माँ का बेटा बना मंत्री, ”  बकौल मंत्री नरेंद्र नारायण यादव, पार्टी मेरी माँ है “

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यहिया सिद्दीकी

पटना/बिहार : मधेपुरा के अजातशत्रु, लोकनेता व आलमनगर के लोकप्रिय विधायक को बिहार सरकार के मंत्रिपरिषद में शामिल कर विधि सह लघु सिंचाई विभाग का कैबिनेट मंत्री बनाए जाने से क्षेत्र में जश्न का माहौल है । उन्हें मंत्री बनाने की मांग लंबे समय से उठ रही थी । जनआकांक्षा पूरी होते ही लोग झूम उठे। लिहाजा श्री यादव को विभिन्न माध्यमों से बधाईयां देने वालों का तांता लगा हुआ है ।

नरेंद्र नारायण यादव के गुण : सनद रहे कि श्री यादव 1995 से लगातार आलमनगर विधान सभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। वे अपने राजनैतिक आदर्श, आलमनगर इस्टेट के वारिस तथा 1977 से 1995 तक क्षेत्रीय विधायक व बिहार सरकार के मंत्री रहे बाबू बिरेन्द्र कुमार सिंह के राजनीति से संन्यास लेने के बाद पहली बार जनता दल के टिकट पर विधायक चुने गए थे। 1997 में जनता दल के विभाजन के बाद वे जदयू में चले गए और राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद के लाख प्रलोभन के बावजूद विपक्ष की राह चुनी। राजनैतिक शुचिता, ईमानदारीऔर जनता से जुडाव का उन्होंने ऐसी रेखा खींची जिसे आजतक कोई दूसरा पार नहीं कर सका। क्षेत्र में कहीं भी आध्यात्मिक, सांस्कृतिक, राजनैतिक, साहित्यिक, सामाजिक, वैवाहिक या श्राद्ध का आयोजन हो खबर मिलते ही वे आधी रात को भी हाजिर रहते हैं। उच्च मधुमेह, बाइपास सर्जरी से जुझते हुए रोज तीन-तीन बार इंसुलिन का डोज लेकर उन्हें एक -एक दिन में 20-25 लोगों के यहां भोज खाते देखा जा सकता है। विरोधियों द्वारा उनपर नचनिया और पेटू विधायक कहकर तंज भी किया जाता है ,लेकिन हकीकत है कि यही गुण उनकी ताकत है । उनके लोकनेता के तौर पर स्थापित होने का जरिया है और उन्हें 1995 से आजतक जीत दिलाकर अजातशत्रु बनाये हुए है। इसी गुण के कारण विरोधी भी उनकी इज्जत करते हैं। लिहाजा खुद राजद सुप्रीमों लालू प्रसाद को भी कहना पड़ा था -” आलमनगर नरेंद्र का है, उसे मैं भी नहीं हरा सकता ।”

कौन हैं नरेंद्र नारायण यादव : यूं मंत्री नरेंद्र नारायण यादव को राजनीति विरासत में मिली है । उनके पिता भी पंचायत के लोकप्रिय मुखिया थे। 1952 को मधेपुरा जिला के पुरैनी प्रखंड अंतर्गत बालाटोल गांव में सम्पन्न किसान सियाराम यादव और यशोधरा देवी के घर नरेंद्र का जन्म हुआ । अपने माँ-बाप की वे तीसरी और सबसे छोटी संतान हैं। वे बचपन से मेधावी थे। वर्ग में हमेशा प्रथम या द्वितीय स्थान पाने वाले नरेंद्र गरीब बच्चों को पढ़ाया भी करते थे।वे बचपन से ही गरीबों के हमदर्द रहे ।गाँव के स्कूल में पढ़ने वाले गरीब साथी महेन्द्र ऋषिदेव के लिए अपने घर से धान चोरी कर उनकी फीस भरने का किस्सा मशहूर है । कटिहार के प्रतिष्ठित डीएस काॅलेज से विज्ञान स्नातक श्री यादव का सपना डॉक्टर बनने का था , लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था और वे कम अंक के कारण असफल हो गए । उनके जीवन पर समाजवादी नेता लोहिया , कृपलानी और जेपी का गहरा प्रभाव पड़ा । 1977 में गैरकांग्रेस के आंदोलन में शामिल हो गए । उनके राजनैतिक सफर की शुरुआत 1978 में मुखिया का चुनाव जीतकर कर हुआ । तब से आजतक वे अपराजेय बने हुए हैं। 1985 में वे बेबी यादव से प्रणय सूत्र में बंधे। श्री यादव की कर्मठता से प्रभावित होकर तात्कालीन क्षेत्रीय विधायक बिरेन्द्र कुमार सिंह ने अपने सजातीय सवर्ण समुदाय के विरोध के बावजूद उन्हें आलमनगर का प्रमुख बनाया । उस पद पर वे 1995 में विधायक बनने तक काबिज रहे । उस वक्त मुखिया ही प्रमुख चुने जाते थे।

