मधेपुरा/बिहार : कोरोना संक्रमण ने दुनिया को दहशत में ला खड़ा किया है। यह कोरोना संक्रमण महज स्वास्थ्य या अर्थ व्यवस्था का संकट नहीं है। यह जीवन-दर्शन एवं सभ्यता-संस्कृति का संकट है। यह विकास नीति एवं जीवन मूल्य से जुड़ा संकट है।
यह बात ठाकुर प्रसाद महाविद्यालय में आयोजित राष्ट्रीय वेबिनार में सामने आई। इसमें शामिल वक्ताओं ने कहा कि हमें कोरोना संक्रमण से सीख एवं सबक लेने की जरूरत है। हम भोगवादी आधुनिक सभ्यता-संस्कृति एवं भौतिक विकास की होड़ को छोड़ें। सिंघानियां विश्वविद्यालय जोधपुर राजस्थान के पूर्व कुलपति प्रो डा सोहनराज तातेड़ ने कहा कि प्रकृति हमारी मां है। हमारा जीवन इस पर निर्भर है। आज हमने प्रकृति मां से दूरी बना लिया है। कोरोना संक्रमण इसका परिणाम है। कोरोना संक्रमण से बचने में हमें प्रकृति की ओर लौटना होगा, इसमें हमारी प्राचीन परंपरायें मददगार हो सकती हैं। हम प्राकृतिक जीवनशैली योग एवं आयुर्वेद को अपनाकर कोरोना से बच सकते हैं।
जीवन-रक्षा के उपायों को अपनाते हुये गतिविधियों को रखना होगा जारी : भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद नई दिल्ली के अध्यक्ष प्रो डा रमेशचंद्र सिन्हा ने कहा कि कोरोना वायरस ने किसी को नहीं छोड़ा है। इसने विश्व को आक्रांत कर दिया है, कोरोना ने समाज को क्षतविक्षत कर दिया है। मनुष्य अगर जिंदा रहेगा, तो हम पुनः सभी संरचनायें खड़ी कर लेंगे। मनुष्य का जीवन बचाना सबसे ज्यादा जरूरी है। मुंगेर विश्वविद्यालय मुंगेर की प्रति कुलपति प्रो डा कुसुम कुमारी ने कहा कि हम कोरोना के कारण आर्थिक, सामाजिक एवं भावनात्मक रूप से परेशान हुये हैं। यदि हमें इस संकट से उबरना है, तो हमें सनातन सभ्यता संस्कृति एवं जीवन-दृष्टि को अपनाना होगा। हेमवती नंदन बहुगुणा केंद्रीय विश्वविद्यालय श्रीनगर-गढवाल उत्तराखंड में दर्शनशास्त्र विभाग की अध्यक्ष प्रो डा इंदू पांडेय खंडूड़ी ने कहा कि हमें कोरोना संकट के इस चुनौती को स्वीकार करना है, जीवन-रक्षा के उपायों को अपनाते हुये विभिन्न गतिविधियों को जारी रखना होगा, संकटकाल में प्रयास जारी रखना चाहिये।
कोरोना ने हमारे सामाजिक एवं शैक्षणिक व्यवस्था को कर दिया है सालों पीछे : पटना विश्वविद्यालय पटना के सेवानिवृत्त प्राध्यापक प्रो डा एनपी तिवारी ने कहा कि कोरोना के कारण शिक्षा में परिवर्तन आया है। शिक्षा का माध्यम बदल गया है, ऑनलाइन कक्षायें हो रही हैं। इसमें कई परेशानियां हैं. हमें शिक्षा के आफलाइन एवं ऑनलाइन दोनों माध्यमों को अपनाना होगा, हमें आशावादी बनकर रहना होगा। दर्शन परिषद बिहार के अध्यक्ष प्रो डा बीएन ओझा ने कहा कि कोरोना ने हमारे सामाजिक एवं शैक्षणिक व्यवस्था को सालों पीछे कर दिया है। हमारे पूर्वजों ने जो बात की थी, हम उसे भूल रहे थे, हम पश्चिम की नकल करने लगे थे। कोरोना वायरस ने हमें फिर से अपने पुराने संस्कारों की याद दिला दी है। दर्शन परिषद बिहार के महामंत्री डा श्यामल किशोर ने कहा कि हमें कोरोना के साथ जीना सीखना होगा। शिक्षा एवं समाज में परिवर्तन लाना होगा, साथ ही शिक्षा के क्षेत्र में भी काफी परिवर्तन करने होंगे।
ऑनलाइन शिक्षा के कई नकारात्मक प्रभाव, फिर भी यही एक विकल्प : स्कॉटिस्ट चर्च महाविद्यालय कोलकाता में हिंदी विभाग की अध्यक्ष डा गीता दूबे ने कहा कि प्राकृतिक आपदाओं एवं महामारियों में लोगों का जीवन खतरे में पड़ता है। हम इस महामारियों एवं प्राकृतिक आपदाओं से सीख लेकर जीते हैं। इसके बाद हम पुनर्जीवित हो उठते हैं। बीएनएमयू के सामाजिक विज्ञान संकायाध्यक्ष डा आरकेपी रमण ने कहा कि ऑनलाइन शिक्षा के कई नकारात्मक प्रभाव हैं। फिर भी अभी यही एक विकल्प है, हमें निराश नहीं होना है। बीएनएमयू के मानविकी संकायाध्यक्ष डा उषा सिन्हा ने कहा कि यदि प्राकृतिक संसाधनों का इसी तरह तेजी से दोहन होता रहा, तो आने वाली पीढ़ियों के लिए कुछ नहीं बचेगा। आज का प्रश्न यह है कि आने वाली पीढ़ी को बचाया कैसे जाय।