बच्चे ढो रहे भारी बस्ता, निजी स्कूलों में नहीं हो रहा सीबीएसई की गाइडलाइन का पालन ♦ बच्चे के बोझ के नीचे दबा है बचपन♦स्कूल बैग एक्ट 2006 की उड़ रही है धज्जियां♦मानकों से ज्यादा भारी हैं बच्चों के स्कूल बैग♦ बच्चों में हो सकती है बीमारी
मधेपुरा/बिहार : निजी स्कूलों में नन्हें बच्चों की पीठ पर बढ़ते बस्ते के वजन को कम करने के लिए 2006 में चिल्ड्रेन स्कूल बैग एक्ट बनाया गया था। लेकिन जिले में संचालित हो रहे तमाम निजी विद्यालयों में इस एक्ट का प्रभाव नहीं दिख रहा है और न ही इस एक्ट का डर किसी विद्यालय को है। बच्चे अपनी क्षमता से भी ज्यादा वजन के बैग अपनी पीठ पर लिए स्कूल जाते हैं। डॉक्टरों की मानें तो क्षमता से ज्यादा वजन उठाने से बच्चों की तबीयत खराब हो सकती है। वहीं चिल्ड्रेन एक्ट में बनाये गये प्रावधानों का तनिक भी विद्यालय संचालकों पर असर नहीं है। कई विद्यालयों में एक विषय के एक से अधिक पुस्तकों की पढ़ाई होती है। क्लास बढ़ने के साथ ही बस्ती का भजन भी बढ़ जाता है। चिल्ड्रेन स्कूल बैग एक्टर के प्रावधानों के अनुसार 12वीं तक के बच्चों के बस्ते का वजन शुरू से अधिकतम छह किलोग्राम तक होनी चाहिए। एक्ट का उल्लंघन करने पर तीन लाख रुपये तक का जुर्माना है पर इसका कोई असर नहीं है।
जिले के अधिकांश निजी स्कूल सरकार और सीबीएसई द्वारा पारित स्कूल बैग एक्ट का उल्लंघन कर नौनिहालों के कंधों पर बस्ते का बोझ डाल रहे हैं। इससे बच्चों को कंधे में दर्द की शिकायत होती है। लेकिन बेहतर शिक्षा दिलाने की होड़ में अभिभावक भी इसे नजरअंदाज कर रहे हैं।
बच्चे अपनी क्षमता से ज्यादा वजन के बैग ढोने को विवश: जिले में चल रहे निजी विद्यालयों में पढ़ने वाले बच्चों का जितना वजन होता है। उसका आधा वजन उनके बैग का होता है। बावजूद इसके बच्चों की पीड़ा को देखने वाला कोई नहीं है। महंगी किताबों से अभिभावकों की जेब पर तो मार पर ही रही है। दूसरी तरफ बस्ते के बोझ से बच्चों के बीमार पड़ने का भी डर अभिभावकों को सता रहा है। स्कूली बच्चों के पीठ से बोझ कम करने के लिए सरकार ने वर्ष 2006 में चिल्ड्रन स्कूल बैग एक्ट लागू कर मापदंड तय किए थे। जब एक्ट लागू किया गया था उस समय कुछ दिनों तक इसका पालन भी हुआ था। बच्चों की अधिकांश कॉपी और किताबें स्कूल में ही रखे जाने लगी थी। लेकिन धीरे-धीरे इस नियम को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। इस एक्ट के अनुसार जिला प्रशासन तभी कोई कदम उठा सकता है जब कोई अभिभावक इसकी शिकायत करे। लेकिन निजी स्कूलों की हनक के कारण अभिभावक शिकायत नहीं करते हैं। बच्चे अपनी क्षमता से ज्यादा वजन के बैग ढोने को विवश है।
बच्चों के बैग में किताब से ज्यादा होती है कॉपियां : निजी स्कूलों में बच्चों से किताब से ज्यादा कॉपियां ढुलवाई जाती है। अगर इन स्कूलों के सिलेबस को देखा जाए तो बच्चों को औसतन 8 से 12 किताबें दी जाती है। लेकिन इन पुस्तकों के अलावा कॉपियों की संख्या तीन गुणी होती है। इतना ही नहीं बच्चों के बैग में उनके अभिभावकों द्वारा लंच बॉक्स और पानी का बोतल भी दिया जाता है। जिसके कारण उनका बैग बोझ बन जाता है।
बच्चों के बैग में होती हैं 10 से 15 किताबें : निजी स्कूलों की बुक लिस्ट पर नजर डाली जाये तो हर बच्चे के बैग में औसतन 10 से 15 पुस्तकें शामिल हैं। इसके अलावे सभी विषयों की कॉपियां भी ले जानी पड़ती हैं। उल्लंघन करने पर दंड का है प्रावधान:चिल्ड्रेन स्कूल बैग एक्ट के प्रावधान का उल्लंघन तथा अनदेखी करने पर सजा का प्रावधान है। प्रावधान के तहत तीन लाख तक जुर्माना तथा संबंधित बोर्ड से मान्यता रद्द करने की कार्रवाई की जा सकती है।
एक नजर स्कूल बैग एक्ट 2006 के मापदंड पर . कक्षा पहली से दूसरी तक 2 किलोग्राम . कक्षा तीसरी से चौथी तक 3 किलोग्राम . कक्षा पांचवी से आठवीं तक 4 किलोग्राम . कक्षा नवमी से बारहवीं तक 6 किलोग्राम।
बस्ते के बोझ से बच्चों के स्पाइन पर असर पड़ने का डर : शहर के जाने माने हड्डी रोग विशेषज्ञ डॉक्टरों ने बताया कि बच्चों के स्कूल बैग का भार ज्यादा होने के कारण बच्चों के स्पाइन पर असर पड़ने का डर रहता है। कभी-कभी इस स्थिति में स्पाइन मुड़ने का भी डर रहता है। बच्चे के बैग का वजन अपेक्षाकृत अधिक होता है तो कई बीमारियां होने की आशंका बढ़ जाती है। इससे मांस पेशियों की क्षमता प्रभावित होती है। भारी बैग के कंधे पर टांगनेवाली पट्टी अगर पतलि हो तो कंधे की नसों पर असर पड़ता है। कंधा धीरे-धीरे क्षतिग्रस्त होने लगता है और उसमें हर समय दर्द रहता है। औसतन ऐसे बच्चों में 40 फीसद को कमर और पीठ में दर्द की शिकायत रहती है।
क्या कहते हैं पदाधिकारी : इन सभी बिन्दुओं पर जब जिला शिक्षा पदाधिकारी, मधेपुरा उग्रेश प्रसाद मंडल, से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि निजी विद्यालय जिला शिक्षा विभाग के नियंत्रण से बाहर हैं। इसलिए उनके ऐसे क्रिया विधियों की जांच जिला शिक्षा विभाग नहीं कर पाता है।