शरजील इमाम का मतलब ‘जी उठा जिन्नाह’

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यहिया सिद्दीकी

   हिन्दुस्तान के इतिहास में दो पक्ष सदैव उपस्थित रहे हैं। पहले पक्ष में देश व देशभक्त होते हैं जबकि दूसरे पक्ष में जयचंद, मीर जाफ़र, जिन्नाह और गोडसे को हिकारत से याद किया जाता है । दूसरे पक्ष में शामिल लोगों को  निःसंकोच गद्दार कहा जाता है । ऐसे लोग हर दौर में उपस्थित रहते हैं। शरजील को ‘आज का जिन्नाह’ और रामभक्त गोपाल को ‘गोडसे का अवतार’ कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी ।

         रामभक्त गोपाल को ‘गोडसे का अवतार’  इसलिए कहा जाना चाहिए क्योंकि उसने अपना विरोध दर्ज कराने के लिए वही दिन और तरीका चुना जो गोडसे ने चुना था। ऐसी विचारधारा के लोग गांधी की आत्मा को रोज मार रहे हैं। सरकार को ऐसे तत्वों से सख्ती से निपटना चाहिए। रही बात शरजील की तो हकीकत में उसका वजूद चिंतनीय है । उसने आसाम को भारत से काट देने से भी गंभीर बयान दिया है ।  उसने अपने वक्तव्य में जिस प्रकार देश के संविधान, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, कांग्रेस, लेफ्ट, भाजपा सहित तमाम लोकतांत्रिक संस्थाओं को नकारते हुए अंग्रेजी हुकूमत को बेहतर बताया है वह आजादी के बाद दिया गया  सर्वाधिक खतरनाक बयान है।

लाख मतभेदों के बावजूद आजतक किसी आतंकी ने भी इस तरह खुलकर संविधान का विरोध नहीं किया । गांधी, कांग्रेस, लेफ्ट या भाजपा का विरोध होता रहा है लेकिन संविधान का विरोध ? वह भी उस मंच से जिसका थीम ही गांधीगीरी के जरिए संविधान बचाने का है।

सीएए, एनआरसी और एनपीआर के विरोध में देश की बड़ी आबादी सड़कों पर आंदोलनरत है। आंदोलन का नेतृत्व कर रहे मुसलमानों के साथ बड़ी संख्या में दूसरे धर्मों के लोग इसलिए जुड़े हैं क्योंकि गांधीगीरी के जरिए संविधान बचाने की बात हो रही है। बावजूद इसके उसी मंच से शरजील का महात्मा गांधी व संविधान के विरुद्ध बोलना कोई साधारण बात नहीं है । वक्त रहते भारतीय मुसलमानों को शरजील की क्रोनोलाजी को समझना होगा ।

         सर्वविदित है कि किसी भी आंदोलन या आंदोलनकारी की कोई न कोई आईडियोलोजी होती है । कोई न कोई आईकाॅन होता है। फिलहाल जो आंदोलन चल रहा है उसके आईकाॅन गांधी और अम्बेडकर हैं, लेकिन शरजील की बातों को सुनने के बाद स्पष्ट है कि उसकी आईडियोलोजी और आईकाॅन गैर भारतीय है । वह जिस तरह से बड़े ही संजीदा होकर भारतीय महापुरूषों, संस्थाओं तथा संविधान का विरोध करते हुए अपनी सोच को जाहिर कर रहा था उससे स्पष्ट है कि उसकी जड़े बड़ी गहरी है। सोचने वाली बात यह भी है कि वह लाखों रुपये महीने की कमाई को छोड़कर  यह सब क्यों कर रहा है ?  मान लिया जाए कि मौजूदा हालात से उसे भारतीय मुसलमानों की चिंता है तो फिर उसे भी दूसरे एक्टिविस्टों की तरह गांधी – अंबेडकर के हवाले से संविधान बचाने की बात करनी चाहिए थी। जाहिर सी बात है उसकी मंशा कुछ और है । उसकी बातों से लग रहा कि वह कहीं और से रिमोट हो रहा है । उसकी एक-एक बात जिन्नाह की विचारधारा की वकालत कर रही है। यह भारत सरकार से अधिक भारतीय मुसलमानों के लिए चिंतनीय है। उसकी बातों को सुनकर यही महसूस हो रहा है कि जिन्नाह जी उठा है।

         बहरहाल आम भारतीय मुसलमानों सहित सीएए, एनआरसी और एनपीआर के विरुद्ध धरना-प्रदर्शन के आयोजनकर्ताओं, मुस्लिम धर्म गुरूओं, स्काॅलरों तथा एक्टिविस्टों को खुले मंच से  शरजील का खुला विरोध करना चाहिए । इस्लाम में मुल्क से वफादारी की तालीम दी गई है। शरजील मुल्क का गद्दार है। लिहाजा गद्दार को सजा मिलनी ही चाहिए। यही इस्लाम का तकाजा है ।


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