शिक्षा दधीचि कीर्ति बाबू की जयंती पर अतिथि संपादक, प्रसन्ना सिंह राठौर की विशेष प्रस्तुति

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प्रसन्ना सिंह “राठौर”
अतिथि संपादक

मनुष्य में जो संपूर्णता गुप्त रूप से मौजूद है, उसे प्रत्यक्ष करना ही शिक्षा का उद्देश्य है। स्वामी विवेकानंद का यह कथन शिक्षा के समग्र स्वरूप की सटीक परिभाषा देती है। शिक्षा के प्रचार – प्रसार को लेकर अलग – अलग स्तरों पर विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न रूपों में प्रयास होते रहे हैं। ऐसे प्रयासों के सहारे ही उन क्षेत्रों की विकास की कड़ी को गति मिली इसे झुठलाया नहीं जा सकता।

कोसी और आसपास के क्षेत्रों में शिक्षा के समान्य स्तर और आम आवाम सहित बालिकाओं की पहुंच से उच्च शिक्षा के बाहर होने की पीड़ा ने यहां के लोगों को लंबे समय तक शिक्षा के लिए संघर्ष करने को मजबुर किया। इस दर्द ने इसी धरा के एक लाल कीर्ति नारायण मण्डल को बहुत विचलित किया । इस पीड़ा का ही शायद फल रहा की उच्च शिक्षा के संस्थानों की लंबी कतार बना शिक्षा क्षेत्र में वो कीर्तिमान स्थापित किया जिसे भागीरथी कार्य की संज्ञा दिए बिना नहीं रहा जा सकता । ऐसे महामना कीर्ति नारायण का जन्म आज ही के दिन मधेपुरा जिला के मनहरा सुखासन में पार्वती देवी और ठाकुर प्रसाद के तीसरे पुत्र के रूप में हुआ। तत्कालीन जमींदार परिवार से जुड़े बालक कीर्ति नारायण की प्राथमिक शिक्षा प्राइमरी स्कूल मनहरा से और नवमी तक की शिक्षा वर्तमान के शिवनंदन प्रसाद मंडल विद्यालय से हुई। युवावस्था में प्रवेश करते – करते वो जीवन से उदासीन रहने लगे। जिसका परिणाम कुछ ये हुआ की शिक्षा का सफर बीच में ही छोड़कर वो ज्ञान व शांति की तलाश में घर से बाहर निकल गए।

उन्नीस वर्ष की अवस्था में गांव में ही सात विघा जमीन दान देकर उन्होंने ठाकुरवाड़ी का निर्माण कराया साथ ही छोटे भाई कृष्ण को वहां का पुजारी बना दिया । मधेपुरा में उच्च शिक्षा की पहल हो और यह क्षेत्र भी उच्च शिक्षा का केंद्र बने इसके लिए उन्होंने खुद आगवानी की ।लेकिन उनके पिता कॉलेज स्थापना के लिए जमीन देने को तैयार नहीं थे। विवश होकर बालक कीर्ति ने राष्ट्रीय छात्रावास में ही भूख हड़ताल शुरू कर दी । भूख हड़ताल के कारण लगातार उनकी तबियत बिगड़ने लगी लेकिन पिता मानने को तैयार नहीं थे। ऐसे में मां पार्वती देवी के पहल पर पिता ने बावन एकड़ जमीन महाविद्यालय के लिए दान दे दिया, जिसपर अलग – अलग स्तरों से सहयोग प्राप्त कर कीर्ति नारायण ने अपने पिता के नाम पर ही ठाकुर प्रसाद महाविद्यालय की नींव रखी जो आगे चलकर इस क्षेत्र में कल्पना से परे विश्वविद्यालय की स्थापना का आधार ही नहीं बना वरन इस इलाके के बच्चों की पहली पसंद के रूप में स्थापित हो राज्य के चर्चित कॉलेज की छवि भी बनाई। यहां से निकले छात्र शिक्षा,राजनीति,विज्ञान सहित अन्य क्षेत्रों में सिरमौर के रूप में स्थापित हुए और हो भी रहे हैं। इसके बाद तो उन्होंने मानों कॉलेजों की लाइन लगा दी।

