अपनी ही पंक्ति को जनवरी में चरितार्थ कर गए मुन्नवर राणा

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मधेपुरा/बिहार : उर्दू साहित्य में सर्वश्रेष्ठ,शेरो शायरी के नामचीन हस्ताक्षर मुन्नवर राणा के रविवार को लखनऊ में 71 वर्ष में निधन पर युवा सृजन पत्रिका के प्रधान संपादक हर्ष वर्धन सिंह राठौर ने गहरा शोक जताया है और इसे उर्दू सहित  साहित्य जगतका सबसे बड़ा नुकसान बताया है।

युवा साहित्यकार राठौर ने कहा कि मुन्नवर राणा वर्तमान दौर में अभिभावक के रोल में रचना से साहित्य को समृद्ध करते रहे। मां बेटियों और गरीबी पर कालजई रचना के लिए सदैव मुन्नवर राणा याद किए जायेंगे। अपनी कलम की नोंक पर उन्होंने साहित्य में संस्कार के बीज डाले। वर्तमान दौर में जब साहित्य कई स्तरों पर दिशाहीन होती दिखी तब मुन्नवर राणा के कलम ने साहित्य की जड़ को मजबूत किया। शाहदाबा कविता के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजे गए मुन्नवर राणा ने अपनी शेरो शायरी से भारत के साथ विश्व स्तर पर भी खूब सुर्खियां बटोरी।

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 “किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकान आई, मैं घर में सबसे छोटा था मेरे हिस्से में मां आई” “चलती फिरती हुई आंखों से अंजा देखी है मैं ने तो जन्नत नहीं देखी मां देखी है” पर जहां उनकी बेशुमार प्यार बटोरने वाली रचना रही वहीं “रौशन करेगा बेटा तो बस एक ही कुल को, दो दो कुलों की लाज होती हैं बेटियां” बेटी पर चर्चित नज्म रही।

अपनी ही पंक्ति को जनवरी में चरितार्थ कर गए मुन्नवर : मुन्नवर राणा को श्रद्धांजलि अर्पित करते राठौर ने कहा कि मुन्नवर राणा अपनी ही लिखी “हमसे मोहब्बत करने वाले रोते ही रह जायेंगे, हम जो किसी दिन सोए तो सोते ही रह जायेंगे” को चरितार्थ कर गए। “दुख भी ला सकती है लेकिन जनवरी अच्छी लगी, मुझको अपनी मां की मैली ओढ़नी अच्छी लगी.. और मैं इसी मिट्टी से उठा था बगुले की तरह और फिर इक दिन इसी मिट्टी में मिट्टी मिल गई” को भी मानों हकीकत कर गए। मजबूरी और गरीबी पर लिखी लाइन “गरीबों पर तो मौसम भी हुकूमत करते रहती है, कभी बारिश, कभी गर्मी, कभी ठंडक का कब्जा है, सो जाते हैं फुटपाथ पर अखबार बिछाकर, मजदूर कभी नींद की गोलियां नहीं खाते” मानों हकीकत बयां करती नजर आई।

अपने शोक संदेश में राठौर ने कहा कि वर्तमान दौर में मुन्नवर राणा जैसे अभिभावक रचनाकार की साहित्य जगत को बड़ी जरूरत थी। उनकी रचनाएं उन्हे हर दौर में अमरत्व देगी खास कर मां और बेटियां संग गरीबी पर।


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