“मानवता को शर्मसार करती माब लिंचिंग : देश की छवि को भी कर रही है धूमिल”

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किसी न किसी आरोप के बहाने देश में माब लिंचिंग की घटनाएं निरंतर बढ़ती जा रही हैं। ताजा घटना झारखंड के खरसावां का है, जहाँ तबरेज़ अंसारी उर्फ सोनू नामक एक व्यक्ति, भीड़तंत्र का शिकार हुआ है। बाईक चोरी के कथित आरोप में तबरेज को भीड़ ने रात भर बुरी तरह पीटा और जबरन जय श्री राम और जय हनुमान के नारे लगवाए। पुलिस की अकर्मण्यता कि समय रहते  घायल तबरेज का ईलाज न कराया गया और अंततः उनकी मौत हो गई। इसे अराजकता के नग्न प्रदर्शन के अलावा और क्या कहा जा सकता है। इस तरह की घटनाएँ यह प्रदर्शित करती हैं कि कानून के शासन को अपेक्षित महत्व नहीं मिल रहा है। कानून को हाथ में लेकर अराजक व्यवहार करने की इजाजत किसी को भी नहीं दी जा सकती । सवाल है कि झारखंड पुलिस अब जो सक्रियता दिखा रही है, पहले क्यों नहीं दिखाई?

   आश्चर्य है कि लोगों में कानून का भय इतना कमजोर हो गया है कि घटना का बाजाप्ता विडियो बना कर सोशल मीडिया पर डाल दिया जाता है। यह चिंता की बात है कि भीड़ की हिंसा के मामले अपना पाँव तेजी से पसार रहे हैं और इसके आड़ में धर्म को भी बदनाम करने का चलन शुरू हो गया है। इस प्रकार के अराजक व्यवहार से न सिर्फ शांति व्यवस्था को चुनौती मिल रही है, अपितु अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देश की छवि भी धूमिल हो रही है। अगर सत्ता ऐसे गुंडे बवालियों को सबक सिखाने की ठान ले तो फिर चंद मिनटों में यह सही रास्ते पर आ जाएंगे। वास्तव में ऐसे लोगों का प्रयास है कि समुदाय विशेष के लोगों में डर पैदा किया जाए और निराशा और भय की स्थिति में जीने को विवश किया जाए परन्तु ऐसा संभव नहीं है।

राज्य सभा में कांग्रेस के नेता गुलाम नबी आजाद ने झारखंड को माब लीचिंग का हब बताया तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उसका जवाब देते हुए कहा कि मॉब लिंचिंग की घटनाएं गलत हैं, युवक की हत्या का दुख मुझे भी है और सबको होना चाहि, दोषियों को सजा होनी चाहिए……दोषियों के साथ न्यायिक प्रक्रिया के साथ जो भी किया जा सके, वह किया जाना चाहिए।’

प्रधानमंत्री जी का यह भी कहना था कि  ‘लेकिन इस घटना के लिए पूरे झारखंड के लोगों को दोषी मान लेना गलत है। झारखंड को मॉब लिंचिंग का अड्डा बताया गया। इस घटना के बिना पर एक राज्य को दोषी बताना क्या हमें शोभा देता है। फिर तो हमें वहां अच्छा करने वाले लोग ही नहीं मिलेंगे। सबको कटघरे में लाकर राजनीति तो कर लेंगे लेकिन हालात नहीं सुधार पाएंगे।”

काश! प्रधानमंत्री जी को पता होना चाहिए था कि झारखंड में माब लिंचिंग की यह इकलौती घटना नहीं है और निश्चय ही पूरे राज्य के लोगों को बदनाम नहीं किया जा सकता परन्तु झारखंड सरकारआखिरकार ऐसे लोगों से निबटने में अक्षम क्यों रही?

 पीड़ित को धर्म विशेष के नारे लगाने पर विवश किया जाता है। चिंतनीय है कि क्या जबरदस्ती भय के साए में विशेष धार्मिक नारे लगवाने से पीड़ित का अपना धर्म बदल जाता है या फिर वह उस धर्म का अनुयायी हो जाता है। निःसंदेह धर्म आस्था से जुड़ा होता है और किसी पर जबरदस्ती धर्म थोपा भी नहीं जा सकता।अगर प्रताड़ित कर ऐसा किया जाता है तो  कदापि उचित नहीं है और सभ्य समाज इसे कभी स्वीकार नहीं सकता। संकीर्ण मानसिकता के लोग अपने व्यवहार से जिस दुस्साहस का परिचय दे रहे हैं, स्वयं उसका धर्म उसके इस कृत्य को घृणित समझता है। विविधताओं में एकता की पहचान के लिए प्रसिद्ध देश भारत एक ऐसा पंथनिरपेक्ष देश है जो कई धर्मों का उद्गम स्थल रहा है और यहाँ की संस्कृति सभी धर्मों को बराबर सम्मान भी देती है परंतु कुछ संकीर्ण सोच के लोग इसकी छवि को धूमिल करने में लगे हैं जो चिंताजनक और शर्मनाक है।