बालिका शिक्षा को भी बढ़ावा मिले इसी सोच के साथ उन्होंने पार्वती कॉलेज की आधारशिला रखी। अपने चट्टानी निश्चय और बुलन्द इरादे के साथ मधेपुरा, सुपौल, अररिया, कटिहार में अलग – अलग शिक्षण संस्थानों की स्थापना कर यहां की प्रतिभावों को चमकने का सुअवसर प्रदान किया। अगर यह कहा जाए की अपने कर्मों से कीर्ति बाबू ने खुद को ईश्वर की सर्वोतकृष्ट रचना के रूप में स्थापित किया तो गलत नहीं होगा। उनका कृतित्व सदैव समाज में अंधेरे के बीच उजाले को स्थापित करता रहेगा। उनके अनगिनत देनों का ही शायद कारण था की लोकसभा स्पीकर बलराम जाखड़ ने मधेपुरा दौरे के दौरान उन्हें कोसी का मालवीय कह नमन किया था । इतना ही नहीं सूबे के दो मुख्यमंत्री क्रमशः जगन्नाथ मिश्र और दरोगा प्रसाद राय ने कीर्ति बाबू को महान तपस्वी व साबरमती के संत के तर्ज पर कोसी का संत कहा था। उनकी पहचान यहीं तक सीमित नहीं थी समाज ने अपने इस रत्न को एक विचारधारा, महान संत, शिक्षा जगत का विश्वकर्मा, विद्या मन्दिर का पुजारी, शिक्षा दधीचि सहित न जाने किन – किन नामों से नवाजा।सात मार्च उन्नीस सौ संतानवें में इस अद्भुत महामना ने दुनिया से विदा ली। इसमें कोई शक नहीं की कीर्ति बाबू का कार्य सदैव उन्हें समाज के आइने में अमर रखेगा, लेकिन वर्तमान पीढ़ी का उनके कार्यों से अनजान होना दुखद भी है। इसका मूल कारण यह भी है कि उनसे जुड़े कार्यक्रम उतने नहीं हो पाते जितने होने चाहिए।

आलम तो ऐसा भी रहा की कई अवसरों पर जयंती व पुण्यतिथि पर भी कीर्ति बाबू को उस रूप में याद नहीं किया गया जो जरूरी था। एक सच यह भी है कि उनका परिवार आज किस हालात में है इसे जानने की कोशिश शायद कोई नहीं करता।समाज के प्रति सदैव समर्पित रहे कीर्ति बाबू ने अपने परिवार और आगे की पीढ़ी के लिए कुछ भी नहीं संजोया बल्कि जो कुछ उनके पास था वो समाज कल्याण में न्यौछावर कर दिया। शायद यही कारण है की कभी का जमींदार परिवार रहा कीर्ति बाबू की वर्तमान पीढ़ी सही तरीके से सामान्य जिंदगी भी जीने योग्य नहीं है। कीर्ति बाबू की शताब्दी जयंती के करीब पार्वती कॉलेज प्रशासन द्वारा एक वृहद कार्यक्रम के आयोजन के साथ साथ उनकी प्रतिमा को स्थापित कर उनकी छवि व पहचान को बड़े स्तर पर सामने लाने का प्रयास किया गया। उनकी शताब्दी जयंती पर और भी कई बड़े कार्यक्रमों के आयोजन भी हुए। बी एन मण्डल विश्वविद्यालय अपनी पच्चीसवीं वर्षगांठ को समर्पित कार्यक्रम के अन्तर्गत महामना कीर्ति बाबू को भी याद कर रहा है।

कीर्ति बाबू के नाम पर पार्वती कॉलेज परिसर और संत अवध कॉलेज के सामने जहां उनकी प्रतिमा है वहीं बी एन मण्डल विश्वविद्यालय के पुराने परिसर में अतिथि शाला के सामने एन एस एस के सेवको द्वारा गढ़ा गया कीर्ति वाटिका है। इसे और स्तरों पर मजबूत करने की जरूरत है जिससे वर्तमान और भावी पीढ़ी अपने आदर्श के रूप में कीर्ति बाबू को पहचानने के साथ – साथ अपना मार्ग तलाश सके।  उनके नाम पर सम्मानों की घोषणा कर व सफल शैक्षणिक वातावरण प्रदान कर उनके सपने का समाज के निर्माण को आगे ले जाया जा सकता है।

इस अद्भुत प्रतिभा व धरोहर को उनकी जयंती पर नमन।


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