जेएनकेटी मेडिकल कॉलेज : इंटरनेट की बेहतर सुविधा नहीं होने से टीकाकरण में हो रही है काफी परेशानी

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मधेपुरा/बिहार : कोरोना वायरस संक्रमण की दूसरी लहर आने के बाद यह महामारी तेजी से फैलने लगी है. इधर राज्य सरकार ने टीकाकरण भी तेज कर दिया है.  रविवार से 18 साल से 44 वर्ष की आयु वाले लोगों का भी टीकाकरण शुरू हो गया है. इस टीकाकरण के लिए मधेपुरा जिला को छह सौ वायल यानी छह हजार डोज उपलब्ध कराई गई है. जिसमें से जननायक कर्पूरी ठाकुर मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल को 40 वायल कोरोनो का टीका उपलब्ध कराया गया है. अपनी कुव्यवस्थाओं को लेकर चर्चित मेडिकल कॉलेज में टीकाकरण के दौरान भी लापरवाही देखी जा रही है. मेडिकल कॉलेज में इन दिनों 18 वर्ष से लेकर 44 वर्ष वालों एवं 45 वर्ष से ऊपर वालों का टीकाकरण किया जा रहा है. जिसके लिए लोगों की अच्छी खासी भीड़ पहुंच रही है. इस दौरान मेडिकल कॉलेज की लापरवाही लोगों के लिए परेशानी का सबब बना हुआ है.

टीकाकरण में उपयोग होने वाले कंप्यूटर में नहीं जोड़ा गया है वाईफाई : जननायक कर्पूरी ठाकुर मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल में कोविड टीकाकरण के लिए लोग पहुंच रहे हैं और टीका लगवा रहे हैं. टीका लगवाने के दौरान लोगों को काफी समय लग जाता है. इसका कारण यह है कि टीकाकरण में उपयोग होने वाले कंप्यूटर को मेडिकल कॉलेज के वाईफाई से नहीं जोड़ा गया है. जिसके कारण वहां मौजूद कर्मी अपने मोबाइल के वाईफाई से कंप्यूटर को जोड़कर कार्य करते हैं, जो बहुत धीमी रफ्तार में कार्य करता है. साथ ही मेडिकल कॉलेज के भवन के अंदर नेटवर्क ना के बराबर रहती है. जिसके कारण कभी-कबार तो स्थिति ऐसी रहती है कि कार्य करने वाले कर्मी के मोबाइल में भी नेटवर्क नहीं रहता है.

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घंटों बैठकर लोगों को करना पड़ता है अपनी बारी का इंतजार : टीकाकरण के दौरान टीका लेने वाले लोगों की आधार कार्ड नंबर, मोबाइल नंबर समेत अन्य जानकारी कोविड पोर्टल पर चढ़ानी पड़ती है. इसके लिए वहां मौजूद कर्मी को इंटरनेट की आवश्यकता पड़ती है. बिना किसी अवरोध के इंटरनेट मिलने से टिकाकरण का कार्य रफ्तार से होता है. इसके लिए वाईफाई की आवश्यकता पड़ती है. मेडिकल कॉलेज में वाईफाई के लिए तार तो बिछे हुए हैं, लेकिन कोविड टीकाकरण करने वाले कंप्यूटर से कनेक्ट नहीं किया गया है. जिसके कारण टीकाकरण करने वाले लोगों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. लोगों को घंटों बैठकर अपनी बारी का इंतजार करना पड़ता है.

अमित कुमार अंशु
उप संपादक

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