मधेपुरा : मैथिली एक सुमधुर भाषा, इसकी मिठास को दूर-दूर तक फैलाने की जरूरत –कुलपति

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अमित कुमार अंशु
उप संपादक

मधेपुरा/बिहार : मातृभाषा मां की तरह है, हमें कभी भी अपनी मातृभाषा को नहीं छोड़ना चाहिए, हमें यथासंभव बोल-चाल एवं लेखन में मातृभाषा का प्रयोग करना चाहिए।

 यह बात बीएनएमयू कुलपति प्रो डा अवध किशोर राय ने कही। वे रविवार को साहित्य अकादेमी नई दिल्ली एवं ठाकुर प्रसाद महाविद्यालय मधेपुरा के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित दो दिवसीय संगोष्ठी का उद्घाटन कर रहे थे। संगोष्ठी का विषय वैश्विक परिवेश में मैथिली भाषा एवं साहित्य था। कुलपति ने कहा कि मैथिली एक सुमधुर भाषा है। इसकी मिठास को दूर-दूर तक फैलाने की जरूरत है। इसमें कर्णप्रिय गीत रचे जाएं और इसे जन-जन तक पहुंचाया जाए। जैसे कि विद्यापति का देवी गीत जै-जै भैरवी आज जन-जन तक पहुंच चुका है।
भाषा, साहित्य एवं संस्कृति के संरक्षण एवं संवर्धन की चुनौती
कुलपति ने कहा कि आज वैश्विक परिवेश तेजी से बदल रहा है। जीवन के हरएक क्षेत्र में बाजार का हस्तक्षेप बढ़ा है और भाषा एवं साहित्य भी इससे अछूता नहीं है। ऐसे में हमारे सामने अपनी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति के संरक्षण एवं संवर्धन की चुनौती है।

 कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए मैथिली विभाग के पूर्व अध्यक्ष एवं सिंडीकेट सदस्य डा रामनरेश सिंह ने कहा कि वैश्वीकरण कोई नई अवधारणा नहीं है। भारत वर्ष ने हजारों वर्ष पूर्व दुनिया को वैश्वीकरण एवं एकीकरण का संदेश दिया है। इसके मूल में हमारे उदात्त सांस्कृतिक मूल्य और मानवतावादी जीवन-दृष्टि रही है।
 मैथिली भाषा भी वैश्विक चुनौतियों से मुकाबला करने में सक्षम : डा रामनरेश सिंह ने कहा कि भारतीय सभ्यता-संस्कृति एकात्मकता की पोषक है। इसमें शुरू से ही संपूर्ण विश्व एवं चराचर जगत के कल्याण की कामना रही है। हमने दुनिया को ‘वसुधैव कुटुंबकम्’, ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’, ‘सर्व खलु इद्म ब्रह्म’ का संदेश दिया है। उन्होंने बताया कि आधुनिक युग में वैश्वीकरण की अवधारणा बाजारीकरण एवं सूचना क्रांति से जुड़ी है। सूचना क्रांति के कारण एक-दूसरे से संपर्क बढ़ा है. हम एक भाषा में बोलते हैं और उसे लोग 10 भाषाओं में सुनते हैं। आगे ऐसा कम्प्यूटर बनाने की जरूरत है, जिसके जरिए एक साथ विभिन्न लिपियों में लिखा जा सके।

उन्होंने जोर देकर कहा कि मैथिली भाषा भी वैश्विक चुनौतियों से मुकाबला करने में सक्षम है। इसको लेकर भारत के कई विश्वविद्यालयों के अलावा जर्मनी आदि देशों में भी काफी काम हो रहा है। गत वर्ष बीएनएमयू में पांडुलिपि संरक्षण पर आयोजित 21 दिवसीय कार्यशाला भी उस दिशा में महत्वपूर्ण कदम है। हम अपनी पांडुलिपियों को वैज्ञानिक ढंग से संरक्षित करें और उसे डिजिटल फार्म में पूरी दुनिया तक पहुंचाएं।
मैथिली भाषा भारत की 22 प्रमुख भाषाओं में एक : मैथिली परामर्श मंडल के संयोजक डा प्रेममोहन मिश्र ने कहा कि वैश्वीकरण की नीतियों से सूचना क्रांति आई है और बहुत कार्य सुगम हुआ है। लेकिन इसका हमारी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति पर बुरा असर पड़ा है। साहित्य भी उत्पाद हो गया है। उन्होंने कहा कि मैथिली एक समृद्ध भाषा है और इसमें विश्वभाषा बनने की संभावनाएं मौजूद है। हम बेवजह दूसरी भाषा से शब्द नहीं लें. दूसरी भाषा से वही शब्द लें, जिसका अपनी भाषा में कोई विकल्प नहीं हो। साहित्य अकादेमी के उपसचिव एन सुरेश बाबू ने बताया कि वर्ष 2002 में मैथिली भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया है। यह भारत की 22 प्रमुख भाषाओं में एक है।
विभिन्न विषयों पर आलेखों की हुई प्रस्तुति : बीज वक्तव्य प्रतिष्ठत मैथिली लेखिका वीणा ठाकुर ने दिया. कार्यक्रम का संचालन डा अमोल राय ने किया। धन्यवाद ज्ञापन प्रधानाचार्य डा केपी यादव ने की। संगोष्ठी में चार तकनीकी सत्र हुआ. इसमें संगोष्ठी से जुड़े विभिन्न विषयों पर आलेखों की प्रस्तुति हुई।

 इस अवसर पर कुलसचिव डा कपिल देव प्रसाद, तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय के पूर्व मैथिली विभागाध्यक्ष डा केष्कर ठाकुर, सिंडीकेट सदस्य द्वय डा परमानंद यादव एवं डा जवाहर पासवान, पूर्व प्रधानाचार्य डा सुरेश यादव, जनसंपर्क पदाधिकारी डा सुधांशु शेखर, मैथिली विभागाध्यक्ष उपेन्द्र प्रसाद यादव, डा योगेन्द्र प्रसाद यादव, डा मिथिलेश कुमार अरिमर्दन, डा मनोज कुमार मनोरंजन, डा गजेन्द्र कुमार, डा उदय कृष्ण, डा जावेद अहमद, डा नदीम, डा कुंदन कुमार सिंह, अभिषेक आनंद, स्नेहा कुमारी, काउंसिल मेम्बर सोनू यादव, छात्र नेता डेविड यादव, कम्प्यूटर ऑपरेटर मनीष कुमार आदि उपस्थित थे।


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