अर्श से फर्श तक….

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अनूप ना. सिंह
स्थानीय संपादक

राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद का बिहार की राजनीति में उदय बाधा पर विजय से कम नहीं। लालू अपनी रॉबिनहुड वाली छवि के कारण बिहार की राजनीति में ऐसे सर्वोच्च शिखर की तरफ अग्रसर हुए जिसकी कल्पना राष्ट्रीय स्तर पर उनके समकक्ष का कोई दूसरा राजनेता नही कर सकता। शोषित वंचित समाज के बल पर सत्ता के शीर्ष पर रहने वाला लालू परिवार(राजद) इस बार के लोकसभा चुनाव में शुन्य पर आऊट हो गया।

 चारा घोटाले के मामले में जेल में बंद लालू के अनुपस्थिति में उनका पूरा कुनबा बिखरने के कगार पर है। छोटे बेटे तेजस्वी यादव अभी राजनीति में नए खिलाड़ी है जो अपने कमजोर सिपहसालारो के कारण सवालों के घेरे में है। हालांकि राजनीति के जानकार मानते हैं कि तेजस्वी में लालू का अक्स नजर आता है। किंतु अभी परिपक्व नहीं है। इस बार के लोकसभा चुनाव में हम वीआईपी रालोसपा जैसी जनाधार विहीन पार्टियों को अपने कुनबे में शामिल कर बिहार विजय पर निकले राजद के युवराज को जोर का झटका जोरो से लगा है। ऐसा नहीं कि मुस्लिम यादव समीकरण पूरे बिहार में जिसके बल पर लालू यादव बिहार की सत्ता पर दो दशको तक काबिज रहे। इस बार दड़क गया एक गलती राजद की तरफ से हुई। ऊँची जाति के वोटरों को उसने जानबूझकर खुद से अलग किया गया।

 वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में जब नीतीश कुमार और भाजपा के गठबंधन ने पूरे बिहार में लालू विरोध के नाम पर जबरदस्त प्रदर्शन किया। उस काल में महाराजगंज से उमाशंकर सिंह वैशाली से रघुवंश प्रसाद सिंह बक्सर से जगदानंद सिंह सारण से लालू प्रसाद यादव खुद सांसद निर्वाचित हुए। इस बार के लोकसभा चुनाव में दल के वरिष्ठ सवण नेताओ को नई रणनीति के तहत दरकिनार करना भी राजद के लिए भारी पड़ गया। राजद ने अपने नए सहयोगियों को जो सीटे दी उनमे बहुत सारे सीटों पर जनाधार वाले नेताओं को दरकिनार कर धनबल वाले नेताओं को टिकट दिया गया जिसका असर भी पड़ा। जारी……


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