आज तमाम गैर कांग्रेसी और गैर भाजपाई तथाकथित सेक्यूलर समाजवादी दल या यों कहें शरद ,लालू , मुलायम, मायावती, अखिलेश, तेजस्वी, देवगौड़ा, मांझी जैसे नेता जब भाजपा और आरएसएस से देश ,देश के लोकतंत्र और संविधान को खतरा बताते हैं तो हंसी आती है । जेपी आंदोलन के कोख से जन्मे इन नेताओं की नीति -सिद्धांत परिवर्तनशील हो चुकी है । आज जिस भाजपा और आरएसएस को ये सब साम्प्रदायिक शक्ति बता रहे हैं , जिससे संविधान को खतरा बता रहे हैं, उसे सींचा किसने? उसे पूरा खाद- पानी देकर इन सबके गुरु जेपी ने ही तो वटवृक्ष बनाया था ।
आरएसएस की राजनैतिक शाखा जनसंघ (अब भाजपा ) को राजनीति के मेनस्ट्रीम में लाने वाले जेपी ही तो थे। जेपी ने कहा था – “संघ अगर सांप्रदायिक है तो मैं भी सांप्रदायिक हूँ ।” उनका यह ब्यान गुगल की भी शोभा बढ़ा रहा है । फिर आज किस मुंह से श्रद्धा के साथ जेपी की जयंती मनाने ,खुद को जेपी का शिष्य वो उत्तराधिकारी बताने वाले भाजपा का विरोध करते हैं ? आखिर भाजपा की गलती क्या है? यही न कि वह संघ के प्रति आस्थावान है । उस संघ के प्रति जिसके लिए संविधान से बड़ा मनुस्मृति है । इसमें गलत क्या है? यह विचारधारा तो भाजपा को उस जनसंघ से मिली है जिसे राजनीति के मेनस्ट्रीम में लाने वाले जेपी थे। उस जनसंघ को मुरारजी देसाई की सरकार में शामिल कराने वाले जेपी थे और जनसंघ के नये संस्करण भाजपा को बीपी सिंह की सरकार में जगह देने वाले जेपी के यही शिष्यगण । आज अगर भाजपा मजबूत हो गई , अपने बूते सत्तासीन हो गई तो दिक्कत क्यों ? इन समाजवादियों ने तो कांग्रेस की विचारधारा के विपरीत राजनीति की शुरुआत किया था , जिसके लिए भाजपा की विचारधारा का मतलब जेपी की विचारधारा थी । फिर आज भाजपा से नफ़रत क्यों ? क्यों इन समाजवादियों की नीति -सिद्धांत इतनी परिवर्तनशील हो गई है कि वे उस कांग्रेस के साथ खड़े हैं , जिस कांग्रेस का विरोध जेपी ने मरते दम तक किया था ? स्पष्ट है ये सेक्यूलर समाजवादी अब तथाकथित हो चुके हैं , जिनका मकसद महज सत्ता प्राप्ति है। आज की तारीख में देश में जो कुछ हो रहा है उसमें भाजपा का कोई दोष नहीं है। भाजपा अपने सिद्धांत और दृष्टिकोण पर आज भी कायम है —-बदल तो जेपी के समाजवादी गए हैं। जो जेपी के लगाए वृक्ष को ही काटना चाहते हैं। यह जेपी के साथ धोखा है । जेपी का अपमान है ।