मधेपुरा/बिहार : माहे रमजान के दूसरे जुमे (शुक्रवार) को जिला मुख्यालय स्थित जामा मस्जिद समेत जिले तमाम मसाजिद में हजारों रोजेदारों ने बारगाहे–इलाही में सर झुका जहाँ एक तरफ देश भर में अमन चैन की दुआ मांगी तो वहीँ अपनी गुनाहों से तौबा कर नेक राह पर चलने की अल्लाह से तौफीक की दुआ मांगी।
इस दौरान मस्जिदों में रौनक नजर आई । वहीँ माहे रमजान में मासूमों में भी अल्लाह की इबादत और उसकी बंदगी का दिलकश नजारा हर तरफ देखने को मिल रहा है, अपने बड़े बुजुर्गों से सबक हासिल कर छोटे –छोटे बच्चे और बच्चियां भी रोजा, नमाज और कुरआन की तिलावत में मशगुल नजर आते हैं।
दूसरी तरफ मस्जिदों के बाहर सजी सेवइयां, खजूर समेत दीगर तमाम तरह की खाने पीने की लजीज सामन और पोष्टिक फलों की दुकानों पर खरीददारों की भीड़ भी माहे रमजान की रौनक में इजाफा कर देती है ।
रूह को पाकीजगी का जरिया है माहे रमजान:- बंदे को हर बुराई से दूर रखकर अल्लाह के नजदीक लाने का मौका देने वाले पाक महीने रमजान की रूहानी चमक से दुनिया एक बार फिर रोशन हो चुकी है और फिजा में घुलती अजान और दुआओं में उठते लाखों हाथ अल्लाह से मुहब्बत के जज्बे को शिद्दत से ब्यान कर रही है ।
इस भाग-दौड़ भरी जिंदगी में इंसान को अपने अंदर झांकने और खुद को अल्लाह की राह पर ले जाने का सबक देने वाला माहे रमजान में भूख-प्यास समेत तमाम शारीरिक इच्छाओं और हर तरह की बुराइयों पर लगाम लगाने की मुश्किल कवायद रोजेदार को अल्लाह के बेहद करीब लेकर जाती है।
क्या है रमजान की फजीलत :- इस माह में रोजेदार अल्लाह के नजदीक आने की कोशिश के लिए भूख-प्यास समेत तमाम इच्छाओं को रोकता है। बदले में अल्लाह अपने उस इबादत गुजार रोजेदार बंदे के बेहद करीब आकर उसे अपनी रहमतों और बरकतों से नवाजता है।
रमजान की अहमियत :- इंसान के अंदर जिस्म और रूह है। आम दिनों में उसका पूरा ध्यान खाना-पीना और दीगर जिस्मानी जरूरतों पर रहता है लेकिन असल चीज उसकी रूह है। इसी की तरबीयत और पाकीजगी के लिए अल्लाह ने रमजान बनाया है। रमजान में की गई हर नेकी का सवाब कई गुना बढ़ जाता है। इस महीने में एक रकात नमाज अदा करने का सवाब 70 गुना हो जाता है। साथ ही इस माह में दोजख (नरक) के दरवाजे भी बंद कर दिए जाते हैं।
अमूमन 30 दिनों के रमजान माह को तीन अशरों (खंडों) में बांटा गया है। पहला अशरा ‘रहमत’ का है। इसमें अल्लाह अपने बंदों पर रहमत की दौलत लुटाता है। दूसरा अशरा ‘बरकत’ का है जिसमें खुदा बरकत नाजिल करता है जबकि तीसरा अशरा ‘मगफिरत’ का है। इस अशरे में अल्लाह अपने बंदों को गुनाहों से पाक कर देता है।