मधेपुरा/बिहार : यह कारागृह नहीं है बल्कि सुधारगृह है। इसमें आपको अपने में सुधार लाने के लिए रखा गया है, शिक्षा देने के लिए नहीं।
उक्त बातें माउंट आबू से प्रजापति ब्रह्मा कुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय के मुख्यालय से पहुंचे राजयोगी ब्रह्माकुमार भगवान भाई ने कहा। वे मंगलवार को मंडल कारागृह में बंदी को कर्म गति और व्यवहार शुद्धीकरण विषय पर बोल रहे थे।
उन्होंने कहा कि कारागृह के इस एकांत स्थान पर बैठकर स्वयं को परिवर्तन करने के लिए सोचो कि मैं इस संसार में क्यों आया हूं, मेरे जीवन का उद्देश्य क्या है, मुझे परमात्मा ने किस उद्देश्य से यहां भेजा है। मैं यहां आकर क्या कर रहा हूं। ऐसी बातों का चिंतन करने से संस्कार एवं व्यवहार परिवर्तन होगा। उन्होंने कहा कि यह कारागृह आपके जीवन को सुधार लाने के लिए तपोस्थली है। भगवान भाई ने कहा कि बदला लेने के बजाय स्वयं को बदलकर दिखाने की प्रवृत्ति रखनी है। उन्होंने कहा कि हम किसके बच्चे हैं, जिस परमात्मा के हम बच्चे हैं वह तो शांति का सागर, दयालु, कृपालु, क्षमा का सागर है। हम स्वयं को भूलने से ही गलतियां कर बैठते हैं. उन्होंने कहा कि हम ऐसा कोई कर्म ना करें जिस कारण धर्मराजपूरी में सिर झुकाना पड़े, पछताना पड़े, रोना पड़े। हमारी वृत्ति, दृष्टि और कृति में जो अवगुण या बुराइयां बसी है, उसे दूर भगाना है। ईर्ष्या करना, लड़ना, झगड़ना, चारी करना, लोभ, लालच यह तो हमारे दुश्मन हैं. जिसके अधीन होने से हमारे मान सम्मान को चोट पहुंचती है उन्होंने कहा कि बुराइयों को दूर करना है तो आदर्श इंसान की पहचान बनानी होगी। इन अवगुणों और बुराइयों ने हमें कंगाल बनाया है। इससे दूर रहना है।
आज हमारे व्यवहार में असुरता आने का मूल कारण हमारा अशुद्ध आहार, अशुद व्यवहार और बुरा संगत है। अब हमें परमात्मा ने इन सब बातों से मुक्त कर, स्वयं में परिवर्तन लाने का अवसर दिया है। अब यहां बैठे स्वयं को टटोलना है और अपने इंद्रियों को वश में कर स्वयं में सुधार लाना है। उन्होंने कहा कि इस कारागृह रूपी तपोस्थली पर स्वयं में सुधार लाकर फिर समाज में जाना है। भगवान भाई ने कर्मों की गृह्य गति का ज्ञान बताते हुए कहा कि हमें परमात्मा ने जो कर्मेइंद्रियां दी है, उसका दुरुपयोग नहीं करना है। हम लोभ लालच में आकर उसका दुरुपयोग करते हैं तो उसकी सजा दुख एवं अशांति के रूप में हमें भोगनी पड़ती है। उन्होंने कहा कि स्वयं के संस्कार में परिवर्तन लाने का आधार है सत्संग और प्रभु चिंतन, जिससे हमारा मनोबल एवं आत्मबल बढ़ता है। ऐसा चिंतन कर अब अपने व्यवहार और संस्कारों का परिवर्तन करना है। उन्होंने कहा कि परमात्मा ने हमें यह इंद्रियां दी है, उसका दुरुपयोग करते हैं तो फिर अगले जन्म में यह इंद्रियां अधूरे रूप में होगी।
उन्होंने बताया कि हाथ चोरी करने के लिए, आंख व्यर्थ देखने के लिए नहीं है। जब तक हम स्वयं के बारे में, परमात्मा के बारे में, कर्मों के बारे में यथार्थ नहीं जानते, तब तक जीवन में सच्ची और स्थायी सुख शांति नहीं मिल सकती है। वास्तव में हम सभी आत्माएं हैं। परमपिता परमात्मा के बच्चे हैं. आपस में भाई-भाई हैं। आपसी भाईचारा रखने से ही संबंधों में निखार आएगा। उन्होंने बताया कि विकार ही मनुष्य के बैरी हैं. हमें उससे मुक्त बनने की आवश्यकता है. स्थानीय ब्रम्हाकुमारी सेवा केंद्र की संचालिका ब्रह्माकुमारी जानकी बहन ने कहा कि जब हम अपना मनोबल कमजोर करते हैं तब हम स्वयं को आंतरिक रूप से अकेले महसूस करते हैं। उन्होंने बताया कि स्वयं का मनोबल मजबूत रखो, स्वयं को असहाय, अकेले, थके हुए महसूस नहीं करो। आध्यात्मिक चिंतन द्वारा व्यसनों के चिंतन को समाप्त कर सकते हैं। स्थानीय ब्रम्हाकुमारी सेवा केंद्र की प्रभारी बीके रंजू बहन ने कहा कि ब्रह्माकुमारी द्वारा अपराध मुक्त समाज बनाने का यह कार्य सराहनीय है। उन्हें बताई हुई बातों को अमल में लाने को कहा। उन्होंने कहा कि भगवान भाई ने भारत के लगभग आठ सौ जेलों में कार्यक्रम किए हैं। कार्यक्रम के अंत में मनोबल बढ़ाने के लिए राजयोग का अभ्यास कराया गया।
मौके पर जेल अधीक्षक प्रमोद कुमार ने कहा कि जेल आपके बुराई के परिवर्तन का केंद्र है। अपने सोच और विचारों को बदलें। मौके पर विनय वर्धन, बीके किशोर, सलिश सहित अन्य लोग उपस्थित थे।