किशनगंज/बिहार : कंकई की तेज धार में दर्जनों घर समा गया है, लोग बेघर होकर भटकने को मजबूर हैं । बावजूद इसके अब तक बेघर -बेसहारों की चींख पुकार की आवाजें प्रशासन के कानों तक नहीं पहुंची है । अभी अभी बने आशियाने या तो नदी की भेट चढ़ गये या फिर नदी में समा जाने को तैयार हैं । बाढ़ और विपदाओं को लेकर शासन और प्रशासन की घोषणाएं खोखली हीं साबित हो रही है ।
जिले के दिघलबैंक प्रखंड के सिंघीमारी में मंदिरटोला की यह तस्वीरें पीड़ित परिवारों के दर्द की दास्तां सुनाने को काफी होगी। जहाँ के रामचंद्र, चोटी मंडल और रुपचंद ऋषिदेव जैसे दर्जनों परिवार बेघर हो चुके हैं। जिनकी मेहनतों से बने आशियाने इस कंकई नदी के भेट चढ़ चुकी है और जो बचे हैं किसी भी वक्त नदी में समा जाने को आतुर हैं ।
वहीं गॉंव से सटकर निकलने वाली पक्की सड़क लगभग नदी में समा चुकी है। हैरान परेशान पीड़ित परिवारों के सामने ईश्वर हीं सहारा है। यह कोई नई बात नहीं है, जब नदी के कहर से लोग कई जगह बदल चुके हैं। पर नेपाली कंकई अपनी जिद्द पर अड़ी है। यहाँ के एक युवक मनोज कुमार ने तस्वीरों के जरिये गॉंव वालों की आपबीती “द रिपब्लिकन टाइम्स” तक पहुंचा पाये हैं । यहाँ के हालात बद से बदतर हो चुकी है। भाग दौड़ की फिक्र में बच्चे भूख से बिलबिला रहे हैं, तो मॉं बाप के पेट की आग इस आपाधापी में शांत पड़ गई है । जहाँ इन लोगों की खोज खबर लेने वालों की तलाश में इन परिवारों के लोग लगे हैं लेकिन इनकी तलाश पूरी होती नहीं दिख रही है । कुछ बचा पाने के जुगाड़ में लोग अपना घर तोड़ रहे हैं, तो कई कल के लिए अपने पेड़ों को काट, रहे हैं ।
बहरहाल कुल मिलाकर यहाँ के ग्रामीण खुद पर हीं भरोसाकर भाग रहे हैं। जिनकी आंखों में तैरती दहशत और सब कुछ उजड़ जाने का गम सहज हीं महसूस किया जा सकता है । आगे एक मात्र उस उपर वाले का सहारा ………