पटना/बिहार : राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद के आशिकमिजाज वाले गाने पर स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय ने उन्हीं के अंदाज में जवाब दिया है। कहा कि ‘दिल की तन्हाई को आवाज लगा लेता हूं, दर्द जब हद से गुजरता है तो गा लेता हूं’। श्री पांडेय ने कहा कि ‘आशिकी’ फिल्म का गाना ‘चाहत’ फिल्म की गाने की तरह उनकी तन्हाई और बेबसी को दर्शाता है। आज गाना गाकर लालू प्रसाद जिस तरह से अफसोस जाहिर कर रहे हैं, काश अगर अपने शासनकाल में लूट छोड़ विकास का गीत गाते तो उन्हें जेल में यह गाना नहीं गाना पड़ता।
श्री पांडेय ने कहा कि यह बात दीगर है कि लालू प्रसाद न तो शायर बन सके और न ही गायक, लेकिन व रीयल लाइफ में असली काॅमेडीमैन और खलनायक जरूर बन गए। देश और दुनिया को भले ही रूपहले पर्दे पर उनकी फिल्में देखने का मौका नहीं मिला हो, लेकिन जीवंत सिनेमा कई वर्षों तक लगातार देखते रहे। असल सिनेमा में न सिर्फ लालू किरदार होते थे, बल्कि पटकथा भी खुद लिखते थे। यहीं नहीं मुख्यमंत्री आवास को उन्होंने रंगमंच बना डाला था, जहां से अपहरण, अपराध और डरावनी जैसी असली फिल्मों का रिहर्सल होता था। सहयोगी कलाकार भी कोई और नहीं लालू के खास रिश्तेदार और बाहुबली नेता होते थे। स्थिति यह है कि बिहार की जनता अतीत को याद करती है तो आज भी रूह कांप जाता है।
श्री पांडेय ने कहा कि बीमारी के नाम पर रिम्स मंे सरकारी रोटी तोड़ रहे राजद सुप्रीमो गाना गाएं या कव्वाली, दो हजार बीस में उनके बेटे की बहाली नहीं होने वाली है। क्योंकि राजद और उनका कुनबा को छोड़कर बिहार की जनता और यहां तक उनके सहयोगी दल भी लालू के लाल को महागठबंधन का नेता मानने को तैयार नहीं है। यही नहीं उनके ही दल के कई माननीय भी उनके नेतृत्व पर पहले भी सवाल उठा चुके हैं। साथ ही तेजस्वी के रवैये से खफा कई विधायक सत्ताधारी दलों में संभावना टटोल रहे हैं, ताकि 2020 में तेजस्वी की तरह वैसे विधायक भी बेरोजगार न रह जाएं। अभी तो लालू प्रसाद गाना गाकर दिल को तसल्ली दे रहे हैं, लेकिन 2020 चुनाव परिणाम के बाद वे बिरहा गाने लायक भी नहीं रहेंगे।