मधेपुरा : प्राइवेट स्कूलों पर ज्यादा दबाव ना दें सरकार – शमायल अहमद

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अमित कुमार अंशु
उप संपादक

मधेपुरा/बिहार : बिहार में 25 हजार से ज्यादा स्कूल प्राइवेट स्कूल एसोसिएशन से जुड़े हुए हैं और पूरे देश में दो लाख से ज्यादा स्कूल, प्राइवेट स्कूल एसोसिएशन से जुड़े हुए हैं। वर्ष 2011 में एसोसिएशन की शुरुआत हुई थी। राज्य के सभी स्कूलों को राज्य सरकार से मान्यता मिल जानी चाहिए थी। राज्य के कई स्कूलों को मान्यता मिल भी गई है और कई स्कूलों को अभी तक मान्यता नहीं मिल पाई है। जिन विद्यालयों को मान्यता नहीं मिली है, उनको मान्यता दिलाने के लिए एसोसिएशन प्रतिबध है। जिन विद्यालयों को मान्यता नहीं मिली है, उन विद्यालयों में 25 प्रतिशत गरीब बच्चों को लाभ नहीं मिल पाता है। जिला शिक्षा पदाधिकारी ऐसे विद्यालयों को मान्यता दिलाने आगे की कार्रवाई करें, जिससे 25 प्रतिशत गरीब बच्चों को उसका लाभ मिल सके।

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उक्त बातें जिला मुख्यालय स्थित अतिथि गृह में गुरुवार को प्राइवेट स्कूल एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष शमायल अहमद ने प्रेस वार्ता के दौरान कही।  वर्ष 2011 में राइट टू एजुकेशन के माध्यम से नई शिक्षा नीति लागू हुई थी।  जिसमें छह साल से लेकर 14 साल के बच्चों को अनिवार्य शिक्षा देने की बात हुई थी।  इसके लिए पूरे प्रदेश एवं देश में एसोसिएशन में बच्चों को शिक्षा देने का कार्य किया, लेकिन सरकार के द्वारा जो राशि दी जानी थी, वह राशि कई विद्यालयों में नहीं मिली है।  इसके लिए शिक्षा विभाग आगे की कार्यवाही करें।

प्राइवेट स्कूलों पर ज्यादा दबाव ना दें सरकार : राष्ट्रीय अध्यक्ष शमायल अहमद ने कहा कि अभी कई नए कानून बने हैं।  खासकर के भारत सरकार के द्वारा नई शिक्षा नीति बनाई गई है।  जिस पर एसोसिएशन ने बेंगलुरु में 9, 10 एवं 11 जून को राष्ट्रीय सम्मेलन कर निर्णय लिया था कि अगर सरकार चाहती है कि देश का शिक्षा का स्तर ऊंचा हो तो प्राइवेट स्कूलों पर ज्यादा दबाव ना दें।  अगर प्राइवेट स्कूलों पर ज्यादा नकेल कसेंंगे तो शिक्षा का स्तर और गिरता ही जाएगा और देश के बच्चों को नुकसान पहुंचेगा।  उन्होंने कहा कि आज देश, खासकर बिहार में जो शिक्षा का स्तर ऊंचा हो रहा है, वह प्राइवेट स्कूल की वजह से हो रहा है।  आज पूरे देश में जो भी बच्चे जिले का नाम, राज्य का नाम या देश का नाम रोशन कर रहे हैं, उसमें अगर प्रतिशत देखा जाए तो प्राइवेट स्कूल के बच्चे ज्यादा रहते हैं।  सरकारी विभागों के बड़े अधिकारी से लेकर सबसे नीचे चपरासी तक के बच्चे भी प्राइवेट स्कूलों में पढ़ते हैं।  सरकारी स्कूल में पढ़ाने वाले शिक्षक के बच्चे भी प्राइवेट स्कूलों में पढ़ते हैं।  सरकारी स्कूल के शिक्षकों को भी सरकारी स्कूल के शिक्षा पर विश्वास नहीं है।  इसलिए वह अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूल में पढ़ाते हैं।  

उन्होंने कहा कि जब सरकारी विभाग से लेकर प्राइवेट विभागों के बड़े अधिकारियों से लेकर छोटे तबके के लोग भी अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूल में पढ़ाना चाहते हैं तो सरकार को भी प्राइवेट स्कूल के साथ कदम से कदम मिलाकर चलना चाहिए और प्राइवेट स्कूल के कार्य में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।

