शिक्षकों एवं छात्र-छात्राओं पर है भारत को पुनः विश्वगुरू बनने की जिम्मेदारी : कुलपति

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मधेपुरा/बिहार : मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है. वह सामाज में रहता है और अपने क्रियाकलापों का निर्वहन करता है. समाज में आर्थिक, राजनीति, धार्मिक,  शैक्षणिक एवं सांस्कृतिक रूप से मानव का संबंध स्थापित होता है. इन संबंधों को मजबूत बनाने में शिक्षा की भूमिका होती है और शिक्षा संस्कृति के संरक्षण एवं संवर्धन में भी भूमिका निभाती है.

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यह बात बीएनएमयू कुलपति प्रो डा राम किशोर प्रसाद रमण ने कही. वे दर्शन परिषद बिहार के 42वें अधिवेशन में उद्घाटन वक़्तव्य दे रहे थे. भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद नई दिल्ली द्वारा संपोषित यह त्रिदिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन स्नातकोत्तर दर्शनशास्त्र विभाग के तत्वावधान में ठाकुर प्रसाद महाविद्यालय में आयोजित किया जा रहा है. इसका मुख्य विषय शिक्षा, समाज एवं संस्कृति था. कुलपति ने कहा कि शिक्षा जीवन की ज्योति है. यह समाज का प्राण वायु है. शिक्षा के बिना समाज, संस्कृति एवं जीवन अधूरा है.Photo : www.therepublicantimes.co

शिक्षकों एवं छात्र-छात्राओं पर है भारत को पुनः विश्वगुरू बनने की जिम्मेदारी : कुलपति ने कहा कि प्राचीन भारत में  शिक्षा की सुदृढ़ व्यवस्था रही है. हमारे नालंदा, विक्रमशिला एवं तक्षशिला विश्वविद्यालय की दुनिया में प्रसिद्धि हैं और अपने ज्ञान एवं दर्शन के कारण ही हम विश्वगुरू के रूप में प्रतिष्ठित रहे हैं, लेकिन आज शिक्षा में कमी आ गई है. हमें इस कमी को दूर करना है और सबको मिलकर पुनः भारत को विश्वगुरू बनना है.

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 इसकी जिम्मेदारी सभी शिक्षकों एवं छात्र-छात्राओं पर है. उन्होंने कहा कि शिक्षा नीतियों के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए केंद्र एवं राज्य सरकार के बीच सहयोग एवं समन्वय की जरूरत है. मौजूदा कानूनों में सुधार करने एवं कई नए कानूनों का निर्माण करना भी आवश्यक है. वित्तीय संसाधनों में वृद्धि एवं उसका समुचित प्रबंधन करने, पाठ्यक्रमों में बदलाव, नये शिक्षण संस्थानों की स्थापना एवं योग्य शिक्षकों की नियुक्ति एवं उनका समुचित प्रशिक्षण भी जरूरी है.Photo : www.therepublicantimes.co

आज शिक्षा एवं संस्कृति में आ गया है कई विडम्बनायें एवं विरोधाभास : तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय भागलपुर के पूर्व अध्यक्ष प्रो डा केदारनाथ तिवारी ने कहा कि आज शिक्षा एवं संस्कृति में कई विडम्बनायें एवं विरोधाभास आ गया है. इसमें समाज बुरी तरह फंस गया है. इन्हीं कारणों से समाज में विकृति आ गई है. समाज दिशाहीन एवं दिग्भ्रमित है. हमें इसका निदान खोजना होगा एवं इसके लिए सभी स्तरों पर नैतिकता के कवज को मजबूत करना जरूरी है. मुख्य अतिथि भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद नई दिल्ली के अध्यक्ष प्रो डा रमेशचंद्र सिन्हा ने कहा कि भारतीय दर्शन एवं संस्कृति मूल्यों पर आधारित है.

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 इन्हीं प्राचीन जीवन मूल्यों को अपनाकर हम समाज, राष्ट्र एवं विश्व का कल्याण कर सकते हैं. उन्होंने कहा कि आज शिक्षा का काफी विकास हुआ है, लेकिन आज भी वंचितों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा नहीं मिल पा रही है. हमें समतामूलक एवं शोषणविहीन समाज बनाने के लिए   शिक्षा के क्षेत्र में समता लाने की जरूरत है. भारतीय जीवन मूल्यों को केंद्र में रखकर शिक्षा नीति बनाने की जरूरत है.Photo : www.therepublicantimes.co

अंग्रेजों की साम्राज्यवादी नीति ने हमारी शिक्षा-पद्धति को हाशिये पर ला खड़ा किया : प्रो डा केदारनाथ तिवारी ने कहा कि नई शिक्षा नीति में मातृभाषा पर काफी ध्यान दिया गया है. मातृभाषा के माध्यम से ही सृजनात्मकता आती है. अन्य भाषाओं में सृजनशिलता नहीं आ पाती है. टीएस इलियट की तरह का कोई भारतीय अंग्रेजी में नहीं लिख पाया. संस्कृत में कालीदास, वाचस्पति मिश्र, मंडन मिश्र एवं गंगेश उपाध्याय की रचनाओं का काफी महत्व है. यदि ये लोग अंग्रेजी में लिखते तो शायद यह नहीं हो सकती. नवनालंदा महाविहार के कुलपति प्रो डा बैद्यनाथ लाभ ने कहा कि भारत में गुरूकुल शिक्षा पद्धति चल रही थी. हमारी यह प्राचीन शिक्षा पद्धति काफी विकसित थी. हमारे संस्कृति, पाली एवं प्राकृत के ग्रंथों में ज्ञान का भंडार छिपा है, लेकिन अंग्रेजों की साम्राज्यवादी नीति ने हमारी शिक्षा-पद्धति को हाशिये पर ला खड़ा किया और हमारे साहित्य, दर्शन एवं पूरी ज्ञान परंपरा को काफी नुकसान पहुंचाया. उन्होंने कहा कि हमें भारत एवं भारतीयता को केंद्र में रखकर शिक्षा व्यवस्था का पुनर्गठन करने की जरूरत है. हमें यूरोपीय एवं पश्चिम की दृष्टि से सोचना-समझना बंद करना होगा और हीनभावन से मुक्त होकर अपना राष्ट्रीय गौरवबोध जगाना होगा.

