिचड़ी बन कर रह जाएगी।
संगठन के राज्य परिषद सदस्य सौरभ कुमार और ए आई एस एफ नेता मन्नू कुमार ने कहा कि नई नीति के अंतर्गत अलग अलग स्तरों पर जो कई विभाग बनाने की योजना है। मूलतः यूजीसी को पंगु बनाने की यह बड़ी साजिश है ।उन्होंने कहा कि सरकार को शिक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता देते हुए जीडीपी का दस प्रतिशत या उससे ज्यादा खर्च करना चाहिए जिससे शिक्षा की उपयोगिता सार्थक हो सके। उन्होंने कहा कि एआईएसएफ सरकार की इस नई शिक्षा नीति को शैक्षणिक रूप से समाज को बहलाने की साजिश मानता है इसको लेकर जल्द ही संगठन पत्राचार कर अपनी मांगों से अवगत कराते हुए इसके खिलाफ व्यापक स्तर पर मुहिम शुरू करेगा।