प्राइवेट स्कूल के कामकाज में दखल दे रही है सरकार : राष्ट्रीय अध्यक्ष ने कहा कि लगातार देखा जा रहा है कि शिक्षा विभाग के अधिकारी या सरकार के अन्य अधिकारी प्राइवेट स्कूल के कामकाज में दखल दे रहे हैं।  इससे बच्चों की शिक्षा बाधित हो रही है।  आए दिन विभाग के द्वारा नए नए नियम थमा दिए जाते हैं।  ऐसे में स्कूल के निदेशक एवं प्राचार्य डीईओ ऑफिस तथा बीईओ ऑफिस का चक्कर लगाते रहेंगे तो जो हालात सरकारी स्कूलों की हो गई है, वही हालात प्राइवेट स्कूलों की भी हो जाएगी।  जिन बच्चे के माता-पिता अपने खून पसीने की कमाई से बच्चों को प्राइवेट स्कूल में शिक्षा प्राप्त करने के लिए भेजते हैं, अगर उन विद्यालयों की शिक्षा खराब होने लगेगी तो इसकी पूरी जिम्मेवारी शिक्षा विभाग की होगी।  उन्होंने कहा कि नए एजुकेशन सिस्टम कि लाने की बात जो हो रही है, उसका बेंगलुरु में हुए अधिवेशन में एसोसिएशन ने विरोध किया था।  जिसके बाद अब तक 20 हजार से अधिक आवेदन एसोसिएशन के बैनर तले विद्यालयों ने सरकार को भेजा है. जिसमें यह कहा गया है कि सरकार के द्वारा जो नई शिक्षा नीति बनाई जा रही है, उस कमेटी में एसोसिएशन के प्रतिनिधि भी शामिल रहे, ताकि उसमें एसोसिएशन की भी बातें रखी जा सके।  उन्होंने कहा कि उस कमेटी में ऐसे लोगों को रखा गया है, जिनको प्राइवेट स्कूल के बारे में जानकारी नहीं है।  प्राइवेट स्कूल को लेकर जो नई शिक्षा नीति बनाई जा रही है, इससे ना तो देश को कोई फायदा है और ना ही विद्यार्थियों को एवं उनके माता-पिता को कोई फायदा है।

सरकार कहती है कि शिक्षा को बिजनेस ना बनाएं, विद्यालय से लिया जाता है कमर्शियल टैक्स

राष्ट्रीय अध्यक्ष ने कहा कि अभी बिहार सरकार के द्वारा यह निर्देश दिया गया है कि कोई भी प्राइवेट स्कूल सिर्फ सात प्रतिशत ही शुल्क में बढ़ोतरी कर सकती है।  ऐसे में हम बिहार सरकार से जानना चाहते हैं कि ऐसे में शिक्षा का स्तर कैसे ऊंचा हो सकता है।  क्योंकि प्राइवेट स्कूल में हर वर्ष नहीं वर्गों का निर्माण करना तथा शिक्षकों के वेतन में हर वर्ष बढ़ोतरी हो रही है।  साथ ही विद्यालय से सभी कमर्शियल टैक्स लिया जाता है।  उन्होंने कहा कि एक तरफ तो सरकार कहती है कि आप शिक्षा को बिजनेस ना बनाएं, वहीं दूसरी तरफ विद्यालय से दिए जाने वाले सभी टैक्स को बढ़ाए जा रहे हैं और साथ ही सरकार सात प्रतिशत से अधिक मासिक शुल्क बढ़ाने से भी मना कर रही है, ऐसे में तो सारा भार बच्चों के अभिभावकों पर ही पड़ेगा।  जिसके बाद अभिभावक भी स्कूल से ही सवाल पूछ बैठते हैं की इतनी फी क्यों बढ़ाई जा रही है।  उन्होंने कहा कि विद्यालय में बच्चों को विद्यालय से लाने और फिर घर पहुंचाने के लिए सिर्फ दो घंटे ही वाहन का उपयोग किया जाता है और टैक्स हमसे पूरे दिन का लिया जाता है।  ऐसे नियमों का एसोसिएशन विरोध करती है।  मौके पर एसोसिएशन के जिलाध्यक्ष किशोर कुमार, मानव सिंह, प्रवक्ता मानव कुमार सिंह, मो अबु जफर सहित अन्य लोग उपस्थित थे।


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