मधेपुरा: चौसा के कई गाँव आजादी के सत्तर साल बाद भी सड़क सुविधा से महरूम – मांग करने पर अंग्रेजी हुकूमत की तरह पेश आता है प्रशासन

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आरिफ आलम
संवाददाता, चौसा, मधेपुरा

चौसा/मधेपुरा/बिहार : मधेपुरा जिला के चौसा प्रखंड में कई गांव आजादी के सत्तर वर्ष बाद भी विकास से कोसो दूर है।इन गांवों का मुख्य मार्ग से कोई संपर्क नही है। लिहाजा ऐसे गांवों की बड़ी आबादी को मूलभूत सुविधाएं मयस्सर नहीं है ।

मालूम हो कि हमारे देश को आजाद हुए 71 वर्ष बीत चुके हैं। इस बीच कितनी ही सरकारें आई और गई ! हर सरकार ने विकास के नाम पर अपनी पीठ को खूब थपथपाया, लेकिन हकीकत यह है कि इतने दिन बीत जाने के बाद भी चौसा प्रखंड के कई गांव आज भी विकास से कोसों दूर है। चौसा प्रखंड के लौआलगान पश्चिमी पंचायत के शंकरपुर, अभिरामपुर तथा उससे सटे पुनामाबासा के लोग अभी भी एक अच्छी सड़क को मोहताज हैं।

इलाके की बदहाल स्थिति और यहाँ के लोगों की दर्दभरी दास्ताँ सुनाने के लिए देखें इस वीडियो को  

क्या कहते हैं शंकरपुर के ग्रामीण

ग्रामीण सुभाष यादव, गोकुल यादव ,बिपिन कुमार ,चंद्र किशोर कुमार, संजय यादव, जितेंद्र सिंह, दिवाकर सिंह ,पिंटू सिंह, सियाराम सिंहसमेत दर्जनों ग्रामीणों ने बताया कि हमारे गांव से मुख्य मार्ग महज 3 किलोमीटर है,जिस पर कई साल पहले ईंट सोलिंग हुई थी । आज उस ईंट सोलिंग की हालत इतनी जर्जर हो गई है कि उस पर चलना काफी मुश्किल हो जाता है । लोग सड़क को छोड़ पगडंडी का सहारा लेकर अपने गांव को जाते हैं। अगर बारिश हो जाए तो लोगों का पैदल चलना भी मुश्किल हो जाता है।हांलाकि शंकरपुर के बीच गांव में पंचायत समिति के द्वारा तीन सौ फीट ढलाई कराई गई है, लेकिन उसका मुख्य मार्ग से कोई सम्पर्क नहीं है। शंकरपुर निवासी शंकर यादव बताते हैं कि दो दिन पहले मेरे यहाँ रिश्ते के लिए मेहमान आये थे, लेकिन सड़क की हालत देख कर पीछे हट गए। ग्रामीणों का कहना है कि इस संदर्भ में क्षेत्रीय विधायक और सांसद एवं स्थानीय जनप्रतिनिधि को कई बार कहा गया ,लेकिन सभी सिर्फ आश्वासन देकर चले जाते हैं । इस पर कोई ध्यान ही नहीं देते और हम लोग बद से बदतर जिंदगी जी रहे हैं। हम लोगों के साथ क्षेत्रीय विधायक, क्षेत्रीय सांसद तथा स्थानीय जनप्रतिनिधि सिर्फ छलावा कर रहे हैं ना कि हमारा विकास।
यही हालत लौआलगान पूर्वी पंचायत के कोसी धार के बांध पर बसे बिन्दटोली एवं पौराटोला की हालत और भी खराब है। वहां के ग्रामीण पिछले कई वर्षों से गॉव को मुख्य मार्ग से सीधा संपर्क के लिए धरना प्रदर्शन ,विरोध प्रदर्शन, पोलियो बहिष्कार कर चुके हैं। प्रदर्शन करने की वजह से कुछ ग्रामीणों पर मुकदमा भी दर्ज हुआ है। बताते हैं बिन्द टोली की भौगोलिक स्थिति उत्तर में नौगछिया बॉर्डर, दक्षिण में कोसी धार , दूसरे छोर पर एस एच 58, पूरब में 200 मीटर की दूरी पर भटगामा नौगछिया फ़ॉर लेन सड़क,पश्चिम में कोसी धार और दूसरी छोर पर ग्रामीण सड़क।

क्या कहते हैं बिंदटोली के ग्रामीण

मुकेश कुमार ,अखिलेश कुमार, मुन्ना जयसवाल, योगेंद्र महतो, सुभाष महतो, राजकुमार शर्मा ,विनोद शर्मा, मृत्युंजय कुमार, शम्भू कुमार, विलास शर्मा ,सुनील, मनीष ने कहा कि हमें आजाद हुए 71 वर्ष बीत चुके हैं लेकिन हमारी जिंदगी है कि कुएं के मेंढक की तरह बनी हुई है ।हम लोगों ने सड़क के लिए क्षेत्रीय विधायक, क्षेत्रीय सांसद एवं स्थानीय जनप्रतिनिधियों से बहुतों बार गुहार लगाई, लेकिन किसी के कानों पर जूं नहीं रेंगा। लिहाजा कई बार हम लोगों ने आंदोलन किया। फिर भी सिर्फ आश्वासन ही मिला। हालांकि हमारे गांव में सड़क बनी है ,लेकिन उस सड़क को मुख्य मार्ग से नहीं जोड़ा गया है जिससे हम यह कह सकते हैं कि हम कुएं का मेंढक हैं जो सिर्फ कुंए में ही अपनी जिंदगी जीते हैं। अगर हमारे गांव को मुख्य मार्ग से जोड़ दिया जाए तो हम लोगों का समुचित विकास होगा ।ग्रामीणों का कहना है कि वैशाख के समय में तो किसी तरह पगडंडी के सहारे भी हम लोग मुख्य मार्ग तक चले जाते हैं लेकिन बाढ के दौरान या बारिश के समय हमारा जीना दुश्वार हो जाता है। यहां तक कि बच्चे स्कूल नहीं जा सकते हैं। किसी भी व्यक्ति की तबियत खराब हो जाए तो तुरंत उनको हॉस्पिटल ले जाने तक की सुविधा नहीं है ।हमारे मुख्यमंत्री का यह ऐलान था कि हर गांव को हर 500 की आबादी वाले गांव को मुख्य मार्ग से जोड़ा जाए, लेकिन हमारे गांव की आबादी 5000 से अधिक है लेकिन हम लोग मुख्य मार्ग को तरस रहे हैं ।ग्रामीणों ने बताया कि जब सड़क के लिए आंदोलन करते हैं प्रशासन अंग्रेजों की तरह मुकदमा दर्ज कर दमन करते हैं , जिसे विकास की आस में झेल रहे हैं।
हालत यह है कि हमारे बाल बच्चों के लिए कहीं से अच्छे परिवार या गांव से रिश्ता करने नहीं आते हैं ।यहां आते ही वह लौट कर जाने के बाद खबर भेज देते हैं कि आपके यहां जाने का साधन नहीं है आप लोग टापू पर बसे हैं। जब- जब इलेक्शन का वक्त आता है तो सिर्फ आश्वासन का लॉलीपॉप मिलता है, आस बंधती है और टूट जाती है ।
बहरहाल हकीकत यही है कि चौसा प्रखंड के उक्त गांव तमाम सरकारी दावों को झूठला रहे हैं । यहां के नागरिक त्राहि-त्राहि कर रहे हैं और आक्रोशित हैं। उनका आक्रोश कभी भी जनांदोलन में में परिणत हो सकता है ।


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