नबी से मोहब्बत ईमान की निशानी है – कासमी

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छातापुर/सुपौल/बिहार : घिवहा पंचायत के चकला गांव स्थित मस्जिद-ए-मोहम्मदिया के पास आयोजित दो दिवसीय जलसा का समापन रविवार को दुआ के साथ हुआ। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे मौलाना अब्दुल वहाब के द्वारा मुल्क की सलामती के लिए अमन चैन की दुआ मांगी गई। कार्यक्रम का संचालन असलम परवान एवं मौलाना निजामुद्दीन कर रहे थे। जलसा का उद्घाटन मुख्य अतिथि छातापुर पंचायत के मुखिया पति मकसूद मसन ने फीता काटकर किया। अल्हाज मौलाना अब्दुल सत्तार एवं मौलाना अब्दुल जलील के द्वारा सभी वक्ताओं और मुख्य अतिथियों को शॉल देकर सम्मानित किया गया।

जलसा में मुख्य अतिथि के रूप में शिरकत किए जामा मस्जिद दिल्ली के इमाम व खतीब मौलाना अखलाक अहमद कासमी ने अपने संबोधन में कहा कि आखरी नबी हजरत मुहम्मद मुस्तुफा (सo) ना  सिर्फ मुसलमान बल्कि पूरी इंसानियत के लिए रहमत हैं। कहा कि हम सभी को अपने प्यारे नबी से दुनिया की हर चीज से बढ़कर प्यार करना चाहिए। उन्होंने सभी लोगों से समाज में आपसी सौहार्द और अमन चैन बनाये रखने की अपील की। कहा कि आज के मुसलमान अपने नबी के फरमान को भूल बैठे हैं। कहा कि गुनाह को गुनाह समझे और अल्लाह से माफी मांगने वाला बने, आपस मे सब मिलजुलकर रहे, आपस में नाइत्तेफाकी और घृणा नहीं करें, झूठ बोलने और किसी का बुराई करने से परहेज बरतें। नशाखोरी, रिश्वतखोरी, दहेज प्रथा, हकमारी व औरतों पर जुल्म व अत्याचार करना इस्लाम धर्म के खिलाफ है, इन सब चीजों से परहेज करें, आखरी नबी के बताए मार्ग पर चलें,  तकब्बुर (ईगो) न करें, छोटे-बड़े का इज्जत करें, गलती दूसरे का न देखें, अपने आपको बदलें, तभी बेहतर समाज बनेगा।

वहीं अन्य वक्ताओं ने सभी लोगों से आपस मे मिलजुलकर रहने की अपील करते हुए कहा कि एक इंसान का दूसरे इन्सान के सुख-दुख में शरीक होना ही मानवता की पहचान है। इंसान को सर्वश्रेष्ठ होने का दर्जा इसलिए हासिल है कि वे एक दूसरे के काम आएं और दुख-दर्द में शामिल हों, यही इंसानियत का संदेश भी है। कहा कि पांचों वक्त की नमाज पाबंदी के साथ अदा करना हम सभी मुसलमानों पर फर्ज है। वक्ताओं ने महिलाओं को पर्दा में रहने की नसीहत देते हुए कहा कि बजता हुआ जेवर मत पहनो, खुशबू लगाकर मत निकलो और छोटे-छोटे कपड़े पहनने से परहेज करो । वहीं दहेज प्रथा पर अफसोस जाहीर करते हुए वक्ताओं ने कहा कि समाज में दहेज प्रथा एक अभिशाप है इस्लाम में दहेज लेना हराम है। शिक्षा पर जोर देते हुए कहा कि शिक्षा मानव जीवन के लिए महत्वपूर्ण है, शिक्षा ही एक ऐसी चीज है जो इंसान को इंसान बनाती है। कुरआन में अल्लाह ने फरमाया कि माँ बाप का पहला फर्ज है, अपने बच्चों को दीनी और दुनियाबी शिक्षा दिलाना।

जलसा को मौलाना रमजान कासमी, मौलाना मोहिबुल्लाह कासमी, मौलाना मो सिराज अहमद आशिकी, हाफिज मेहरुल्लाह, हाफिज व कारी अंसारुल हक, मौलाना अमानुल्लाह चतुर्वेदी, मौलाना असहदुल्लाह कासमी, मौलाना मो महबूब मजाहरी और  मौलाना रियाज कासमी आदि ने संबोधित किया।

वहीं शायर कैसर अली राणा और लुकमान दानिश ने एक से बढ़कर एक शायरी और नाते गजल के माध्यम से उर्दू की खूबसूरती को रेखांकित किया। दुआ से पहले मस्जिद-ए-मोहम्मदिया का भवन निर्माण को लेकर अब्दुल रसीद, मो शहाबुद्दीन, मो सुल्तान एवं मो सुभान ने जमीन वफ करने की घोषणा की। मौके पर  मौलाना रफीक कासमी, हाफिज अंसार, मौलाना मो सदरे आलम, मौलाना मो ऐहसान, मस्जिद इमाम मो मेहरुल्लाह, मो फारूक, मो अकबाल, मोजाहेदुल इस्लाम, मो कलाम, मो आजाद, मो आबिद हुसैन आदि मौजूद थे।


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