16 जुलाई को वैधृति योग में मनायी जाएगी गुरु पूर्णिमा, इसी दिन लग रहा है खण्डग्रास चन्द्र ग्रहण

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अनूप ना. सिंह
स्थानीय संपादक

16 जुलाई को आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा दिन मंगलवार को गुरु पूर्णिमा पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र एवं वैधृति योग में मनायी जायेगी । इस दिन गुरु पूजा का विधान है। गुरु पूर्णिमा वर्षा ऋतु के आरम्भ में होता है। इसी दिन से चार महीने तक परिव्राजक साधु-सन्त एक ही स्थान पर रहकर ज्ञान की गंगा बहाते हैं। ये चार महीने मौसम की दृष्टि से भी सर्वश्रेष्ठ होते हैं। न अधिक गर्मी और न अधिक सर्दी। इसलिए अध्ययन के लिए उपयुक्त माने गए हैं। जैसे सूर्य के ताप से तप्त भूमि को वर्षा से शीतलता एवं फसल पैदा करने की शक्ति मिलती है, वैसे ही गुरु-चरणों में उपस्थित साधकों को ज्ञान, शान्ति, भक्ति और योग शक्ति प्राप्त करने की शक्ति मिलती है।

गुरु पूर्णिमा व खंडग्रास चंद्रग्रहण एक साथ : कर्मकांड विशेषज्ञ पं० राकेश झा शास्त्री ने पंचांगों के हवाले से बताया कि गुरु पूर्णिमा के दिन ही खण्डग्रास चंद्रग्रहण लग रहा है I भारतीय मानक समयानुसार इस चन्द्र ग्रहण का स्पर्श यानि प्रारंभ रात में 01 बजकर 31 मिनट पर होगा I ग्रहण का मध्य समय मध्यरात्रि 03 बजकर 01 मिनट पर रहेगा तथा मोक्ष 17 जुलाई की अहले सुबह 04 बजकर 30 मिनट पर यह ग्रहण समाप्त हो जायेगा I रात्रि 01 बजे से 02:43 मिनट तक यह खण्डग्रास ग्रहण रहेगा ,इस दौरान पूरा चन्द्रमा ढँका रहेगा I पुरे भारत में दिखाई देने वाला यह चन्द्र ग्रहण पुरे 02 घंटा 59 मिनट यानि तीन घंटे का रहेगा I इस ग्रहण को भारत के अलावे दक्षिण अमेरिका, संपूर्ण यूरोप, न्यूजीलैंड, आस्ट्रेलिया, कोरिया, चीन, रूस और अंटार्कटिका में भी देखा जाएगा I
पंडित झा ने बताया कि गुरु पूर्णिमा के दिन महाभारत के रचयिता कृष्ण द्वैपायन व्यास का जन्मदिन हुआ था । वे संस्कृत के प्रकांड विद्वान थे और उन्होंने चारों वेदों की रचना की थी। इस कारण उनका एक नाम वेद व्यास भी है। उनके सम्मान में गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा नाम से भी जाना जाता है।

मंगलकारी होगी श्रीहरि की पूजा : गुरू पूर्णिमा का पर्व बड़ी श्रद्धा व धूमधाम से मनाया जाता है। प्राचीन काल में जब विद्यार्थी गुरु के आश्रम में निःशुल्क शिक्षा ग्रहण करता था तो इसी दिन श्रद्धा भाव से प्रेरित होकर अपने गुरु का पूजन करके उन्हें अपनी शक्ति सामर्थ्यानुसार दक्षिणा देकर कृतकृत्य होता था। आज भी इसका महत्व कम नहीं हुआ है। पारंपरिक रूप से शिक्षा देने वाले विद्यालयों में, संगीत और कला के विद्यार्थियों में आज भी यह दिन गुरू को सम्मानित करने का होता है। आज के दिन श्रद्धालु पवित्र नदियों में स्नान करके मन्दिरों में श्रीहरि विष्णु की पूजा करते है I पंडित झा के कहा कि आषाढ़ के पूर्णिमा में भगवान सत्यनारायण की पूजन, शंख पूजन के बाद शंख ध्वनि से घरो में सुख-समृद्धि का आगमन एवं निरोग काया की प्राप्ति का आशीर्वाद मिलता है I

व्यास के अंश होते है गुरु : अपने गुरु की स्मृति को मन मंदिर में हमेशा ताजा बनाए रखने के लिए हमें इस दिन अपने गुरुओं को व्यासजी का अंश मानकर उनकी पाद-पूजा करनी चाहिए तथा अपने उज्ज्वल भविष्य के लिए गुरु का आशीर्वाद ग्रहण करना चाहिए। साथ ही केवल अपने गुरु-शिक्षक का ही नहीं, अपितु माता-पिता, बड़े भाई-बहन आदि की भी पूजा करे एवं उपहार देकर आशीर्वाद लेनी चाहिए I गुरु का आशीर्वाद सभी-छोटे-बड़े तथा हर विद्यार्थी के लिए कल्याणकारी तथा ज्ञानवर्द्धक होता है। गुरु पूजन में “गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु: गुरुर्देवो महेश्वरः । गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः ॥ मंत्र से पूजा करने से गुरु का आशीष मिलता है I


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