नरेंद्र नारायण यादव की उपलब्धि: नरेंद्र 1995 से लगायत क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। वे 1995 से 2005 तक विपक्ष में रहकर विभिन्न मुद्दों पर सरकार को घेरते रहे। लालू प्रसाद के लाख जतन के बावजूद वे सत्ता से दूर रहे और जनसंघर्ष का रास्ता चुना । जनता से जुडाव,अपनी कर्तव्यनिष्ठा तथा ईमानदार छवि की बदौलत वे लोकनेता के रूप में स्थापित हुए । कालांतर में नीतीश -जाॅर्ज की समता पार्टी का शरद यादव के जदयू में विलय हो गया । विलय के बाद वे शरद गुट के विधायक माने जाते थे ।2005 में जदयू को बिहार की सत्ता मिली और नरेंद्र को भी उनके संघर्ष की बदौलत नीतीश मंत्रिमंडल में शामिल किया गया। वे 2005 से 2015 तक बिहार सरकार के राजस्व एवं भूमिसुधार , विधि , ग्रामीण कार्य, पंचायती राज, योजना एवं विकास मंत्री रहते हुए अमिट छाप छोड़ी । 2015 में नीतीश कुमार एनडीए से अलग होकर महागठबंधन में शामिल हुए तथा दोबारा सत्तासीन हुए । इस बार नरेंद्र मंत्रिमंडल में शामिल होने से चूक गए । दो वर्ष बाद ही महागठबंधन से टूट कर नीतीश कुमार पुनः एनडीए में शामिल हो नई सरकार का गठन किया । इस बार भी श्री यादव को मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिली ।

लिहाजा उनके समर्थकों में खासी नाराजगी थी। कहा तो यह भी जा रहा था कि नरेंद्र नारायण यादव को शरद गुट का मानकर उपेक्षित किया जा रहा है, क्योंकि नीतीश के महागठबंधन से अलग होने
के बाद शरद बागी हो गए थे । हालांकि इन बातों से बेफिक्र नरेंद्र पूरी निष्ठा से पार्टी के लिए काम करते रहे। वे कहते रहे कि पार्टी उनके लिए मां के समान है । हाल के लोकसभा चुनाव में उन्होंने इस दावे को साबित भी कर दिया । जब शरद यादव राजद के टिकट पर मधेपुरा से चुनाव मैदान में उतरे तो नरेंद्र ने जदयू प्रत्याशी दिनेश चंद्र यादव को जीताने के लिए सबकुछ दाव पर लगा दिया । किसी भी विधान सभा की बनिस्पत जदयू प्रत्याशी को आलमनगर विधान से रिकॉर्ड 60 हज़ार से भी अधिक मतों से बढ़त दिलाकर सिद्ध कर दिया कि सचमुच वे पार्टी के लायक बेटा हैं ।
बहरहाल माँ का बेटा अब मंत्री बन चुका है । उनके समर्थक झूम उठे हैं । लिहाजा क्षेत्र में जश्न का माहौल है।


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