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संपादक
” कहीं मंदिर तो कहीं मस्जिद की तख्ती लगा बैठे,
हमें क्या बनाना था हम क्या बना बैठे!
परिंदो में फिरकापरस्ती क्यों नहीं मिलती,
वह कभी मंदिर पे तो कभी मस्जिद पे जा बैठे! !”
यह पंक्तियां शायद इस लेख में शामिल तस्वीरों में नज़र आ रहे दो मानवों के लिए ही कही गई है । ये हैं संत दिलो दास और मौलवी गुलाम मुस्तफा ।दोनों बिहार के मधेपुरा जिला अंतर्गत चौसा के रहने वाले हैं , लेकिन हकीकत में ये परिंदे ही तो हैं । मंदिर के चबूतरा पर दोनों की जोड़ी देखकर विषाक्त बने माहौल में भी रूह को सकून मिलता है । दोनों का प्रेम, अपनत्व और सौहार्द धर्म के नाम पर गला काटने वालों के लिए मुहब्बत का सबक है । सम्मान का संदेश है। मसलन दोनों कह रहे हों ……
“बूतखाना तोड़ डालिए मस्जिद को ढहाईए ,
दिल को न तोड़िए ये खुदा का मकाम है।”
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