बिहार की समकालीन चित्रकला के जनक बीरेश्वर दा

Sark International School
Spread the news

अनूप ना. सिंह
स्थानीय संपादक

एक दौर था जब देश में सिर्फ शांतिनिकेतन, जे जे, बड़ोदा, दिल्ली और मद्रास के कलाकारों की ही चर्चा होती थी। आज स्थिति बदली है अब कला जगत में किसी न किसी रूप में बिहार के कलाकारों की चर्चा हो ही जाती है जिसका श्रेय बीरेश्वर दा को दिया जाना चाहिए । देश विदेश में क्या हो रहा है इसकी जानकारी अपने शिष्यों तक पहुँचाने की बात हो राज्य अकादमी की कोई आल इंडिया प्रदर्शनी, बिनाले, नेशनल या गढ़ी स्कालरशिप हो इसके अलावा ललित कला अकादमी के सदस्य के रूप में बिहार के लिए उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता।

इनके द्वारा अनुमोदित गढ़ी स्कालरशिप लेनेवाले सभी कलाकार आज सक्रीय हैं । बीरेश्वर भटाचार्य पटना आर्ट कॉलेज के छात्र भी रहे हैं और बाद में कला गुरु भी। आज भारतीय समकालीन कला के चर्चित कलाकारों में से कुछ तो उनके प्रिय शिष्य रह चुके हैं। 26 जुलाई 1935 कमलापुर ढाका बांग्ला देश में जन्मे बीरेश्वर भटाचार्य को ललित कला अकादमी की और से राष्ट्रिय पुरस्कार से सम्मानित किया जा चूका है। इंश्योरेंस कंपनी में कार्यरत कुलेश्वर भटाचार्य के पुत्र बीरेश्वर दा को आज बिहार के सभी कलाकार अपना अभिभावक समझते हैं । बचपन में ढाका की पढाई के बाद कोलकाता आये फिर 1950 में पटना के नयाटोला में रहे तथा आगे की पढाई पी एन एंग्लो स्कूल में हुई। यदुनाथ बनर्जी के सहयोग से इनके पिताजी ने पटना आर्ट कॉलेज में कमर्शियल आर्ट में इनका नामांकन करवा दिया। पास करने के बाद राधामोहन प्रसाद और उपेंद्र महारथी ने इनकी प्रतिभा को देखते हुए इन्हें कालेज में नियति करवाई। स्कालरशिप मिलने पर कई बार ये विदेश भी गए दुनियाभर की कला से परिचित होने का मौका मिला। अपने समकालीन अशोक तिवारी ,अनिल सिन्हा तथा प्रमोद जी जैसे कलाकारों एवं रेनू जी, बेनीपुरी जी एवं सतीश आनद जैसे संस्कृतिकर्मियों के साथ पटना की सक्रीय कला गतिविधियों से जुड़े रहे।

चर्चित छापाकलाकार श्याम शर्मा जी के साथ ‘ट्रैंगल’ नामक ग्रूप की स्थापना की तथा इस ग्रुप के माध्यम से देश में कई जगह बिहार के कलाकारों की प्रदर्शनी भी आयोजित हुई। अनिल बिहारी, मिलन दास और श्याम शर्मा जी के साथ प्रभाव संस्था की स्थापना की और कई समूह चित्र प्रदर्शनियां की। उसी दौरान बिहार ललित कला अकादमी और शिल्प कला परिषद् की भी स्थापना हुई। उस दौर के कलाकारों का मानना है दिल्ली का दरवाजा शिल्प कला परिषद् की वजह से ही खुला। जब स्वामीनाथन त्रिनाले के डाइरेक्टर बने तो उनका ध्यान इन्होने बिहार की कला और कलाकारों की और आकृष्ट किया। दिल्ली ललित कला अकादमी की दीर्घा में भी इनके ही प्रयास से बिहार के कलाकारों की पहली समूह प्रदर्शनी आयोजित हुई।
बचपन में ही दंगा को करीब से देखनेवाले बीरेश्वरदा की पेंटिंग में भी आतंकवाद, अहिंसा, राजनैतिक व्यंग और प्रेम से भरी होती है। कला मेरे विचार से आधुनिक कलाकारों में से अगर कोई नाम पद्मश्री के लिए सबसे पहले भेजने लायक है वो है हमारे बीरेश्वर दा।

हालाँकि दुःख की बात है बिहार के आधुनिक कलाकारों में से पद्मश्री सम्मान के लिए आज तक किसी नाम पर सहमति नहीं बन पायी और आज तक किसी को ये सम्मान मिला भी नहीं। दो साल पहले मैं कोलकाता में उनके घर गया था वे आज भी बिहार की कला और कलाकारों के लिए चिंतित रहते हैं। बंगाल में रहनेवाले कलाकारों से ज्यादा उनकी खोज खबर बिहार के ही कलाकार लेते रहते हैं। यही वजह है कि आज भी किसी कार्यशाला में अगर उनका बिहार आना होता है तो बिहार की कला गतिविधियों के सहायतार्थ अपने पैसे भी वे देने से नहीं चूकते।


Spread the news
Sark International School