एईएस (चमकी बुखार) से बिहार में हाहाकार : जनता पस्त-नेताजी मस्त

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एक्यूट इनसेफेलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) यानी चमकी बुखार से पूरे बिहार में हाहाकार मचा है। इस जानलेवा बीमारी से अब तक सूबे में 141 से ज्यादा मासूम बच्चों ने दम तोड़ दिया है। यह कोई नई बीमारी नहीं है ब्लकि इससे पहले भी मुजफ्फरपुर में बच्चे इससे प्रभावित हो चुके हैं।

 बीमारी की रोकथाम और बेहतर स्वास्थ्य सेवा की चिंता सरकार ,को न तो आज है न, पहले रही है। केंद्र और राज्य में  सत्तारूढ़ एनडीए सरकार के सांसद, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री से लेकर  प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री सब अपनी कमियों पर पर्दा डालने के लिए तरह तरह के ब्यानों से जनता को दिगभ्रमित करने में लगे हैं। कोई लीची को बहाना बना रहे हैं तो कोई वर्षा न होने को बीमारी का कारण बता रहे हैं। एक ओर माँ के सामने बच्चे दम तोड़ रहे हैं तो दूसरी ओर केंद्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री अश्वनि चौबे जी प्रेस कॉन्फ्रेंस में सोते हुए चिंतन करने में लगे हैं।

सुशासन बाबू नींद से तब जागे जब सैकड़ों बच्चे काल के गाल में समा गए।प्रचंड बहुमत वाली भाजपा जदयू और लोजपा के नेताओं को अपने प्रदेश के नौनिहालों की तनिक भी चिंता होती तो फिर स्वास्थ्य सेवा के मुद्दे पर निरर्थक ब्यानों के जरिए सरकार का बचाव करते नजर नहीं आते।     

                 हास्यास्पद है कि चमकी बुखार से पीड़ित बच्चों के बारे में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में राज्य के स्वास्थ्य सेवाओं की चिंता से कोसों दूर ,राज्य के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन के सामने मीडिया की मौजूदगी में वर्ल्ड कप क्रिकेट के दौरान भारत पाक क्रिकेट मैच के स्कोर जानने में रूचि ले रहे थे।शर्मनाक है कि कुछ मीडिया एंकर  सरकार की विफलता पर सवाल उठाने के बजाय विपक्ष के विरोध प्रदर्शन को राजनीतिक नौटंकी बता उन्हें रोगियों की सेवा करनेऔर अस्पताल जाकर सफाई करने की नसीहत देते हैं।दुखद है कि मीडियाकर्मी बार बार डॉक्टर्स को कोसने से भी बाज नहीं आ रहे। उन्हें कौन बताए कि सुविधाएं उपलब्ध करना सरकार की जिम्मेदारी है न कि डॉक्टर्स या विपक्ष की। सवाल है कि लोगों ने वोट स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार जैसे मुद्दे पर नहीं दिया था तो फिर आज उन नेताओं से इन मुद्दों पर सवाल भी किस मूंह से पूछे?

                 लोकतंत्र में नेताओं की मनमानी इतनी बढ़ जाए कि जनहित के मुद्दे पर सोचने के लिए समय नहीं हो तो फिर यकीनन आमजनों को गहन चिंतन मनन की आवश्यकता है।

मंजर आलम
(स्वतंत्र टिप्पणीकार)

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