मर्यादा पुरूषोत्तम राम जिसे आदर्श के रूप में स्वीकारा जाता है। जिसने अपने पिता के वचन को निभाने के लिए वनवास तक झेला, सत्ता का मोह त्याग किया, सबरी के जूठे बैर को खाकर, अनुशासन निष्ठा, सम्मान, और समानता का जो आदर्श प्रस्तुत किया उसे लोग सदैव गर्व से याद करते हैं। कितना दुर्भाग्यपूर्ण है कि कुछ संकीर्ण मांसिकता के लोग आज उनके नाम का इस्तेमाल लोगों में भय पैदा करने के लिए कर रहे हैं।

 जंगल में सफर करते हुए हिंसक पशुओं और जहरीले सांप, बिच्छुओं का डर सताने के काल्पनिक किस्से सुनाए जाते थे पर आज इंसानों की बस्ती में इंसानों को हैवान बनते और क्रुरता की हदें पार करते हुए वास्तविक रूप देखने को मिल रहे हैं। जरा सोचिए कि हम कितने गिरते जा रहे हैं। जबकि मानव सर्वश्रेष्ठ प्राणी कहलाता है।

समाज के बीच दरार पैदा करने और कट्टरता को बढ़ावा देने में राजनीतिक दलों की भी कम भूमिका नहीं रही है। राजनीतिक दलों के द्वारा धर्म और सम्प्रदाय की गहरी लकीरें खींच कर आपस में बाँटने की साजिश रची जा रह हैं और लोगों के अंदर वैमनस्यता का जहर फैलाया जा रहा है ताकि वे फूट डाल कर सत्ता पर अपनी मजबूत पकड़ बना सकें। 

निश्चय ही सोशल मीडिया मेन स्ट्रीम मीडिया के विकल्प के रूप में उभरा है । जहाँ मुख्यधारा की मीडिया कई महत्वपूर्ण खबरों को प्रस्तुत नहीं कर पाती हैं, सोशल मीडिया के द्वारा उसे हाईलाइट किया जाता है जिससे लोगों तक खबरें आसानी से पहुंच जाती हैं परंतु इससे भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि सोशल मीडिया के इस्तेमाल ने हिंसक खबरों और अफवाहों को भी बल प्रदान किया है। माब लिंचिंग को शौर्य के रूप में प्रदर्शित करने, लोगों के दिल में भय पैदा करने और इस अराजक प्रवृति को बढ़ावा देने के लिए बाकायदा वीडियो बनाए जाते हैं और फिर सोशल मीडिया पर डाल देते हैं। इससे न सिर्फ शांति सद्भाव और भाईचारे को गहरा आघात पहूँचता है बल्कि हमारे शासन प्रशासन को एक खुली चुनौती भी दी जाती है। लोगों की मानवीय संवेदना इतनी कमजोर हो रही हैं कि वे किसी भी दुखद घटना के समय पीड़ित को मदद करने की अपेक्षा उनका विडियो बनाने का शौक रखते हैं।

विडंबना है कि लोकतंत्र के सबसे बड़े मंदिर “संसद भवन”  में  जहाँ “भारत का संविधान” ही सर्वोपरि है, सत्रहवीं लोकसभा के नवनिर्वाचित सांसदों के शपथग्रहण के दौरान वहाँ धार्मिक नारे शायद इसलिए भी लगाए गए ताकि अपने साथी सांसदों को चिढ़ा सकें। सम्मानित सांसदों को इसकी तनिक भी परवाह नहीं रही कि इसका क्या संदेश जाएगा। शायद उन्होंने इस बात को भी नजरअंदाज कर दिया था कि इस भव्य समारोह का लाईव प्रसारण भी किया जा रहा है, जिसे देश ही नहीं दुनिया देख रही है।

आदरणीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने “सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास” का संदेश देकर देश को बार बार आश्वस्त करने का प्रयास किया है और भीड़तंत्र के खिलाफ सख्ती करने की बात कही है परंतु यह घटना रूकने का नाम नहीं ले रही । चिंतनीय है कि “मोदी है तो मुमकिन है ” वाली बात आखिरकार इस मामले में विफल क्यों हो जाती है?

  देश व प्रदेश की सरकार को भीड़ की अराजकता पर अंकुश लगाने के साथ ही उस प्रवृत्ति पर भी रोक लगानी चाहिए जिसके कारण हिंसक घटनाओं को बढ़ावा मिल रहा है। दोषियों पर  कठोर कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए ताकि लोगों में कानून का भय समाप्त न होने पाए और समाज को ऐसे लोगों का बहिष्कार करना होगा जो सामाजिक तानेबाने को कमजोर करने पर तूले हैं।

मंजर आलम,
(स्वतंत्र टिप्पणीकार)

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