मधेपुरा/बिहार : कोविड-19 का देश-दुनिया की अर्थव्यवस्था पर बुरा प्रभाव पड़ा है। शहर एवं गांव दोनों इससे प्रभावित हैं, शिक्षा, समाज एवं अर्थ व्यवस्था पर इसका कुप्रभाव पड़ा है, भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर भी इसका मार झेल रही है। ऐसे में ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर कोविड-19 के प्रभावों का विश्लेषण आवश्यक हो जाता है।
यह बात बीएनएमयू कुलपति प्रो डा ज्ञानंजय द्विवेदी ने कही। वे सोमवार को कोरोना का अर्थव्यवस्था एवं पर्यावरण पर प्रभाव विषयक राष्ट्रीय वेबिनार में बोल रहे थे। यह आयोजन ठाकुर प्रसाद महाविद्यालय के राष्ट्रीय सेवा योजना एवं दर्शन परिषद बिहार के संयुक्त तत्वावधान में किया गया। उन्होंने कहा कि कोरोना ने हमारे जीविकोपार्जन के साधनों पर भी कुप्रभाव डाला है। खासकर जो मजदूर एवं कामगार हैं, उनका जीवन दुभर हो गया है।
पर्यावरण की सुरक्षा के बगैर विकास अनैतिक : अखिल भारतीय दर्शन परिषद के अध्यक्ष डा जटाशंकर ने कहा कि भारतीय दर्शन में चार पुरुषार्थ माने गए हैं। ये धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष हैं। मानव को जीने के लिये अर्थ चाहिये, धन चाहिये, बिना अर्थ के हमारी आवश्यक आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं हो पाती है। यदि समय पर मानव की आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं हो, तो हमारा अस्तित्व ही समाप्त हो जायेगा। भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद् के अध्यक्ष डा रमेशचंद्र सिन्हा ने कहा कि अपने प्रचूर प्राकृतिक संसाधनों के कारण ही भारत सोने की चिड़िया के नाम से जाना जाता था। विदेशियों ने हमारे संसाधनों का शोषण कर देश को गरीब बनाया। उन्होंने कहा कि पर्यावरण की सुरक्षा के बगैर विकास अनैतिक है।
भविष्य की पीढ़ी के लिये भी हमें बचाकर रखना होगा संसाधन : मुंगेर विश्वविद्यालय के प्रति कुलपति डा कुसुम कुमारी ने कहा कि अर्थ जीवन की धूरी है। सब कुछ अर्थ पर आधारित है। कोरोना काल में विश्व की अर्थव्यवस्था चरमरा गई है। कोरोना एक स्वास्थ्य संकट ही नहीं, बल्कि आर्थिक संकट भी है। सिंघानिया विश्वविद्यालय जोधपुर राजस्थान के पूर्व कुलपति प्रो डा सोहनराज तातेड़ ने कहा कि कोरोना काल में अर्थव्यवस्था पर बुरा प्रभाव पड़ा है, लेकिन प्रकृति पर इसका अच्छा प्रभाव पड़ा है, हम कोरोना से सबक लें। दर्शन परिषद बिहार के अध्यक्ष डा बीएन ओझा ने कहा कि कोरोना काल में आर्थिक परेशानी बढ़ी है, काम बाधित है, रोजगार के अवसर कम हो गये हैं। महामंत्री डा श्यामल किशोर ने कहा कि हमें जीवन को चुनना है, जीवन धन से ज्यादा जरूरी है। उन्होंने कहा कि हमें भविष्य की पीढ़ी के लिये भी संसाधनों को बचाकर रखना होगा।
कोरोना संक्रमण जीवन-दर्शन एवं सभ्यता-संस्कृति का संकट : जनसंपर्क पदाधिकारी डा सुधांशु शेखर ने कहा कि कोरोना संक्रमण महज स्वास्थ्य या अर्थ व्यवस्था का संकट नहीं है, यह जीवन-दर्शन एवं सभ्यता-संस्कृति का संकट है, यह विकास नीति एवं जीवन मूल्य से जुड़ा संकट है।
इसके पूर्व कार्यक्रम का प्रारंभ संस्थापक कीर्ति नारायण मंडल के चित्र पर पुष्पांजलि के साथ हुई। खुशबू शुक्ला ने वंदना प्रस्तुत किया. तनुजा ने स्वागत गीत गाया। इस अवसर पर डा गीता दूबे, प्रो डा राकेश कुमार, बिहार, डा हिमांशु शेखर, डा एनके अग्रवाल , सीएस पूजा शुक्ला, डा आरकेपी रमण, डा अनिल ठाकुर आदि ने अपने विचार व्यक्त किये।
कार्यक्रम के आयोजन में डा आनंद मोहन झा, रंजन यादव, सारंग तनय, विवेकानंद, मणीष कुमार, सौरभ कुमार चौहान, गौरव कुमार आदि का विशेष सहयोग रहा. वेबीनार में बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, नई दिल्ली आदि राज्यों से प्रतिभागियो ने भाग लिया।