सवर्ण आरक्षण का विरोध भारी पड़ सकता है मीसा भारती को तो भूमिहारों को दरकिनार करना भाजपा उम्मीदवार को ♦पांच लाख भूमिहार मतदाता एकजूट हो रहे रमेश कुमार शर्मा के पक्ष में, दोनों दलीय उम्मीदवारों से ज्यादा ♦ रमेश कुमार शर्मा ने पाटलिपुत्र में अपनी पूरी ताकत दी है झोंक
पटना/बिहार : पाटलीपुत्र लोकसभा क्षेत्र देश के कुल 543 और बिहार की 40 सीटों में एक है। यह सीट पटना जिले में पड़ती है। 2008 तक पटना में सिर्फ एक लोकसभा सीट हुआ करती थी। लेकिन परिसीमन के बाद यहां दो सीटें हो गईं-एक पाटलीपुत्र (शहर के प्राचीन नाम पर आधारित) और दूसरी सीट पटना साहिब जहां से सिने अभिनेता शत्रुघ्न सिन्हा चुनाव जीतते रहे हैं। पाटलीपुत्र में तकरीबन साढ़े 16 लाख मतदाता हैं जिनमें 5 लाख यादव और साढ़े चार लाख भूमिहार हैं। पाटलीपुत्र की विधानसभा सीटें: इस संसदीय क्षेत्र में छह विधानसभा सीटें है। दानापुर, मनेर, फुलवारी, मसौढ़ी, पालीगंज और बिक्रम। इनमें फुलवारी और मसौढ़ी एससी आरक्षित सीटें हैं। दानापुर में पिछले दो विधानसभा चुनाव 2010 और 2015 से बीजेपी की उम्मीदवार आशा देवी जीतती आ रही हैं। जबकि मनेर सीट पर आरजेडी के प्रत्याशी भाई विरेंद्र 2010 और 2015 में जीते। फुलवारी से जेडीयू के नेता श्याम रजक विधायक हैं जो कभी लालू यादव के खास हुआ करते थे। मसौढ़ी विधानसभा सीट पर फिलहाल आरजेडी का कब्जा है। यहां से रेखा देवी विधायक हैं। पालीगंज सीट भी आरजेडी के हिस्से में है और जयवर्धन यादव विधायक हैं। बिक्रम विधानसभा सीट कांग्रेस के पाले में है और सिद्धार्थ वहां से विधायक हैं। सीटों का गणित देखें तो यह पूरा इलाका आरजेडी का गढ़ है लेकिन लोकसभा में पिछली बार बीजेपी नेता रामकृपाल यादव जीत कर आए जो कभी आरजेडी के बड़े नेता हुआ करते थे। राजा पर भाजपा द्वारा भूमि हारों को बार-बार अपमानित करना इस बार दोनों दलों को भारी पड़ रहा है।
भूमिहार समाज के लगभग सभी बड़े नेता भाजपा और राजद के लिए भूमिहार बहुल गांव में जा रहा है जहां उन्हें विरोध का सामना करना पड़ रहा है। इस सीट पर 2009 में जदयू के रंजन प्रसाद यादव जीते जबकि 2014 में बीजेपी के राम कृपाल यादव विजयी रहे। रामकृपाल यादव ने आरजेडी छोड़कर बीजेपी का दामन थामा और बड़ी जीत दर्ज की। 2014 में जदयू और भाजपा अलग-अलग चुनाव लड़ी थी तब भी रामकृपाल यादव को 3,83,262 वोट मिले थे जो कुल वोट का 39.16 प्रतिशत था। उन्होंने आरजेडी प्रत्याशी और लालू प्रसाद यादव की बेटी मीसा भारती को हराया जिन्हें 3,42,940 (35.04 प्रतिशत) वोट मिले थ। तीसरे स्थान पर जेडीयू के रंजन प्रसाद यादव रहे जिन्हें 97,228 वोट मिल। सीपीआईएमएल प्रत्याशी रामेश्वर प्रसाद को 51,623 वोट मिले थे। साल 2009 का मुकाबला दिलचस्प था क्योंकि जेडीयू के रंजन प्रसाद यादव ने लालू यादव को हराया था। रंजन प्रसाद को 2,69,298 (42.86 प्रतिशत) मिले थे जबकि लालू यादव को 2,45,757 (39.12 प्रतिशत) वोट मिले। पिछली बार की तरह इस बार भी मीसा भारती इस सीट से किस्मत आजमा रही है। मीसा फिलहाल राज्यसभा सांसद हैं और बिहार में कभी एमबीबीएएस की टॉपर छात्र रही हैं। उन्हें हराने वाले बीजेपी के राम कृपाल यादव केंद्र में ग्रामीण विकास मंत्रालय में राज्य मंत्री हैं। रामकृपाल यादव ने पिछले चुनाव में टिकट न मिलने पर आरजेडी छोड़कर बीजेपी का दामन थाम लिया था और मीसा भारती को चुनाव में हराया था। पर इस बार का भी समीकरण 20 से ज्यादा संगठनों के एकीकृत उम्मीदवार निर्दलीय रमेश कुमार शर्मा के पक्ष में जाता दिख रहा है। वाम के समर्थन् से चुनाव लड़ रहीं मीसी भारती और माले प्रत्याशी रामेश्वर प्रसाद को 2014 में मिले मतों को अगर जोड़ा जाए तो उसकी कूल संख्या 394563 होती है। जबकि भाजापा और जदयू को अलग-अलग मिले मतों को जोउ़ा जाए तो तो उसकी कूल संख्या 480490 होती है। जबकि जिस आधार गत बहुत को लेकर निर्दलीय रमेश कुमार शर्मा चुनाव में खड़े हैं वह पांच लाख से ज्यादा है।
मीसा जहां यादव और वाम मतों के साथ कुछ प्रतिशत मुस्लिम मतों पर आश्रित हैं, वहीं मीसा भारती द्वारा गरीब सवर्णों को मिले दस प्रतिशत आरक्षण बील का विरोध करने का खामियाजा भूगतना पड़ सकता है। पाटलिपुत्र के भूमिहार मतदाता रमेश कुमार शर्मा की सादगी, मिलनसार व्यवहार और उनके कार्यो से काफी खुश दिख रहें हैं और इस जाति के मतदाता रमेश कुमार शर्मा के लिए एकजूट हैं। रामकृपाल यादव का अपनी जाति के मतदाताओं पर भी अच्छी पकड़ नही है। अगर वह अपनी जाति के मतदाताओं का 10 से 15 प्रतिशत मत भी काट लेते हैं तो राजद प्रत्याशी के लिए यह चुनाव टेढ़ी खीर साबित हो सकती है। निर्दलीय चुनावी समर में उतरे रमेश कुमार शर्मा बिहार के सबसे अमीर उम्मीदवार है इन्होंने चुनावी घोषणा पत्र जारी किया है 5000 से ज्यादा बेरोजगार युवाओं को रोजगार देने का वादा ही नहीं किया बल्कि शपथ लिया है।