शिक्षा ही वह कड़ी हैं, जो समाज को संस्कृति के रूप में करती है रूपांतरित : बीएनएमयू की प्रति कुलपति प्रो डा आभा सिंह ने कहा कि साधरण तौर पर एक जगह पर कुछ लोग रहने लग जाते हैं, तो समूह बन जाता है, लेकिन वास्तव में समाज तब बनता है, जब एक जगह स्थित लोग हों या एक जगह ना भी हो, दूर-दूर ही क्यों ना हो, लेकिन नैतिक मूल्यों को शेयर करते हो, तब समाज बनता है और समाज के ये नैतिक मूल्य उसके साहित्य, उसकी कलाओं, विज्ञान आदि में प्रकाशित होते है. समाज से संस्कृति तक की यात्रा में शिक्षा का महत्वपूर्ण योगदान होता है. शिक्षा ही वह कड़ी हैं, जो समाज को संस्कृति के रूप में रूपांतरित करती है. शिक्षा के द्वारा उन मूल्यों का सम्प्रेषण होता है, जो समाज को सुसंस्कृत करने में सहायक होते हैं. शिक्षा का संबंध व्यक्ति एवं समाज दोनों होता है. व्यक्ति एवं समाज दोनों के निर्माण में शिक्षा का योगदान होता है. भारत की मूल विशेषता उसकी आध्यात्मिकता है. आध्यात्मिकता एवं दर्शन ही रचनात्मकता का आधार है. पूर्व मंत्री डा रविंद्र कुमार एवं बीएनएमयू कुलसचिव डा कपिलदेव प्रसाद यादव ने सम्मानित अतिथि के रूप में आयोजन की सराहना की. इसके पूर्व अतिथियों का लेफ्टिनेंट गुड्डू कुमार के नेतृत्व में एनसीसी के कैडेट्स ने गार्ड ऑफ ऑनर दिया. कार्यक्रम की शुरुआत अतिथियों ने दीप प्रज्ज्वलित कर की. उस दौरान खुशबू शुक्ला ने संस्कृति में मंगलाचरण किया. अतिथियों का अंगवस्त्रम्, पुष्पगुच्छ एवं मोमेंटो से स्वागत किया गया.

रमेश झा महिला कॉलेज के द्वारा दी गई स्वागत गान, कुलगीत एवं होली गीत की प्रस्तुति : स्मारिका, दार्शनिक अनुगूंज पत्रिका एवं डा मृत्युंजला कुमारी की पुस्तक बौध साधना पद्धति का विमोचन किया गया. इस अवसर पर प्रो डा प्रभु नारायण मंडल को प्रोफेसर सोहनराज लक्ष्मी देवी तातेड़ लाइफ टाइम एचीवमेंट अवार्ड एवं डा कमलेंद्र कुमार को सर्वश्रेष्ठ पुस्तक पुरस्कार प्रदान किया गया. रमेश झा महिला महाविद्यालय सहरसा के संगीत के शिक्षक डा गिरिधर श्रीवास्तव पुटीस के नेतृत्व में ईशा श्रीवास्तव, मीनाक्षी कुमारी, निशु भारती समेत अन्य छात्राओं ने स्वागत गान, कुलगीत एवं होली गीत प्रस्तुत किया. राष्ट्रगान जन गण मन के सामूहिक गायन के साथ उद्घाटन समारोह संपन्न हुआ. स्वागत भाषण बीएनएमयू के पूर्व प्रभारी कुलपति प्रो डा ज्ञानंजय द्विवेदी एवं संचालन जनसंपर्क पदाधिकारी डा सुधांशु शेखर ने किया. धन्यवाद ज्ञापन टीपी कॉलेज के प्राचार्य डा केपी यादव ने की. दर्शन परिषद बिहार के अध्यक्ष प्रो बीएन ओझा ने परिषद का परिचय एवं महामंत्री डा श्यामल किशोर ने प्रगति प्रतिवेदन प्रस्तुत किया.

इस अवसर पर प्रो डा नरेश प्रसाद तिवारी, प्रो डा शंभू प्रसाद सिंह, डा पूनम सिंह, डा शैलेश कुमार सिंह, डा किस्मत कुमार सिंह, डा शैल कुमारी, डा मधुबाला मिश्र, डा वीणा कुमारी, डा मुकेश कुमार चौरसिया, डा नीरज प्रकाश. आदि उपस्थित थे. कार्यक्रम के आयोजन में डा जवाहर पासवान, डा सुभाष पासवान, डा राजकुमार रजक, डा शंकर कुमार मिश्र, डा प्रत्यक्षा राज, डा पूजा कुमारी, डा अमरेंद्र कुमार, डा रणधीर कुमार सिंह, डा पंकज कुमार, डा स्वर्ण मणि, सौरभ कुमार, रंजन कुमार, माधव कुमार, दिलीप कुमार दिल, इशा असलम, बिमल कुमार, डा प्रियंका सिंह, अमरेश कुमार अमर, सारंग तनय, सौरभ कुमार चौहान, मनीष कुमार, डेविड यादव आदि ने सहयोग किया.

अमित कुमार अंशु
उप संपादक

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